मारवाड़ी समाज की महिलाओं ने धूमधाम के साथ की गणगौर पूजा
अंतिम दिन समाज की सभी सुहागिन महिलाएं इस पूजा में शामिल हुई. बड़ी श्रद्धा से गणगौर माता की पूजा की. विवाहित महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है.
दुमका नगर. उपराजधानी में मारवाड़ी समाज की सुहागिन महिलाओं एवं कुंवारी कन्याओं ने गणगौर माता की पूजा-अर्चना मंगलवार को हर्षोल्लास के साथ की. समाज की महिलाओं ने गणगौर माता के साथ बड़ाबांध तालाब पहुंची. बता दें कि गणगौर माता की पूजा होलिका दहन के दूसरे दिन यानि छारंडी के दिन से आरंभ होती है, जो लगातार 16 दिनों तक चलती है. छारंडी के दिन कुंवारी कन्या तथा नवविवाहित महिलाएं इस पूजा को प्रारंभ करती हैं. मंगलवार को अंतिम दिन समाज की सभी सुहागिन महिलाएं इस पूजा में शामिल हुई. बड़ी श्रद्धा से गणगौर माता की पूजा की. विवाहित महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. महिलाएं एवं कन्याओं रोली, मेहंदी, काजल, हलवा, पूड़ी, दुर्वा आदि से गणगौर माता की पूजा की. शाम के समय गणगौर माता को तालाब में विसर्जित किया गया. परंपरागत लोग गीत और भजन गाये गये. महिलाएं तथा लड़कियों ने एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाया. होली के साथ ही माता गणगौर का पर्व आरंभ हो जाता है. महिलाएं होलिका की भस्म, गंगा व तालाब की मिट्टी से गणगौर, कानीराम, रोवा, ईशर, मालिन की मूर्तियां बनाती हैं, उन्हें नये वस्त्र धारण करा कर आभूषणों से अलंकृत कर घर में स्थापित करती हैं. 16 दिन पूजा के साथ ही उनकी भव्य झांकी सजायी जाती है. 17वें दिन घर में गणगौर की पूजन कर तालाब में विदाई दी जाती हैं. मान्यता के अनुसार प्रेम का जीवंत प्रतीक माना जाता है. इस दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती को और देवी पार्वती ने संपूर्ण नारी समाज को सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था, जो सुहागिनें गणगौर का व्रत रखती है और शिव-पार्वती की पूजा करती है, उनके पति की उम्र लंबी हो जाती है. वहीं जो कुंवारी कन्याएं व्रत रखती हैं, उन्हें आदर्श जीवन-साथी का वर मिलता है.
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