झारखंड का राजकीय जनजातीय हिजला मेला आज से, इसका उद्घाटन करने से क्यों कतराते हैं नेता या अधिकारी ?

दुमका में शहर से चार किमी की दूरी पर मयूराक्षी नदी के तट व हिजला पहाड़ी के पास 133 साल पहले से हफ्तेभर का मेला लगता आया है. क्षेत्र का यह सबसे बड़ा मेला है. इस वर्ष 24 फरवरी से मेले की शुरूआत हो रही है. मेला अब महोत्सव का रूप भी ले चुका है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 24, 2023 6:50 AM

दुमका, आनंद जायसवाल. यूं तो किसी भी राजकीय महोत्सव या मेले के लिए न्योता मिलते ही मंत्री-नेता और पदाधिकारी अतिथि बनने और फीता काटने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन दुमका में लगने वाले हिजला मेले के उद्घाटन में कुछ अलग ही बात दिखती है. तीन दशक पहले तक राज्यपाल और मुख्यमंत्री इस मेले के उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि हुआ करते थे, पर हिजला मेला के उद्घाटन करने के बाद राजनेताओं की कुर्सी से हाथ धोने के महज कुछ वाकये ने इस भ्रांति को बल दे दिया है. लिहाजा पिछले तीन दशक से नेता ही नहीं, अफसर भी इस मेले का फीता काटने से कतराते हैं. ऐसे में मेले का उद्घाटन गांव के प्रधान से ही कराया जाता है. ग्राम प्रधान ही मुख्य अतिथि बनाये जाते हैं और वे मुख्य द्वार में फीता काटते हैं.

बेहद रमणिक वादियों में लगता है यह मेला

दुमका में शहर से चार किमी की दूरी पर मयूराक्षी नदी के तट व हिजला पहाड़ी के पास 133 साल पहले से हफ्तेभर का मेला लगता आया है. क्षेत्र का यह सबसे बड़ा मेला है. इस वर्ष 24 फरवरी से मेले की शुरूआत हो रही है. मेला अब महोत्सव का रूप भी ले चुका है. दरअसल यह मेला जनजातीय समाज के सांस्कृतिक संकुल की तरह है. जिसमें सिंगा-सकवा, मांदर व मदानभेरी जैसे परंपरागत वाद्ययंत्र की गूंज तो सुनने को मिलती ही है, झारखंडी लोक संस्कृति के अलावा अन्य प्रांतों के कलाकार भी अपनी कलाओं का प्रदर्शन करने पहुंचते हैं. बदलते समय के साथ इस मेले को भव्यता प्रदान करने की कोशिशें लगातार होती रही हैं. कोरोना की वजह से दो साल यह मेला आयोजित न हो सका था. पर इस बार मेला क्षेत्र में कई आधारभूत संरचनायें विकसित हो गयी हैं, जो मेले के उत्साह को दोगुना करने में सहायक साबित होगा. दुमका के विधायक बसंत सोरेन ने लगभग छह करोड़ के विकास योजनाओं की यहां नींव रखी थी, जिनमें से ज्यादातर काम अंतिम चरण में हैं.

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हिजला मेला को जानिए

1890-तत्कालीन अंग्रेज प्रशासक जॉन राबटर्स कास्टेयर्स के समय हिजला मेला की शुरुआत की गयी थी.

1922-संस्थापक प्रशासक जॉन राबटर्स कास्टेयर्स की स्मृति में जुबली गेट का निर्माण कराया गया.

1975- तत्कालीन आयुक्त जीआर पटवर्धन की पहल पर हिजला मेला के आगे जनजातीय शब्द जोड़ा गया.

2008- राज्य सरकार ने इस मेला को एक महोत्सव के रूप में मनाने का निर्णय लिया.

2015- राजकीय मेला का दर्जा दिया गया, जिसके बाद यह मेला राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव कहलाया.

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