Happy Holi 2021 : संताल के आदिवासी समुदाय 3 दिन तक मनाते हैं होली का पर्व बाहा, प्राकृतिक फूल और नृत्य-गान है इसकी खास पहचान, देखें Pics

Happy Holi 2021, Jharkhand News (दुमका) : झारखंड के संताल आदिवासी अलग तरीके से होली मनाते हैं. होली का यह रूप बाहा कहलाता है. इसमें सारजोम बाहा (सखुआ के फूल) की महत्ता काफी अधिक होती है. बाहा का शाब्दिक अर्थ फूल होता है. दरअसल इस वक्त प्राकृतिक फूल एवं वृक्षों के नये पत्तों से अपना शृंगार करती है और सारजोम ही नहीं मातकोम (महुआ) और पलाश के फूल की मादक खुशबू जब इलाके में बिखरेती है और ये फूल लहलहा रहे होते हैं, तब यह पर्व मनाया जाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 29, 2021 7:17 PM

Happy Holi 2021, Jharkhand News (दुमका), रिपोर्ट- आनंद जायसवाल : झारखंड के संताल आदिवासी अलग तरीके से होली मनाते हैं. होली का यह रूप बाहा कहलाता है. इसमें सारजोम बाहा (सखुआ के फूल) की महत्ता काफी अधिक होती है. बाहा का शाब्दिक अर्थ फूल होता है. दरअसल इस वक्त प्राकृतिक फूल एवं वृक्षों के नये पत्तों से अपना शृंगार करती है और सारजोम ही नहीं मातकोम (महुआ) और पलाश के फूल की मादक खुशबू जब इलाके में बिखरेती है और ये फूल लहलहा रहे होते हैं, तब यह पर्व मनाया जाता है.

हालांकि, इस पर्व में सारजोम बाहा की ही महत्व होता है. बाहा पर्व तीन दिनों का होता है. पहले दिन पूज्य स्थल जाहेर थान में छावनी (पुवाल का छत) बनाते हैं, जिसे जाहेर दाप माह कहते हैं. दूसरे दिन को बोंगा माह कहते हैं और तीसरे दिन को शरदी माह कहते हैं.

Happy holi 2021 : संताल के आदिवासी समुदाय 3 दिन तक मनाते हैं होली का पर्व बाहा, प्राकृतिक फूल और नृत्य-गान है इसकी खास पहचान, देखें pics 4

ग्रामीण गांव के नायकी (पुजारी) को उसके आंगन से नाच-गान के साथ जाहेर थान ले जाते हैं. वहां पहुंचने पर नायकी बोंगा दारी (पूज्य पेड़) सारजोम पेड़ (सखुआ पेड़) के नीचे पूज्य स्थलों का गेह-गुरिह करते हैं यानी गोबर और पानी से सफाई/शुद्धिकरण करते हैं. उसके बाद उसमें सिंदूर, काजल आदि लगाया जाता है. बाद में मातकोम (महुआ) और सारजोम (सखुआ) का फूल चढ़ाते हैं.

Happy holi 2021 : संताल के आदिवासी समुदाय 3 दिन तक मनाते हैं होली का पर्व बाहा, प्राकृतिक फूल और नृत्य-गान है इसकी खास पहचान, देखें pics 5

बाहा पर्व में जाहेर ऐरा, मारांग बुरु, मोड़ेकू-तुरुयकू धोरोम गोसाई आदि इष्ट देवी-देवताओं के नाम बलि दिया जाता है. नायकी सभी महिला-पुरुष और बच्चे भक्तों को सारजोम बाहा देते हैं. फूल ग्रहण करने पर सभी ग्रामीण नायकी को डोबोह (प्रणाम) करते हैं. जिसे पुरुष भक्त कान में और महिला भक्त बाल में लगाते हैं.

Happy holi 2021 : संताल के आदिवासी समुदाय 3 दिन तक मनाते हैं होली का पर्व बाहा, प्राकृतिक फूल और नृत्य-गान है इसकी खास पहचान, देखें pics 6

बाहा एने़ञ सिरिन (इस पर्व पर किये जाने वाले नाच गान) के माध्यम से मानव सृष्टि की धार्मिक कथा कही जाती है और टमाक, तुन्दाह आदि बजा कर नाच-गान किया जाता है. नाच-गान और प्रसादी ग्रहण करने के बाद सभी ग्रामीण नायकी को फिर से नाच-गान के साथ गांव ले जाते हैं. जहां नायकी गांव के सभी घरों में सारजोम(सखुआ) का फूल देते हैं. प्रत्येक घर वाले नायकी के सम्मान में उसका पैर धोते हैं. फूल मिलते ही ग्रामीण एक-दूसरे पर सादा पानी का बौछार करते हैं और इसका आनंद लेते हैं.

तीसरे और अंतिम दिन को शरदी माह कहते हैं. इस दिन भी सभी ग्रामीण एक-दूसरे पर सादा पानी डालते हैं. नाच-गान करते हैं और एक-दूसरे के घर जाते हैं और खान-पान करते हैं. संताल आदिवासी बाहा पर्व सृष्टि के सम्मान में मनाते हैं. इसका प्रकृति और मानव के साथ अटूट संबंध है. इसी समय सभी पेड़ों में फूल आते हैं.

Also Read: Holi 2021 : जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर सरायकेला में निकलेगी राधा-कृष्ण की दोल यात्रा, भक्तों संग खेलेंगे रंग-गुलाल, देखें Pics पर्व के पीछे की क्या है मान्यता

संताल आदिवासियों की मान्यता है कि एक बार जब इस धरा पर दुष्टता, पाप व अत्यचार इस कदर बढ़ गया था कि उस वक्त धरती के विनाश के लिए अग्नि की वर्षा होने लगी और धरती समाप्त होने लग गयी थी. ऐसे वक्त में आदिवासियों की विनती पर उनके आराध्य देवता मरांग बुरु इस धरती पर प्रकट हुए. उन्होंने शुद्ध जल की वर्षा कर अच्छे कर्म करने वालों को बचाया. तब से ही बाहा का यह पर्व मनाया जाता है.

Posted By : Samir Ranjan.

Next Article

Exit mobile version