Bokaro News : कसमार की धरती पर झारखंड आंदोलन की कहानी कहता है कैलाश रजवार का बलिदान
Bokaro News : शहादत दिवस पर विशेष : 11 सितंबर 1981 को पुलिस की गोली से हुए थे शहीद, झामुमो मनायेगा 44वां शहादत दिवस.
दीपक सवाल, कसमार, झारखंड आंदोलन की लंबी लड़ाई में कसमार की धरती भी एक बड़ा केंद्र रही. यहां के आदिवासी, हरिजन, कुड़मी समेत अन्य समुदायों ने इस आंदोलन में अग्रिम पंक्ति से संघर्ष किया. इसी संघर्ष ने कई आंदोलनकारियों को जन्म दिया और कई बलिदान भी देखे. इन्हीं बलिदानों में सबसे अहम नाम है गर्री गांव के कैलाश रजवार, जिन्हें अपनी शहादत देनी पड़ी. 11 सितंबर 1981 का दिन कसमार की स्मृतियों में हमेशा दर्ज रहेगा. यह वही दिन था, जब महज 30 वर्ष की उम्र में कैलाश रजवार पुलिस की गोली का शिकार हो गये. उस वक्त झारखंड आंदोलन अपने उभार पर था और गरीब किसान अपनी जमीन और हक की लड़ाई लड़ रहा था. झामुमो के नेतृत्व में किसानों और भूमिहीनों ने भूपतियों की फालतू व परती जमीन पर कब्जे की मुहिम छेड़ी थी. इसी आंदोलन को संगठित करने और लोगों में चेतना जगाने का काम कैलाश रजवार कर रहे थे. 4 सितंबर 1981 को गांव के एक बड़े भूस्वामी की चहारदीवारी तोड़कर आंदोलनकारियों ने जमीन पर कब्जा कर लिया. इसका सीधा टकराव पुलिस-प्रशासन से हुआ. कुछ दिनों बाद, 11 सितंबर की सुबह गिरफ्तारी वारंट लेकर पुलिस की टीम गर्री गांव पहुंची. महिलाएं और बच्चे खेतों में काम कर रहे थे. पुलिस ने उन्हें डराने की कोशिश की, लेकिन ग्रामीण डरे नहीं. महिलाएं पुलिस से उलझ पड़ीं. तभी कैलाश रजवार और उनके साथी तीर-धनुष लेकर मौके पर पहुंचे. बहस बढ़ी और देखते ही देखते हाथापाई में बदल गयी. संघर्ष के दौरान अचानक गोली चली और कैलाश रजवार लहूलुहान होकर गिर पड़े. पुलिस उन्हें और अन्य घायलों को अपने साथ ले गयी. कुछ घंटों बाद गिरिडीह सदर अस्पताल से खबर आयी कि कैलाश नहीं रहे. उनकी शहादत ने आंदोलन को गहरी चोट दी. कहा जाता है कि पुलिस ने परिवार को उनका शव तक नहीं सौंपा. गांव में मातम पसरा रहा. कसमार बाजारटांड़ में कैलाश रजवार की स्मृति में एक शहीद स्थल बनाया गया है. हर साल यहां शहादत दिवस मनाया जाता है. उनकी शहादत झारखंड की संघर्ष गाथा का अमर अध्याय है, जिसे आने वाली पीढ़ियां गर्व से याद करती रहेंगी. हालांकि, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वर्गीय रजवार की प्रतिमा अभी तक नहीं लग पायी है. यह केवल आश्वासनों तक सिमट कर रह गया है. बहरहाल, इस वर्ष उनका 44वां शहादत दिवस मनाने की तैयारी झामुमो ने की है.
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