Bokaro News : सबकुछ पाने की होड़ में गलत-सही का निर्णय नहीं ले पाते युवा

Bokaro News : जिओ और जीने दो के बैनर तले विचार गोष्ठी का किया गया है आयोजन, वर्तमान में हो रहे हत्याकांड में सुर्खियों में है महिलाएं के कारण और इसके निवारण के उपाय पर चर्चा की गयी.

By ANAND KUMAR UPADHYAY | June 17, 2025 11:00 PM

बोकारो, बोकारो मॉल सेक्टर तीन में जिओ और जीने दो के बैनर तले विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. विषय था ‘वर्तमान में हो रहे हत्याकांड में सुर्खियों में है महिलाएं’. इसके कारण और इसके निवारण के उपाय पर चर्चा की गयी. आयोजन संयोजिका कनक लता राय के दिशा-निर्देश में हुआ. वक्ताओं ने कहा कि समाज में वर्तमान में की जा रही इन हत्याओं पर हमें समग्रता से विचार करना चाहिए. पुलिस और कानून सबूत के आधार पर दोषी को सजा दिलाते हैं और उनकी भूमिका समाप्त हो जाती है. समाज के प्रबुद्ध और जागरूक लोग समस्या की जड़ तक जाना चाहते हैं कि आखिर हुआ क्यूं. गोष्ठी में प्रमुख वक्ताओं ने इसपर विचार रखें.

इन्होंने रखे अपने विचार

शिक्षिका सुभद्रा मिश्रा ने कहा कि वर्तमान पीढ़ी विवाह को बहुत हल्के में ले रही है. विवाह का अर्थ हो गया है, केवल आजादी और सुख भोगने की लालसा. औरों से उच्च वर्ग से अपनी तुलना करना और संतोष का अभाव मुख्य कारण है. हमें ऐसे अपराध को रोकने के लिए विवाह से पहले मैरिज काउंसिलिंग किया जाना चाहिए. कवयित्री कस्तूरी सिन्हा ने कहा कि वर्तमान में घटित घटनायें समाज के वीभत्स स्वरूप को उजागर करती हैं. घर के सदस्यों के बीच संवादहीनता व आधुनिकता के नाम पर लड़कियों की स्वच्छंदता कहीं ना कहीं कई कारणों में एक कारण है. इसके निदान के लिये परिवार के सदस्यों के बीच सामंजस्य का होना बहुत जरूरी है. मारवाड़ी महिला मंच की पूर्व अध्यक्ष इंदू अग्रवाल ने कहा कि मानवीय गुणों का ह्रास, संवेदनहीनता, करुणा, ममता और प्रेम का अभाव, चरित्रहीनता, नशाखोरी, संक्षिप्त में कहूं तो विचारों का दूषित होना ही समाज में आपराधिक समस्याओं को जन्म देता है. हम अपने संस्कारों को जगायें. स्कूलों में नैतिक शिक्षा अनिवार्य की जाये. घर-परिवार व रिश्तों की महत्ता को हम समझे. कवयित्री करुणा कलिका ने कहा कि आज के सामाजिक और नैतिक पतन का मुख्य कारण आज भी बच्चों की परवरिश में भेदभाव का होना, आधुनिकता को अधूरेपन के साथ अपनाना, सहभागिता वाली मानसिकता का अभाव होना, बेटी और बेटा दोनों को देह और सौंदर्य से ऊपर उठकर सोचने की बौद्धिकता प्रदान न करना आदि है. कवयित्री अमृता शर्मा ने कहा कि बेटा हो या बेटी जबतक हम दोनों को सिर्फ अपनी संतान मानकर उनका पालन-पोषण नहीं करेंगे, तब तक कभी बेटा तो कभी बेटी विध्वंस करते रहेंगे.

ब्यूटीशियन अमिता मिश्रा आज के नवयुवक और नवयुवतियां दिशाविहीन हो रहें हैं. उपभोक्तावाद ने उन्हें उलझा रखा है. सबकुछ पाने की होड़ में वे गलत-सही का निर्णय नहीं कर पाते हैं. बेरोजगारी भी ऐसी घटनाक्रम को अंजाम दे रहें हैं. परिवार अपने बच्चों पर नजर रखे. बातचीत करते रहे, ताकि समय रहते सचेत हो सके. कलाकार रिचा अग्रवाल आज के युग में लड़कियां आत्मनिर्भर और मुखर हो रही हैं, जो सराहनीय है. परंतु पारिवारिक संवाद की कमी, सामाजिक असुरक्षा, डिजिटल दबाव व भावनात्मक सहयोग का अभाव कई बार उन्हें गुस्से और हिंसात्मक व्यवहार की ओर ले जाता है. जब संवेदनाएं दब जाती हैं, तो प्रतिक्रिया उग्र रूप ले लेती है. साहित्यकार कनक लता राय समाज की दोहरी नीति और उसका दबाव, विवाह जैसी व्यवस्था से विश्वास का उठना, प्रेम भरोसे का अभाव, विषाक्त मानसिकता ऐसी घटनाओं को अंजाम देने में महती भूमिका निभाते हैं. बच्चों के मानसिक, शारीरिक और व्यावहारिक पक्ष पर माता-पिता को ध्यान देने की आवश्यकता है.

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