ना डिग्री ना चिकित्सीय ज्ञान, गंभीर बीमारियों के मरीजों का करते हैं इलाज

पीएचसी में डॉक्टरों की कमी का फायदा उठा रहे हैं झोला डॉक्टर

By RAJEEV KUMAR JHA | December 6, 2025 5:54 PM

– अवैध क्लिनिक व झोलाछाप डॉक्टरों के कारण जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था खतरे में – पीएचसी में डॉक्टरों की कमी का फायदा उठा रहे हैं झोला डॉक्टर – मोबाइल क्लीनिक के रूप में गांव में घूमते हैं झोला डॉक्टर – सुदूरवर्ती गांवों में अवैध निजी क्लीनिक व बिना लाइसेंस के दवा दुकानों का तेजी से फैल रहा जाल सुपौल. जिला मुख्यालय ही नहीं ग्रामीण इलाकों में भी स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी गड़बड़ियों का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है. सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करने और आमजन को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के दावे भले ही खूब किए जा रहे हो, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट कहानी बयां करती है. जिले के कई प्रखंड, पंचायत और सुदूरवर्ती गांवों में बिना पंजीकरण के निजी क्लीनिक, अवैध पैथोलॉजी केंद्र और बिना लाइसेंस के दवा दुकानों का जाल तेजी से फैलता जा रहा है. इसके अलावा इन दिनों झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या में भी अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखी जा रही है, जो बिना किसी मेडिकल डिग्री और प्रशिक्षण के लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव का सीधा फायदा इन्हीं अवैध संस्थानों को मिलता है. जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उपकेंद्रों में डॉक्टर की कमी, दवा की अनियमित उपलब्धता और जांच सुविधाओं का अभाव जैसी समस्याएं हैं, वहीं लोग मजबूरन इन निजी क्लीनिकों और झोलाछाप डॉक्टरों के पास इलाज कराने पहुंच जाते हैं. इन अवैध डॉक्टरों और संस्थानों का फायदा यह भी है कि वे गांव में ही उपलब्ध रहते हैं, तुरंत दवा देते हैं और मरीजों को मनमर्जी का परामर्श थमा देते हैं, जिसका खामियाजा कई बार मरीजों को जीवन भर भुगतना पड़ता है. अवैध क्लीनिकों और झोलाछाप डॉक्टरों के कारण जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था लगातार खतरे में है. इससे मरीजों की जान जोखिम में पड़ रही हैं. सही इलाज नहीं मिल पा रहा है. अस्पतालों पर अचानक दबाव बढ़ जाता है. गंभीर बीमारियों का निदान समय पर नहीं हो पाता है. गलत इलाज से बीमारी बढ़ जाती है. ग्रामीणों में चिकित्सा व्यवस्था के प्रति अविश्वास बढ़ रहा है. इन सबके चलते जैसे विकासशील जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही है. हालांकि स्वास्थ्य विभाग की ओर से समय-समय पर कार्रवाई की बातें जरूर कही जाती हैं. बैठकें होती हैं, निर्देश जारी किए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कार्रवाई के परिणाम बहुत कम नजर आते हैं. जानकार बताते हैं कि अवैध क्लीनिकों और पैथोलॉजी संचालित करने वालों की एक लंबी सूची विभाग के पास है, लेकिन स्थानीय स्तर पर कई कारणों से प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाती है. बिना लाइसेंस के दवा दुकानों का अवैध कारोबार दवा दुकानों का मुद्दा भी कम गंभीर नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों में दर्जनों मेडिकल स्टोर ऐसे हैं जो बिना ड्रग लाइसेंस के संचालित हो रहे हैं. दवा दुकानदार ना तो दवा वितरण के मानक का पालन करते हैं, ना ही योग्य फार्मासिस्ट रखते हैं. कई दुकानों पर एक्सपायरी दवाएं तक बेचे जाने की शिकायतें आती रहती हैं. कुछ दुकानों में तो इंजेक्शन लगाने और स्लाइन चढ़ाने की सुविधा भी बना दी गई है, जो पूरी तरह गैरकानूनी है. जानकारी अनुसार दवा दुकानों पर ना तो कोई रसीद दी जाती है और ना ही सही दवा उपलब्ध कराई जाती है. मरीजों को झोलाछाप डॉक्टर लिखकर दे देते हैं और मेडिकल स्टोर वाले बिना पूछताछ वही दवा दे देते हैं. इससे मरीज की स्थिति और खराब हो जाती है. झोलाछाप डॉक्टर इलाज के नाम पर कर रहे खिलवाड़ इन दिनों ग्रामीण इलाकों में झोलाछाप डॉक्टरों का बोलबाला सबसे अधिक देखने को मिल रहा है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की कमी का फायदा उठाते हुए ये लोग गांव में मोबाइल क्लीनिक के रूप में घूमते रहते हैं. इनके पास ना योग्यता होती है, ना ही सही चिकित्सीय ज्ञान, मगर खुद को बड़ा डॉक्टर बताकर मरीजों को भ्रमित करते हैं. जानकारी बताते है कि झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा गलत दवा देना, भारी मात्रा में एंटीबायोटिक का प्रयोग, अनावश्यक इंजेक्शन लगाना, खतरे वाले रोगों को भी सामान्य बीमारी बताकर देरी कर देना जैसी गंभीर लापरवाहियां आम देखी जाती हैं. ऐसे में कई बार मरीज की हालत बिगड़ जाती है और फिर उसे शहर के बड़े अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है. कई मामलों में देर होने की वजह से मरीज की जान तक चली जाती है. ग्रामीणों में जागरूकता की भी है कमी ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता का अभाव भी इन अवैध संस्थानों को बढ़ावा देता है. लोगों को यह समझ ही नहीं है कि लाइसेंसधारी डॉक्टर, पंजीकृत क्लीनिक या अधिकृत पैथोलॉजी किसे कहते हैं. झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा तुरंत इलाज सस्ती दवा और हर प्रकार की जांच जैसी बातों पर लोग विश्वास कर लेते हैं. स्वास्थ्य विभाग की चुनौतियां भी कम नहीं जानकार बताते है कि अवैध क्लीनिक और पैथोलॉजी को बंद करने के लिए कई बार टीम बनाकर छापेमारी की जाती है, लेकिन जानकारी पहले ही लीक हो जाती है और संचालक क्लीनिक बंद कर भाग जाते हैं. इससे प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाती है. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में फैले इन अवैध संस्थानों की सूची तैयार करना भी आसान नहीं है. कई संस्थान घर के अंदर या किराए के कमरे में संचालित किए जाते हैं, जिससे उनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है. लोगों का मानना है कि प्रशासनिक स्तर पर सख्ती हो तो ऐसी गतिविधियां एक दिन में बंद हो सकती हैं. तैयार की जा रही सूची : सीएस सिविल सर्जन डॉ ललन कुमार ठाकुर ने कहा कि अवैध रूप से संचालित क्लिनिक और पैथोलॉजी की सूची तैयार की जा रही है. टीम गठित कर अवैध रूप से संचालित ऐसे संस्थानों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है. कुछ क्लिनिक और पैथोलॉजी सेंटर को सील भी किया गया है. कहा कि सभी प्रखंड चिकित्सा पदाधिकारी को भी निर्देश दिया गया है कि अगर कोई भी अवैध रूप से क्लिनिक, पैथोलॉजी या दावा दुकान संचालित कर रहा है तो तुरंत करवाई कर सील करे.

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