तप व फल प्राप्ति के लिए कलियुग ही सर्वश्रेष्ठ युग
सारण, तरैया: प्रखंड के खराटी मठ परिसर में चल रहे नौ दिवसीय अभिषेकात्मक श्री रुद्र महायज्ञ के चौथे दिन काशी से पधारे आचार्य दुर्गा प्रकाश जी महाराज ने कलियुग का वर्णन करते हुए कहा कि कलयुग केवलं नाम अधारा, सुमिरि-सुमिरि नर उतारहि पारा अर्थात कलियुग के दुष्प्रभावों से बचने का केवल एक ही उपाय है […]
सारण, तरैया: प्रखंड के खराटी मठ परिसर में चल रहे नौ दिवसीय अभिषेकात्मक श्री रुद्र महायज्ञ के चौथे दिन काशी से पधारे आचार्य दुर्गा प्रकाश जी महाराज ने कलियुग का वर्णन करते हुए कहा कि कलयुग केवलं नाम अधारा, सुमिरि-सुमिरि नर उतारहि पारा अर्थात कलियुग के दुष्प्रभावों से बचने का केवल एक ही उपाय है भगवान के नाम का भजन.
जो लोग नित्य भागवत भजन करते हैं उन्हें कलि प्रभावित नहीं करता. सनातन धर्म और वेदों में चार युगों की मान्यता है. माना जाता है कि सतयुग में स्वयं देवता, किन्नर और गंधर्व पृथ्वी पर निवास करते थे. हमारे धर्म ग्रंथों में किन्नरों और गंधर्वों के बारे में विस्तार से बताया गया है.
सतयुग के बाद आया त्रेता युग. इस युग में भगवान श्री राम ने जन्म लिया और वे स्वयं श्री हरि विष्णु के अवतार थे. फिर द्वापर युग की शुरुआत हुई और इस युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया. द्वापर युग में श्री कृष्ण ने जिस तरह की लीलाएं रचीं, उनके बारे में प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि भगवान इन लीलाओं के जरिये मानव मात्र को कलियुग में जीवन यापन का पाठ पढ़ा रहे थे.
कलियुग का कालखंड सबसे छोटा माना गया है और माना जाता है कि कलियुग में भगवान विष्णु का 10वां अवतार होगा. विष्णु पुराण में कलियुग का वर्णन करते हुए कहा गया है कि कलियुग में पाप इतना अधिक होगा कि सृष्टि का संतुलन बिगड़ जायेगा. कन्याएं 12 साल में ही गर्भवती होने लगेंगी. मनुष्य की आयु औसतन 20 वर्ष हो जायेगी. लोग जीवन भर की कमाई एक घर बनाने में लगा देंगे.
इन सब के बावजूद जब पराशर ऋषि से देवताओं ने पूछा कि सभी युगों में कौन सबसे बढ़िया है, तो ऋषि ने वेदव्यास जी के कथनों का जिक्र करते हुए कहा कि सबसे उत्तम कलियुग है. यह चौंकाने वाली बात जरूर है, क्योंकि कलियुग में तो सबसे अधिक पर अत्याचार होगा. वेदों व धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कहा गया है, क्योंकि 10 वर्षों में जितना व्रत व तप करके कोई मनुष्य सतयुग में पुण्य प्राप्त करता है, त्रेता युग में वही पुण्य एक साल के तप से प्राप्त किया जा सकता है. ठीक इसी प्रकार उतना ही पुण्य द्वापर युग में एक महीने के तप से प्राप्त किया जा सकता है.
परंतु कलियुग में इतना ही बड़ा पुण्य मात्र एक दिन के तप से प्राप्त किया जा सकता है. इस तरह व्रत और तप के फल की प्राप्ति के लिए कलियुग ही सर्वश्रेष्ठ समय है. इसके पूर्व बुधवार को अरनी मंथन विधिवत संपन्न हुआ. हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित हुई और विधिवत मंडप परिक्रमा प्रारंभ हुई.
