Samastipur News:एक गोली हाथ में, दूसरी छाती व तीसरी जांघ में.. फिर भी नहीं झुकने दिया तिरंगा
भारत ने भले ही परतंत्रता का दंश झेला हो, लेकिन उस परतंत्रता में भारत माता को स्वतंत्र कराने के लिए उसके अनगिनत सपूतों ने इतिहास के नये अध्याय रच डाले.
Samastipur News: प्रकाश कुमार, समस्तीपुर : स्वतंत्रता से प्यार किसे नहीं होता. भारत ने भले ही परतंत्रता का दंश झेला हो, लेकिन उस परतंत्रता में भारत माता को स्वतंत्र कराने के लिए उसके अनगिनत सपूतों ने इतिहास के नये अध्याय रच डाले. देश की आजादी में हर आयु वर्ग के लोगों ने अहम योगदान दिया था. नौजवान, बूढ़े और महिलाओं में ही नहीं, किशोरों में भी देशभक्ति का जुनून सिर चढ़कर बोल रहा था. गांव-गांव में राष्ट्रभक्त ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दे रहे थे. आजादी की लड़ाई के दौरान ऐसे ही दो देशभक्त हुए अमर शहीद रामलखन राय और शारदानंदन झा, जिन्होंने महज 14 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी थी. वे शहर के केईएच स्कूल के सातवीं कक्षा में पढ़ते थे. युवाओं के बीच खास चर्चाओं में रही क्रांतिकारी संस्था ””मातृवेदी संगठन”” का प्रभाव विद्यार्थियों पर भी पड़ना शुरू हो गया था. अपने साथ पढ़ रहे विद्यार्थियों के साथ मिलकर उन्होंने संगठन की गतिविधियों को तेज कर दिया. सुबह पढ़ाई करते और दिन भर चोरी छिपे स्कूल में बैठकें करते थे. अंग्रेजों को भनक लगी तो स्कूल से दूर बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया. धीरे-धीरे आंदोलन के प्रति लोगों के जज्बे और उत्साह को देखकर अंग्रेजी हुकूमत घबरा उठी थी. अंतिम रूप से आजादी की चिनगारी अपने हृदय में जलाकर आंदोलन पर उतरे मतवाले क्रांति हीरो पर दमनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी थी. दोनों छात्र पकड़े गये और पहली बार इनका सामना अंग्रेजी शासन काल के ली-एनफील्ड राइफल से हुई. राइफल के साथ इस्तेमाल होने वाला एक चाकू से गोदकर जख्मी कर दिया.
तिरंगे को फहराने को लगाई जान की बाजी
आज भी इन वीर सपूतों का बलिदान देश के लिए अमर कहानी की तरह है. समस्तीपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 500 मीटर से भी कम दूरी पर स्थित थानेश्वर मंदिर के निकट टुनटुनियां गुमटी पर एक घटना घटी. भारत माता की स्वतंत्रता के लिए आवाज बुलंद कर रहे जुलूस पर ट्रेन के डिब्बे से दनादन गोलियां दागे जाने लगी. इस हृदय विदारक घटना से समस्तीपुर में आक्रोश की ज्वाला धधक उठी. 12 अगस्त 1942 को आजादी के दीवानों की एक ही चाहत, वो थी अंग्रेजी हुकूमत का अंत. स्वाधीनता के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की मंशा लिये अपने साथियों के साथ रामलखन व शारदानंद आगे बढ़ रहे थे. अंग्रेजों भारत छोड़ो का आंदोलन 9 से 15 अगस्त तक जबरदस्त रूप से चला. तत्कालीन लाल ऑफिस(एसडीओ कार्यालय) पर तिरंगा फहराने के दौरान जो शहीद हुए थे, उनमें रामलखन व शारदानंद भी थे. इन्होंने अंग्रेजों की एक नहीं, बल्कि तीन गोलियां खाई. उनको पहली गोली हाथ में लगी. दूसरी जांघ और तीसरी पेट में लगी लेकिन फिर भी उन्होंने तिरंगे को झुकने नहीं दिया. आजादी की जंग की घटनाओं में वीरों ने अपनी खून की बूंदों से हमारे स्वर्णिम आज को हमारे हाथ में सौंप दिया. उनके देशप्रेम और वीरगाथाओं के कई ऐसे स्थान हैं, जो न सिर्फ उनकी गौरवगाथा का गुणगान करते नजर आ रहे हैं बल्कि उनके देश के प्रति सद्भाव का सच्चा व प्रत्यक्ष प्रमाण भी खुद को चीख-चीखकर बताते नजर आ रहे हैं. एचएम डा ललित कुमार घोष ने कहा कि इनके शौर्य और पराक्रम के बलबूते आने वाली पीढ़ी देश पर आस्था के साथ बलिदान होने की गाथा को युगों-युगों तक दोहराती नजर आती रहेगी.
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