जनजातीय समाज की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है मुखौटा : प्रो भारती

वैदेही कला संग्रहालय सहरसा द्वारा 13 से 18 नवंबर के बीच जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर छह दिवसीय मुखौटा प्रदर्शनी का आयोजन इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान लखनऊ में किया जा रहा है.

By Dipankar Shriwastaw | November 16, 2025 7:19 PM

वैदेही कला संग्रहालय ने जनजातीय गौरव दिवस पर लगायी छह दिवसीय मुखौटा प्रदर्शनी

यूपी में सहरसा के संस्था द्वारा लगायी गयी प्रदर्शनी की लोग कर रहे प्रशंसा

सहरसा. वैदेही कला संग्रहालय सहरसा द्वारा 13 से 18 नवंबर के बीच जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर छह दिवसीय मुखौटा प्रदर्शनी का आयोजन इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान लखनऊ में किया जा रहा है. प्रदर्शनी में देश के विभिन्न भागों से एक सौ साठ जनजातीय मुखौटे, प्रदर्शित किये गये. प्रदर्शनी की परिकल्पना एवं संयोजन प्रो ओम प्रकाश भारती ने किया. प्रदर्शनी के संयोजक प्रो भारती ने कहा कि जनजातीय मुखौटे जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है. इनका अभिप्राय मुख्य रूप से आध्यात्मिक, रक्षात्मक एवं सामुदायिक पहचान से जुड़ा होता है. यह मुखौटा केवल सजावट के साधन नहीं, बल्कि पूर्वजों की आत्माओं, देवताओं, प्रकृति की शक्तियों या पौराणिक चरित्रों का प्रतिनिधित्व करता है. जनजातीय संस्कृति में इन्हें नृत्यों, उत्सवों, नाट्य प्रदर्शनों एवं पूजा-अनुष्ठानों में उपयोग किया जाता है. जो समुदाय को बुरी शक्तियों से बचाने, फसल की अच्छी पैदावार सुनिश्चित करने, सामाजिक सद्भाव बनाये रखने एवं सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखने का कार्य करते हैं. ये मुखौटे पूर्वजों की स्मृति को उजागर करते जनजातीय समाज का सांस्कृतिक पहचान है. भारत के विभिन्न जनजातीय समुदाय मध्य प्रदेश की आदिवासी जनजातियों में, इन्हें नवरात्रि के दौरान देवी के रूप में पूजा जाता है, जबकि बस्तर की मुरिया जनजाति इन्हें छेरता उत्सव में आनुष्ठानिक नृत्यों के लिए बनाती है. कुल मिलाकर यह मुखौटा प्रकृति, आस्था एवं सामुदायिक एकता के माध्यम से आदिवासी जीवन की आधारशिला को प्रतिबिंबित करते हैं.

पौराणिक, जनजातीय या प्राकृतिक प्रतीकों से सजे होते हैं मुखौटे

प्रो भारती ने कहा कि जनजातीय मुखौटों की विशेषताएं उनकी सामग्री, डिजाइन, रंगों एवं उपयोगिता में निहित हैं, जो स्थानीय संसाधनों एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं पर आधारित होती है. ये मुखौटे आमतौर पर प्राकृतिक सामग्रियों से बनाए जाते हैं. ये मिट्टी, लकड़ी, कागज माचे, नारियल के छिलके, आरी का धूल, इमली का पेस्ट, मोम, रेजिन, बांस, कपास एवं कपड़ा से निर्मित होते हैं. कुछ क्षेत्रों में धातु कांस्य या पीतल का उपयोग लॉस्ट वैक्स तकनीक से किया जाता है. रंग प्राकृतिक रंगों पौधों एवं खनिजों से प्राप्त होते हैं. उन्होंने कहा कि डिजाइन की दृष्टि से इनमें अतिरंजित विशेषताएं होती हैं. बड़ी-बड़ी आंखें, होंठ, नाक, भौंहें, दांत एवं दाढ़ी नाटकीय प्रभाव के लिए बनायी जाती है. ये मुखौटे पौराणिक, जनजातीय या प्राकृतिक प्रतीकों से सजे होते हैं एवं निर्माण प्रक्रिया में मोल्डिंग, सुखाना, सजाना, चिकना करना व चित्रण शामिल होता है. यह हल्के एवं टिकाऊ होते हैं, जिससे नृत्य या प्रदर्शन के दौरान आसानी से पहने जा सके.

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