बच्चों ने नारियल के रेशे से बनाया पेड़

18 दिवसीय समर कैंप में बच्चे सीख रहे एक से बढ़कर एक कलाकृति

By Prabhat Khabar | May 3, 2024 6:58 PM

18 दिवसीय समर कैंप में बच्चे सीख रहे एक से बढ़कर एक कलाकृति पूर्णिया. अगर इंसान चाह ले तो कुछ मुमकिन है. ऐसा ही कुछ नजारा, किलकारी, बिहार बाल भवन, पूर्णिया में चल रहे 18 दिवसीय समर कैंप के हस्तकला विधा के प्रशिक्षण सत्र में तब दिखा, जब बच्चों ने अपने प्रशिक्षक द्वारा बताये गये हस्तकला निर्माण तकनीक के सहारे नारियल के रेशे से ही पूरा का पूरा नारियल का पेड़ ही बना दिया. यही नहीं उन्होंने नारियल के खोल से भी कई सारे खेल खिलौने बना डाले जो अपने आप में अद्भूत है. अखरोट जैसे ड्राईफ्रूट से भी कई कलाकृति बना डाली. इनमें हाथी, सांप, क्रोकोडाइल सहित कई तरह के आइटम शामिल हैं लेकिन खासतौर पर आकर्षण का केंद्र है नारियल के रेशे से बनाया गया नारियल का पेड़. इसके निर्माण में जड़ से लेकर तन तक केवल और केवल नारियल के रेशे ही उपयोग किया गया है. सिर्फ पत्तों को दर्शाने के लिए नारियल के पत्तों का इस्तेमाल किया गया है. यहां तक कि पेड़ में लगे नारियल भी नारियल के रेशे से से ही बनाये गये हैं. बच्चों द्वारा बनायी गयी यह कलाकृति अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण है. हस्तकला के इस कैंप में 65 छात्राएं और 53 छात्र शामिल दरअसल, इन दोनों किलकारी, बिहार बालभवन पूर्णिया में 18 दिवसीय समर कैम्प चल रहा है. इसमें सैकड़ो बच्चे अलग-अलग विधा में अपनी पसंद से कला और खेल विद्या के माध्यम से प्रशिक्षण ले रहे हैं. इसी कड़ी में पटना से आये हस्तकला प्रशिक्षक कुश कुमार बच्चों को पांच दिवसीय हस्तकला प्रशिक्षण देने के लिए यहां पहुंचे हैं. उन्होंने इस हस्तकला प्रशिक्षण की दरम्यान बच्चों को जो ट्रेनिंग दी है, उस ट्रेनिंग से बच्चों ने तीसरे ही दिन यह अद्भूत कार्य कर डाला है. कुश कुमार बताते हैं कि हस्तकला के इस कैम्प में क 65 छात्राएं और 53 छात्र शामिल हैं. सभी एक से एक बढ़कर एक हैं. सभी का लगन देखते ही बनती है. पटना से आये प्रशिक्षक कुश कुमार कुश कुमार ने किलकारी के बच्चों के बनाये हुए कलाकृतियों को दिखाते हुए कहा कि बहुत जल्दी इन्होंने मेरे बताए हुए तकनीक को आत्मसात कर लिया है और एक से बढ़कर एक कलाकृति गढ़ डाली है, जो काबिले तारीफ है. कुश कुमार बताते हैं कि बच्चों को आने वाले भविष्य के लिए तैयार करने में इन्हें काफी खुशी मिल रही है. कुश कुमार को इस शिविर में अपने कार्य को अंजाम देने में स्थानीय रूप में कार्य करनेवाली किलकारी, पूर्णिया मे हस्त कला सिखाने वाली जुही कुमारी का भी सहयोग मिल रहा है. खासतौर पर किलकारी के प्रमंडल समन्वयक रवि भूषण कुमार व अन्य अधिकारी भरपूर सहयोग दे रहे हैं. दक्षिण की कला से रूबरू हो रहे बच्चे दरअसल, नारियल के रेशे और छिलके से बनाये जाने वाले इन कलाकृतियों को कौवार आर्ट के रूप में जाना जाता है और इसका प्रचलन दक्षिण भारत के भुवनेश्वर में ज्यादा है. इस लिहाज से यह कह सकते हैं कि दक्षिण की कला को उत्तर में विकसित करने के लिए किलकारी, पूर्णिया के बच्चे जुटे हुए हैं. कौवार आर्ट भुवनेश्वर में काफी प्रचलित है क्योंकि दक्षिण भारत में नारियल की खेती प्रचुर मात्रा में होती है और नारियल से निकले रेशे और उसके छिलकों का उपयोग इस कला के कलाकृति निर्माण में किया जाता है. उद्देश्य होता है कि घर के साज-सज्जा को एक सुंदर रूप प्रदान करने के लिए सुंदर वस्तुओं का निर्माण किया जा सके. साथ ही इसके माध्यम से कलाकारों को जीविकोपार्जन का रास्ता भी मिल सके.

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