नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बाल्यकाल से संस्कृत अध्ययन अनिवार्य : मृत्युंजय झा

यदि बाल्यकाल से ही बच्चों को संस्कृत पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाये तो वे चरित्रवान, अनुशासित और आदर्श नागरिक बन सकते हैं.

By DURGESH KUMAR | September 15, 2025 12:16 AM

संवाददाता, पटना यदि बाल्यकाल से ही बच्चों को संस्कृत पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाये तो वे चरित्रवान, अनुशासित और आदर्श नागरिक बन सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जैसे एक मजबूत नींव पर ही भवन स्थायी बनता है, वैसे ही प्रारंभिक अवस्था में संस्कृत शिक्षा से बच्चों का नैतिक आधार मजबूत होगा. ये बातें बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ मृत्युंजय कुमार झा ने कार्यक्रम के दौरान कहीं. उन्होंने कहा कि आज समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास दिखायी दे रहा है. बच्चों और युवाओं में अनुशासन, संस्कार तथा कर्तव्यनिष्ठा के प्रति लगाव कम होता जा रहा है. ऐसे समय में संस्कृत शिक्षा ही वह सशक्त माध्यम है, जो नयी पीढ़ी में उच्च आदर्शों, मानवीय मूल्यों और नैतिक चेतना का संचार कर सकती है. उन्होंने कहा कि संस्कृत केवल भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और दर्शन की आत्मा है. इसमें जीवनोपयोगी श्लोक, सूक्तियां और कथाएं निहित हैं, जो बालकों में सत्य, अहिंसा, करुणा, परोपकार और कर्तव्यपालन जैसी प्रवृत्तियों को स्वाभाविक रूप से विकसित करती हैं. उन्होंने अभिभावकों और शिक्षकों से अपील की कि वे बच्चों को संस्कृत अध्ययन के प्रति जागरूक करें. शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार प्राप्त करना नहीं, बल्कि अच्छे चरित्र और सुदृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण करना है. संस्कृत शिक्षा इस दिशा में सबसे प्रभावी साधन है. डॉ झा ने शिक्षक और समाज दोनों से आग्रह किया कि विद्यालय स्तर पर संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए ठोस पहल की जाये. बोर्ड भी इस दिशा में लगातार कार्य कर रहा है और समय-समय पर विभिन्न योजनाओं के माध्यम से विद्यार्थियों को संस्कृत की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया जा रहा है.

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