उड़नखटोले पर चुनाव प्रचार रोजाना खर्च हो रहे 2.2 करोड़
कुछ साल पहले जब चुनाव आते ही गलियों-मुहल्लों में गूंजता था- हर-हर मोदी, घर-घर मोदी,
कुछ साल पहले जब चुनाव आते ही गलियों-मुहल्लों में गूंजता था- हर-हर मोदी, घर-घर मोदी, ‘बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है या ‘समोसे में आलू, जब तक रहेगा बिहार में लालू’. ये नारे ही किसी पार्टी की पहचान हुआ करते थे. भीड़ में जोश भरते थे, भाषणों को धार देते थे, और वोटरों की ज़ुबान पर टिके रहते थे. लेकिन, वक्त बदल गया है. आज के सोशल मीडिया के दौर में वही नारे, वही गीत अब भीड़ में कहीं खो गये हैं. अब हर नेता, हर पार्टी वायरल वीडियो, मीम या इंस्टाग्राम रील के जरिये जनता तक पहुंचने की कोशिश कर रही है. एक नारे से अब बात नहीं बनती- जनता को रोज़ नया मुद्दा और नया अंदाज चाहिए.
मोदी और भाजपा
भाजपा के नारे-मोदी है तो मुमकिन है और ‘अबकी बार, फिर मोदी सरकार’ राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बिहार में भी काफी लोकप्रिय हुए. ‘हर-हर मोदी, घर-घर मोदी’ ने प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत अपील को जन-जन तक पहुंचाया. डबल इंजन सरकार की यह थीम आज भी पार्टी की रीढ़ बनी हुई है.नारे से नीतीश की बनी थी छवि
‘बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है’- यह नारा 2015 के चुनाव में खूब चला था. सुशासन और विकास की छवि के साथ ‘नीतीश हैं तो विश्वास है, विकास है’ ने नीतीश कुमार की छवि को और मज़बूत किया. हालांकि, बाद के वर्षों में यही नारा सोशल मीडिया पर व्यंग्य का विषय भी बना.
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