Patna Metro: चार किलोमीटर का सफर, तीन स्टेशन की पटना मेट्रो का जोश अब ठंडा, रोजाना सिर्फ 1500 सवारी

Patna Metro: पहले दिन थी मेट्रो में सेल्फी की भीड़, अब सिर्फ सफर का सन्नाटा. उद्घाटन . के बाद पटना मेट्रो में यात्रियों की संख्या लगातार घट रही है, कमाई भी अब 45 हजार रुपये के आसपास सिमट गई है.

By Pratyush Prashant | November 9, 2025 11:11 AM

Patna Metro: पटना मेट्रो को शुरू हुए एक महीना से ज्यादा हो चुका है. शुरुआती हफ्तों में राजधानी और आसपास के जिलों से लोग मेट्रो की सवारी करने पहुंच रहे थे. स्टेशन पर फोटो सेशन, टिकट की लाइनें और बच्चों की खिलखिलाहट, सब कुछ नयापन का हिस्सा था.

लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. मेट्रो के सीमित रूट और तीन स्टेशनों के दायरे में फंसा यह प्रोजेक्ट फिलहाल यात्रियों के लिए ‘आकर्षण’ से ज्यादा ‘प्रयोग’ बनकर रह गया है.

उत्साह से सन्नाटे तक: घटती सवारी और कमाई

शुरुआत में पटना मेट्रो को देखने और उसमें यात्रा करने के लिए लोगों में भारी उत्साह था. पहले सप्ताह में हजारों लोग सिर्फ अनुभव लेने पहुंचे थे. लेकिन अब टिकट काउंटर की स्थिति बता रही है कि भीड़ छंट चुकी है.
मेट्रो प्रशासन के अनुसार, अब रोजाना औसतन 1500 यात्री ही यात्रा कर रहे हैं, जिससे 42 से 45 हजार रुपये की दैनिक कमाई हो रही है.

रविवार को यात्रियों की संख्या कुछ बढ़ जाती है, जब परिवार और छात्र मेट्रो की सवारी को ‘वीकेंड आउटिंग’ की तरह लेते हैं.

तीन स्टेशन और 4.5 किमी का सफर: सीमित रूट बनी बाधा

फिलहाल मेट्रो का संचालन आईएसबीटी से भूतनाथ स्टेशन तक 4.5 किलोमीटर लंबे रूट पर किया जा रहा है. इस रूट में जीरो माइल, भूतनाथ रोड और पाटलिपुत्र बस डिपो (आईएसबीटी) शामिल हैं. अधिकतम किराया 30 रुपये, जबकि एक स्टेशन की यात्रा के लिए 15 रुपये तय किया गया है.

यात्री सुविधा के लिहाज से यह रूट छोटा और सीमित है, जिससे रोजाना के यात्रियों की संख्या बढ़ नहीं पा रही. अधिकांश लोग कहते हैं कि “जब तक रूट सेंट्रल पटना तक नहीं बढ़ेगा, मेट्रो को नियमित सवारी मिलना मुश्किल है.”

42 फेरे, 12 घंटे परिचालन और तीन कोच वाली ट्रेन

मेट्रो सेवा सुबह 7:55 बजे से शाम 7:55 बजे तक संचालित हो रही है. हर दिन करीब 42 फेरे चलाए जा रहे हैं. तीन कोच वाली यह ट्रेन 138 बैठा कर और 945 खड़े यात्रियों को ले जाने में सक्षम है. तीन फुट से कम ऊंचाई वाले बच्चों को मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है, जबकि उससे अधिक ऊंचाई वाले बच्चों को टिकट लेना पड़ता है.

पटना मेट्रो फिलहाल शहर के लोगों के लिए ‘नई चीज’ का अनुभव रही. लेकिन सीमित रूट का स्टेशन और शहर के प्रमुख इलाकों से दूरी के कारण यह आकर्षण धीरे-धीरे कम हो गया. “जब तक मेट्रो गांधी मैदान या रेलवे स्टेशन तक नहीं पहुंचेगी, तब तक इसका असली फायदा नहीं दिखेगा.”

मेट्रो विस्तार की उम्मीद फिलहाल ‘फेज-2’ पर टिकी है, जो राजधानी के मध्य और दक्षिणी हिस्सों को जोड़ेगा. पटना मेट्रो ने बिहार की राजधानी को आधुनिक यातायात का नया चेहरा जरूर दिया है, लेकिन इसकी सफलता अब इस पर निर्भर करेगी कि यह शहर के रोजमर्रा सफर में कितनी जल्दी जुड़ती है.
अभी के लिए, यह एक ‘शहर की सैर’ है ‘शहर की जरूरत’ बनने में वक्त लगेगा.

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