मिनी पितृपक्ष : पितरों की शांति के लिए गया में 14 दिसंबर से होगा पिंडदान, तीन लाख लोगों के आने की उम्मीद

मिनी पितृपक्ष : 14 दिसंबर से एक माह तक खरमास रहता है. 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर गंगा स्नान की हिंदू धर्म में पौराणिक मान्यता रही है. पिंड दानी गंगा स्नान से पहले गयाजी आकर पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान का कर्मकांड संपन्न करते हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 6, 2022 2:18 AM

नीरज कुमार, गया: पौष मास में 14 दिसंबर से 14 जनवरी तक मिनी पितृपक्ष मेला का आयोजन होगा. यहां के पंडा समाज से जुड़े लोगों की मानें, तो इस बार मेले में तीन लाख से अधिक पिंडदानियों के आने की उम्मीद है. इन पिंड दानियों के पहुंचने से इस बार 60 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हो सकता है. जानकारों की मानें, तो मेले में आने वाले अधिकतर पिंड दानी एक अथवा तीन दिनी पिंडदान का कर्मकांड करते हैं. पिंडदान से जुड़े सभी सामानों की खरीदारी भी स्थानीय स्तर पर करते हैं. इससे कारोबार को गति मिलती है.

शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में 54 वेदी स्थल

मेले में जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे कारोबारी भी अपनी दुकान लगाते हैं. शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में वर्तमान में 54 वेदी स्थल है, जहां पिंडदानी अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति के निमित्त पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड अपने कुल पंडा के निर्देशन में पूरा करते हैं. अधिकतर पिंडदानी पिंडदान सामग्री, फल, मिठाई, माला-फूल, कपड़े, बर्तन व अन्य जरूरी सामानों की स्थानीय स्तर पर खरीदारी करते हैं.

60 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हो सकता है

एक पिंडदानी सामानों के साथ आवासन, भोजन व यातायात पर इस बार कम-से-कम औसतन दो हजार रुपये तक खर्च कर सकते हैं. यानी तीन हजार पिंडदानियों के पहुंचने से 60 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हो सकता है. पिंडदानियों के इतनी अधिक संख्या पहुंचने के बाद भी जिला प्रशासन की ओर से मिनी मेले में आश्विन मास में लगने वाले 15 दिवसीय पितृपक्ष मेले की तरह बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था लगभग नहीं के बराबर की जाती है. उन्हें पंडा समाज बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए हर संभव प्रयास करता है.

गंगा स्नान के साथ मेले का होता है समापन

14 दिसंबर से एक माह तक खरमास रहता है. 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर गंगा स्नान की हिंदू धर्म में पौराणिक मान्यता रही है. पिंड दानी गंगा स्नान से पहले गयाजी आकर पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान का कर्मकांड संपन्न करते हैं. मान्यता है कि इस अवधि में पिंडदान करने से पितरों को न केवल जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है, बल्कि कर्मकांड करने वाले पिंडदानियों को उनके पितरों से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है.

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क्या कहते हैं मंदिर प्रबंधन व पंडा समाज से जुड़े लोग

  • इस पौष मेले को संक्रांति मेला भी कहा जाता है. गंगा स्नान करने वाले अधिकतर श्रद्धालु यहां आकर पिंडदान भी करते हैं. भीड़ काफी होती है. बुनियादी सुविधाओं के लिए प्रत्येक वर्ष जिला प्रशासन को पत्र देकर उनसे अनुरोध किया जाता है, लेकिन कोई व्यवस्था नहीं की जाती है. शंभू लाल विट्ठल, कार्यकारी अध्यक्ष, श्री विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति, गया.

  • मेला अवधि में देश के अलग-अलग राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं को समुचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं मिल पाती है. इस दौरान पुलिस गश्ती व प्रमुख मेला क्षेत्र में अतिरिक्त पुलिस जवानों की तैनाती बहुत जरूरी है. साथ ही ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मियों को व्यवहार कुशल भी होना जरूरी है. बच्चू लाल चौधरी, कोषाध्यक्ष, श्री विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति, गया.

  • इस मेले में विशेष कर सुरक्षा व सफाई की समस्या होती है. मेले में समस्या अधिक बढ़ जाती है. जिला प्रशासन से इस बार भी मिनी पितृपक्ष मेले के दौरान मेला क्षेत्रों में अतिरिक्त सुरक्षा जवानों की प्रतिनियुक्ति की मांग की जायेगी. महेश लाल गुपुत, आमंत्रित सदस्य, श्री विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति, गया.

  • इस मेले में आने के लिए काफी श्रद्धालु संपर्क कर रहे हैं. उम्मीद है कि तीन लाख से अधिक पिंडदानी मेले में पहुंचेंगे. दूसरी तरफ मेला क्षेत्रों से जुड़ने वाली शहर की अधिकतर सड़कों की स्थिति काफी खराब है. सुरक्षा के ख्याल से मेला शुरू होने से पहले इसमें सुधार की जरूरत है. राजन सिजुआर, अध्यक्ष, जिला होटल एसोसिएशन, गयाजी धाम.

  • संक्रांति पर पिंडदान करने की धार्मिक मान्यता रही है. यही कारण है कि इस मिनी पितृपक्ष यानी संक्रांति पर यहां एक माह तक मेला आयोजित होता है. देश के अधिकतर राज्यों से श्रद्धालु मेले में आकर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं. शिवकुमार भइया, पंडा जी.

  • फल्गु नदी में देवघाट के पास पिंडदानियों की सुविधा के लिए गयाजी डैम बनाया गया है. नियमित सफाई नहीं होने से इसकी जमीनी सतह दलदल जैसी बन गयी है. सुरक्षा के ख्याल से इसकी नियमित सफाई होनी चाहिए. छोटू बारिक, जिला मीडिया प्रभारी, फल्गु सेवा समिति गया.

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