Kojagara: समृद्धि का लोकपर्व कोजागरा, मिथिला में मखाना बांटने और चौसर खेलने की है परंपरा

Kojagara: आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाले पर्व कोजगरा में मुख्य रूप में लक्ष्मी(लखि) के अन्नपूर्णा रूप की पूजा होती है. साथ ही घर में आयी नयी विवाहिता को सामाजिक स्तर पर आशिर्वाद दी जाती है, जिसे मिथिला में चुमाओन कहा जाता है. कोजागरा को लेकर बाजार में मखाना की मांग बढ़ने के साथ कीमत में भी काफी इजाफा हुआ है. फिर भी लोग पर्व की रस्म पूरा कारने के लिए जमकर मखाना की खरीदारी करते दिखे. इस दिन पुरैन(कमल का पत्ता) पर भेंट (कमल के बीज का चावल) का भात और मखाने की खीर देवी की अर्पित किया जाता है.

By Ashish Jha | October 6, 2025 8:26 AM

Kojagara : पटना. पूर्वी भारत में लक्ष्मी के अन्नपूर्णा रूप की आज पूजा होती है. सनातन धर्म में अन्नपूर्णा को समृद्धि का प्रतीक माना गया है. ऐसे में अन्नपूर्णा के आशिर्वाद की कामना का लोकपर्व कोजागरा मिथिला समेत पूरे बिहार और बंगाल में मनाया जाता है. 6 अक्टूबर की शाम पूरे भक्ति भाव से लोग मां अन्नपूर्णा की आराधना करेंगे. सनातन धर्म में धन से अधिक समृद्धि का महत्व है. आज शाम बिहार खासकर मिथिला के घर-घर में मां अन्नपूर्णा की पूजा होगी. इसके लिए तैयारी पूरी कर ली गयी है. कोजागरा की रात नवविवाहित दंपती का चुमाओन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस परंपरा का निर्वहन आज भी पूरी सिद्दत के साथ की जाती है.

मां लक्ष्मी की होती है आराधना

कोजागरा की रात हर घर में श्रद्धा के साथ मां अन्नपूर्णा की पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि जिस घर में आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को मां अन्नपूर्णा की पूजा होती है, उस घर में कभी अन्न का संकट नहीं होता है. उस घर का कोई कभी भूख से नहीं सोता है. इस संबंध में महावीर मंदिर के प्रकाशन विभाग के प्रमुख पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि श्रद्धा व निष्ठापूर्वक आज अन्नपूर्णा की पूजा-अर्चना करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है. इस दिन दरबाजे से भगवती स्थान तक खास तरीके का अरिपन बनाया जाता है.

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भेंट का चावल और मखाना का खीर से लगता है भोग

कमल के पन्ने जिसे पुरैन कहते हैं, उसपर कौमुदी के बीज भेंट का भात (चावल) और मखान का खीर मां अन्नपूर्णा को भोग लगाया जाता है. कोजागरा के दिन धन से अधिक अन्न का महत्व होता है. लोग सोना और चांदी के सिक्के की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, लेकिन मुख्य रूप से दौलत का अर्थ अन्न की समृद्धि से है न कि धन की समृद्धि से. ऐसी मान्यता है कि कोजागरा की रात अमृत वर्षा होती है, ऐसे में लोग आंगन या छत पर दही को पूरी रात रखते हैं और सुबह उस दही को अमृत मानकर खाते हैं.

मखाना बांटने और चौसर खेलने की परंपरा

कोजागरा के दिन नवविवाहित दंपती को मखाना, मिठाई, चूरा, दही, नये वस्त्र सहित अन्य भोजन सामग्री उपहार स्वरूप दिया जाता है. इस दिन नव विवाहिता के हाथों मखाना बांटने की परंपरा है. साथ ही कोजागरा की रात जुआ खेलने की भी परंपरा है. घर-घर लोग पचैसी, तास, लूडो या फिर चौसा खेलते हैं. चांदी के कौड़ी से भाभी के साथ चौसा (पच्चीसी) खेलने के पीछे का कारण आज भी रहस्य बना हुआ है. इस दौरान देवर भाभी के बीच हास परिहास भी चलते रहता है. कहा जाता है कि कोजागरा के दिन जुआ खेलने से साल भर धन की कमी नहीं होती है. अन्य दिनों में चाहे जुआ खेलना जितना भी बुरा माना जाता हो, लेकिन आज की रात जुआ खेलने की परंपरा लोग निभाने से पीछे नहीं रहते.

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