Jitwarpur craft village: मधुबनी का जितवारपुर बनेगा बिहार का पहला क्राफ्ट विलेज
Jitwarpur craft village: मिथिला चित्रकला की जीवित परंपरा को संजोए हुए मधुबनी जिले का जितवारपुर गांव अब नये इतिहास की दहलीज पर खड़ा है. यहां की दीवारों पर उकेरे गए रंग अब केवल कला की विरासत नहीं रहेंगे, बल्कि पूरे गांव को एक ‘क्राफ्ट विलेज’ का रूप देंगे.
Jitwarpur craft village: भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय की उच्चस्तरीय समिति ने मधुबनी जिले के जितवारपुर गांव को बिहार का पहला क्राफ्ट विलेज बनाने की मंजूरी दे दी है.
इस परियोजना के तहत गांव का सौंदर्यीकरण होगा, पर्यटकों के लिए गेस्ट हाउस और कार्यशालाएं बनेंगी तथा स्थानीय कलाकारों को रोजगार और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी.
जितवारपुर की खास पहचान
जितवारपुर केवल एक गांव नहीं, बल्कि मिथिला चित्रकला की जीवंत पाठशाला है. करीब 400 घरों वाले इस गांव ने देश को तीन पद्मश्री कलाकार दिए हैं. जगदंबा देवी (1975), सीता देवी (1980) और बौआ देवी (2017) को मिथिला चित्रकला के लिए यह सम्मान मिल चुका है.
यही नहीं, पड़ोसी लहेरियागंज गांव को शामिल कर लिया जाए तो इस इलाके से पांच पद्मश्री कलाकार निकल चुके हैं. यह उपलब्धि जितवारपुर को और भी विशिष्ट बनाती है.
9 करोड़ की परियोजना, गांव की नई सूरत
क्राफ्ट विलेज परियोजना के लिए कुल 9 करोड़ 2 हजार 470 रुपये की स्वीकृति मिली है. इसमें 80 प्रतिशत राशि यानी 7.20 करोड़ रुपये वस्त्र मंत्रालय देगा, जबकि शेष 1.80 करोड़ रुपये बिहार संग्रहालय की ओर से वहन किए जाएंगे.
इस बजट से गांव की सड़कें, मकान और तालाबों का सौंदर्यीकरण होगा. साथ ही देसी-विदेशी पर्यटकों के लिए गेस्ट रूम और कार्यशालाएं भी बनेंगी.
बिहार संग्रहालय की पहल से मिली मंजूरी
इस परियोजना की नींव 2025 में रखी गई, जब बिहार संग्रहालय के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने जितवारपुर को क्राफ्ट विलेज बनाने का प्रस्ताव वस्त्र मंत्रालय को भेजा. 6 जून, 2025 को दिल्ली में मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय बैठक में इस प्रस्ताव पर विस्तार से चर्चा हुई.
बिहार संग्रहालय के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन देकर पक्ष को मजबूती से रखा. नतीजा यह हुआ कि प्रस्ताव को तुरंत मंजूरी मिल गई.
केवल पेंटिंग ही नहीं, शिल्प की भी धरोहर
जितवारपुर की पहचान केवल मिथिला चित्रकला तक सीमित नहीं है. यहां की महिलाएं और कारीगर सिक्की शिल्प, पेपरमेसी, सुजनी और टेराकोटा जैसी पारंपरिक कलाओं में भी महारत रखते हैं. इन कलाओं को संरक्षित करने और बाजार से जोड़ने में क्राफ्ट विलेज की बड़ी भूमिका होगी.
बिहार संग्रहालय के निदेशक अंजनी कुमार सिंह ने कहा- जितवारपुर को क्राफ्ट विलेज बनाने से बहुत खुशी है. बिहार की कई कलाएं समृद्ध हैं, लेकिन अब तक कोई भी गांव क्राफ्ट विलेज का दर्जा नहीं पा सका था. जितवारपुर पहला उदाहरण बनेगा. यहां से पांच लोगों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है, यह अपने आप में गौरव की बात है.
मिथिला कला का नया केंद्र
जितवारपुर का क्राफ्ट विलेज बनने के बाद मिथिला कला केवल दीवारों और कैनवस तक सीमित नहीं रहेगी. यह कला गांव की गलियों, तालाबों और घरों के वास्तुशिल्प में भी झलकेगी. इस पहल से न केवल बिहार की लोककलाओं को नयी उड़ान मिलेगी, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी सशक्त होगी.
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