Chauth Chandra: कलंकित चांद को पूजने का पर्व है चौरचन, मिथिला के इस लोकपर्व में पकवान का खास महत्व
Chauth Chandra: बिहार और नेपाल के मिथिला इलाके में डूबते सूरज को ही नहीं, कलंकित चांद को भी पूजने की परंपरा रही है. भादों की चौथ को जब पूरा देश कलंकित चांद को देखने से परहेज करता है, तो मिथिला के लोग पूरे विधि-विधान से कलंकित चांद को न सिर्फ देखता है बल्कि उसकी पूजा भी करता हैं. मिथिला का यह लोकपर्व अब देश के विभिन्न हिस्सों में मिथिला समाज के लोग करने लगे हैं. इससे इस पर्व के संबंध में लोगों की जिज्ञासा भी बढ़ी है. लोग इसके पीछे के कारणों को जानना चाहते हैं. चौरचन मंगलवार 26 अगस्त को बनाया जायेगा.
Chauth Chandra: पटना. सनातन की आगम संस्कृति में प्रकृति पूजन का खास महत्व है. मिथिला की संस्कृति प्रकृति पूजक रही है. जल से लेकर अग्नि तक और सूर्य से लेकर चंद्रमा तक की पूजा यहां लोकपर्व के रूप में की जाती है. बिहार से नेपाल तक फैले मिथिला इलाके में डूबते सूरज को ही नहीं, कलंकित चांद को भी पूजने की परंपरा रही है. धार्मिक मान्यता बताकर जब पूरे देश में भादों की चौथ को चांद देखने से रोका जाता है, वहीं मिथिला में इस दिन सभी जाति और पंथ के लोग अपने-अपने आंगन में छठ की तरह ही पूरे विधि विधान से चांद को अर्घ देते हैं, दर्शन करते हैं और कलंक मुक्ति की कामना करते हैं.
छठ की तरह चौरचन भी है प्रकृति पूजक पर्व
भारत भर में मिथिला अपनी रंग भरी संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां के लोक रंग में पर्वों-त्योहारों का महत्व आज भी रचा बसा है. समय के इतने पहिए घूम जाने के बाद भी यहां परंपराएं महज औपचारिकताएं नहीं रह गई हैं, बल्कि वह धमनियों में घुलकर बह रही हैं. परंपरा का ऐसा ही एक लोकरंग बिहार के मिथिला में चौरचन के मौके पर नजर आता है. चौरचन लोक भाषा में अपभ्रंश है, असल में यह चौठचंद्र है. देश में जिसे सार्वजनिक पूजा कहा जाता है, उसे ही मिथिला में लोकपर्व कहा जाता है. लोकपर्व मनाने के लिए न पंडित की जरुरत होती है और न किसी मंत्र विधान की. छठ की तरह चौरचन भी जाति, लिंग और कर्मकांड से परे हैं. महिला और पुरुष दोनों व्रती होते हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं.
चौरचन में है पकवानों का है खास महत्व
भादो की चौथी तिथि को मिथिला के हर आंगन में सुबह से ही पकवानों का निर्माण शुरू हो जाता है. कहा जाता है कि पकवान खाना उस दिन अनिवार्य होता है. समाज का कोई इससे वंचित न रह जाये, इसलिए इस दिन पकवानों को बांटने की परंपरा रही है. दिनभर घर-घर में लोग न केवल पकवान बनाते हैं, बल्कि आसपास के घरों में पकवान भेजते भी हैं. घर के प्रमुख महिला या पुरुष व्रत रखकर चांद निकलने का इंतजार करते हैं. फिर जब आकाश में चौथी का चांद उगने में देर करता है, तो घर की बूढ़ी दादी, अम्मा या पूजा करने वाली स्त्री हाथ में खीर-पूरी लेकर कहती हैं, कहती हैं, उगा हो चांद, लपकला पूरी…
चांद क्यों हुए कलंकित
चांद के कलंकित होने के पीछे पौराणिक कथा है. यह गौरी पुत्र गणेश से कथा संबंधित है. पुराण में वर्णित कथा के अनुसार गणेश जब कहीं रास्ते से आ रहे थे तो फिसल कर गिर पड़े. उनके ढुलमुल शरीर को देखकर चंद्रमा हंस पड़े. खुद को खूबसूरत समझने वाले चंद्र से गणेश ने चांदनी चुराकर उसे कांतिहीन कर दिया और श्राप दिया कि आज के दिन जो तुझे देखेगा, उसे भी चोरी और झूठ का कलंक लगेगा. कहते हैं कि इस श्राप के असर से श्रीकृष्ण भी नहीं बच पाए थे और उन्हें दिव्य मणि चुराने का झूठा आरोप झेलना पड़ा था. एक मान्यता यह भी है कि इसी दिन ऋषि गौतम के क्रोध ने चंद्रमा को दागदार किया था और अहिल्या पत्थर बनी थी. राम ने उन्हें शाप मुक्त किया था.
कौन थे हमांगद ठाकुर, जिन्होंने बदल डाली परंपरा
16वीं शताब्दी में मिथिला के एक राजा हुए हेमांगद ठाकुर. वंशानुगत आधार पर हेमांगद राजा तो बन गए, लेकिन जनता से कर लेना, प्रताड़ित करना ये सब उनके बस की बात नहीं थी. ऐसे में दिल्ली के बादशाह को वार्षिक नजराना नहीं पहुंचा, लिहाजा उसने हेमांगद ठाकुर को तलब किया. उनसे पूछताछ हुई तो बोले, पूजा-पाठ में कर का ध्यान न रहा. बादशाह इस बात को नहीं माना. उसने टैक्स चोरी का आरोप लगाया और कैद में डाल दिया. कारागार के अंदर भी उन्होंने महज बांस की खपच्चियों और पुआलों के तिनकों से गणनाएं करके अगले 500 वर्षों तक होनेवाले सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की तिथियां खोज डालीं और इसके आगे के लिए गणना की सरल विधि भी निकाल ली. एक दिन पहरी ने देखा तो ये सब बादशाह को बताया. बोला कि मिथिला का राजा पागल हो गया है.
इस तरह मिटा हेमांगद पर लगा कलंक
बादशाह खुद हेमांगद को देखने कारावास पहुंचे. जमीन पर अंकों और ग्रहों के चित्र देख पूछा कि आप पूरे दिन यह क्या लिखते रहते हैं. हेमांगद ने कहा कि यहां दूसरा कोई काम था नहीं सो ग्रहों की चाल गिन रहा हूं. करीब 500 साल तक लगनेवाले ग्रहणों की गणना पूरी हो चुकी है. बादशाह ने तत्काल हेमांगद को ताम्रपत्र और कलम उपलब्ध कराने का आदेश दिया और कहा कि अगर आपकी भविष्यवाणी सही निकली, तो आपकी सजा माफ़ कर दी जाएगी. हेमांगद ने बादशाह को माह, तारीख और समय बताया. उन्होंने चंद्रग्रहण की भविष्यवाणी की थी. उनके गणना के अनुसार चंद्रग्रहण लगा और बादशाह ने न केवल उनकी सजा माफ़ कर दी, बल्कि आगे से उन्हें किसी प्रकार का कर(टैक्स) देने से भी मुक्त कर दिया. उन्होंने ये सारा विवरण ग्रहण माला नामक पुस्तक में संकलित किया है.
रानी हेमलता ने पहली बार देखा था कलंकित चांद
अकर(टैक्स फ्री) राज लेकर हेमांगद ठाकुर जब मिथिला आये तो रानी हेमलता ने कहा कि मिथिला का चांद आज कलंकमुक्त हो गये हैं, हम उनका दर्शन और पूजन करेंगे. रानी हेमलता के पूजन की बात जन जन तक पहुंची. लोगों ने भी चंद्र पूजा की इच्छा व्यक्त की. इस प्रकार 16वीं सदी में मिथिला की महारानी हेमलता ने चांद पूजने की इस परंपरा को सार्वजनिक पूजा के रूप में शुरुआत की. हर साल इस दिन मिथिला के लोग शाम को अपने सुविधानुसार घर के आँगन या छत पर चिकनी मिट्टी या गाय के गोबर से नीप कर पीठार से अरिपन देते हैं. पूरी-पकवान, फल, मिठाई, दही इत्यादि को अरिपन पर सजाया जाता है और हाथ में उठकर चंद्रमा का दर्शन कर उन्हें भोग लगाया जाता है.
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