Bihar News: छह जिलों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनेगा बिहार का मखाना
Bihar News: तालाबों की लहरों से निकलकर अब दुनिया के बाजारों तक… बिहार का हर जिला अब अपने खास उत्पाद से पहचाना जाएगा, लेकिन सबसे बड़ी चमक मखाने के हिस्से में आई है, जो छह जिलों की रीढ़ बनने जा रहा है.
Bihar News: बिहार का मखाना अब सिर्फ तालाब और खेतों तक सीमित नहीं रहेगा. राज्य सरकार और केंद्र की संयुक्त पहल ने इसे वैश्विक बाजार तक पहुंचाने की योजना बनाई है. छह जिलों को मखाने का हब बनाया गया है और बाकी जिलों के लिए भी अलग-अलग उत्पाद तय कर दिये गये हैं. अब यह सिर्फ किसानों की मेहनत की पहचान नहीं, बल्कि पूरे बिहार की अर्थव्यवस्था की नई धड़कन बनने जा रहा है.
मखाना को मिली सबसे बड़ी पहचान
प्रधानमंत्री फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज (PMFME) योजना के तहत बिहार के ‘एक जिला-एक उत्पाद’ (ODOP) की सूची हाल ही में केंद्रीय पोर्टल पर अधिसूचित की गई. इस सूची में मखाना को छह जिलों का मुख्य उत्पाद घोषित किया गया है. यह कदम बताता है कि बिहार का मखाना अब न केवल घरेलू उपभोग बल्कि निर्यात की दिशा में भी बड़ा रोल निभाने जा रहा है.
केंद्र सरकार ने बिहार को चिट्ठी भेजकर इस दिशा में तेजी से काम करने के निर्देश भी दिए हैं. इससे साफ है कि राज्य और केंद्र मिलकर मखाने को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की रणनीति बना रहे हैं.
पटना को बेकरी, औरंगाबाद को स्ट्रॉबेरी
मखाने के अलावा बिहार के अलग-अलग जिलों को उनके खास उत्पादों की पहचान दी गई है. पटना को बेकरी का हब माना गया है. औरंगाबाद को स्ट्रॉबेरी, बांका को कतरनी चावल और भागलपुर को जर्दालु आम की पहचान मिली है. किशनगंज में अनानास, मधेपुरा में आम, बेगूसराय और मुजफ्फरपुर में मिर्ची, लखीसराय में टमाटर और नवादा में पान की बेल को प्रमुख उत्पाद के रूप में चुना गया है.
पश्चिम चंपारण में गन्ना, पूर्वी चंपारण में लीची और समस्तीपुर में हल्दी को प्राथमिकता दी गई है. वैशाली को शहद का हब बनाया गया है, जबकि नालंदा और सारण आलू उत्पादन के लिए चिन्हित किए गए हैं.
पारंपरिक स्वाद भी शामिल
राज्य सरकार ने सिर्फ कृषि आधारित उत्पादों पर ही जोर नहीं दिया है, बल्कि परंपरागत व्यंजनों को भी पहचान दी है. भोजपुर को भारतीय पारंपरिक मिठाई—खुर्मा और बेलग्रामी का केंद्र बनाया गया है. बक्सर को बतिसा और पपड़ी जैसे स्थानीय मिष्ठान का दर्जा मिला है. अरवल और जहानाबाद को दाल आधारित उत्पाद जैसे बेसन और सत्तू से जोड़ा गया है. गया को शीशम आधारित उत्पादों की पहचान दी गई है, जबकि जमुई को कटहल और अन्य लघु वनोपज से जोड़ा गया है.
छोटे किसानों और उद्यमियों को मिलेगा सहारा
एक जिला-एक उत्पाद’ योजना का मकसद सिर्फ निर्यात बढ़ाना नहीं, बल्कि किसानों और छोटे उद्यमियों की आय को नई दिशा देना है. सरकार का कहना है कि इससे स्थानीय उत्पादकों को बाजार मिलेगा, पैकेजिंग और प्रोसेसिंग की आधुनिक सुविधाएं मिलेंगी और रोजगार भी बढ़ेगा.
बिहार सरकार ने यह भी तय किया है कि जिला स्तर से आगे बढ़कर प्रखंड स्तर पर भी एक-एक उत्पाद चिन्हित किया जाएगा. इससे छोटे स्तर के किसानों और कारीगरों को सीधा लाभ मिलेगा.
निर्यात के दरवाजे खुलने की उम्मीद
केंद्र और राज्य दोनों का लक्ष्य है कि बिहार के ये उत्पाद वैश्विक बाजार तक पहुंचें. मखाने की अंतरराष्ट्रीय मांग पहले से ही काफी है और अब योजना है कि इसे प्रोसेसिंग यूनिट्स और आधुनिक पैकेजिंग से जोड़कर बड़ी मात्रा में निर्यात किया जाए. यही रणनीति लीची, शहद, स्ट्रॉबेरी और पारंपरिक मिठाइयों के लिए भी अपनाई जाएगी.
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यह योजना जमीन पर सही तरीके से लागू हुई तो बिहार के ग्रामीण इलाकों में आर्थिक गतिविधियों का नया दौर शुरू होगा.
परंपरा और आधुनिकता का संगम
बिहार की पहचान हमेशा से कृषि आधारित रही है. मखाना, लीची, जर्दालु, कतरनी चावल जैसे उत्पाद राज्य की परंपरा और भूगोल का हिस्सा हैं. अब इन्हें ‘एक जिला-एक उत्पाद’ योजना के तहत नई पहचान दी जा रही है. इससे जहां पुरानी परंपराएं सुरक्षित रहेंगी. आधुनिक प्रोसेसिंग और अंतरराष्ट्रीय व्यापार से नए अवसर भी पैदा होंगे. बिहार सरकार को उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में यह योजना न सिर्फ राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती देगी.
