Bihar Election 2025: तीन मोर्चों पर मिली चुनाव आयोग को बड़ी जीत, जानिए कैसे बदला पूरा चुनावी माहौल
Bihar Election 2025: बिहार चुनावों का इतिहास हिंसा, दोहराए गए मतदान और मतदाता सूची पर उठते विवादों से भरा रहा है. लेकिन 2025 में पहली बार एक ऐसा चुनाव दर्ज हुआ, जिसने आयोग को तीन मोर्चों पर राहत दी. न कोई अपील, न दोबारा मतदान, और न ही एक भी हिंसक मौत.
Bihar Election 2025: बिहार में इस बार हुआ SIR सिर्फ एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं था, बल्कि वह आधार बना जिसने चुनावी माहौल को पूरी तरह बदल दिया. साफ-सुथरी मतदाता सूची, शांत मतदान और ऐतिहासिक भागीदारी, इन तीनों ने मिलकर 2025 के विधानसभा चुनाव को अब तक का सबसे सुगम लोकतांत्रिक अभ्यास बना दिया.
निर्वाचन आयोग का कहना है कि यह बदलाव सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अगले एक दर्जन राज्यों में भी इसी मॉडल को लागू करने की तैयारी शुरू हो चुकी है.
पहला मोर्चा: विवाद रहित मतदाता सूची, एक भी अपील नहीं
निर्वाचन आयोग की नज़र में यह चुनाव एक मिसाल इसलिए बन गया क्योंकि SIR के बाद तैयार हुई मतदाता सूची के खिलाफ एक भी अपील दर्ज नहीं हुई. मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार के अनुसार, यह स्थिति अभूतपूर्व है. आयोग ने 22 लाख मृत मतदाताओं, 36 लाख स्थायी रूप से राज्य छोड़ चुके नामों और 7 लाख से अधिक डुप्लीकेट प्रविष्टियों को हटाकर सूची को पूरी तरह शुद्ध किया.
यही वजह थी कि पहली बार सूची पर राजनीतिक विवाद लगभग गायब रहे. कांग्रेस और राजद ने भले ही चुनाव परिणामों के संदर्भ में इसे मुद्दा बनाने की कोशिश की, लेकिन आयोग ने साफ कहा, अगर किसी का नुकसान हुआ है, तो उसकी वजह गलत इंट्री को हटाया जाना है, न कि किसी प्रकार का पक्षपात.
दूसरा मोर्चा: मतदान का नया रिकॉर्ड, हिंसा शून्य
बिहार के चुनावी इतिहास में यह चुनाव एक अहम मोड़ साबित हुआ. पहली बार किसी भी मतदान केंद्र पर एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई. यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 1985 के चुनाव में 63 मौतें और 156 बूथों पर पुनर्मतदान हुआ था. 1990 में हिंसा और कदाचार के कारण 87 लोग मारे गए थे. 1995 में टी.एन. शेषन को चुनाव चार बार स्थगित करने पड़े थे. 2005 में तो 660 मतदान केंद्रों पर दोबारा वोटिंग हुई थी.
इसके मुकाबले 2025 का चुनाव एक शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक अभ्यास के रूप में सामने आया. आयोग की निगरानी, सुरक्षा तैनाती और साफ मतदाता सूची ने हिंसा और गड़बड़ियों की गुंजाइश लगभग खत्म कर दी. मतदान प्रतिशत भी बेहद ऊंचा रहा, जो SIR के असर को और मजबूत करता है.
तीसरा मोर्चा: पुनर्मतदान की जरूरत नहीं, चुनावी प्रक्रिया बनी विश्वसनीय
यह वो उपलब्धि है जिसकी कल्पना बिहार में शायद किसी ने नहीं की थी. 243 सीटों वाले चुनाव में एक भी बूथ पर दोबारा मतदान की जरूरत नहीं पड़ी. आयोग ने इसे “सबसे बड़ी प्रशासनिक सफलता” बताया है. पिछले चुनावों में कई सीटें फर्जी मतदान, बूथ कब्जा, गड़बड़ी अथवा हिंसा की वजह से दोबारा वोटिंग की मांग के केंद्र में रहती थीं. लेकिन SIR के बाद बूथ-वार सूची का निरीक्षण, फेस-वेरिफिकेशन, गृह सत्यापन और तकनीकी अपडेट ने यह समस्या लगभग खत्म कर दी.
आयोग के अनुसार, इस मॉडल को अब देश के 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, ताकि अगले आम चुनाव तक मतदाता सूचियों को पूरी तरह शुद्ध किया जा सके.
बिहार चुनाव 2025 सिर्फ परिणामों की वजह से नहीं, बल्कि निर्वाचन प्रक्रिया की पारदर्शिता, सुरक्षा और शांति के कारण भी याद रखा जाएगा. साफ मतदाता सूची, रिकॉर्ड मतदान, और बिना किसी पुनर्मतदान के संपन्न चुनाव, ये तीन संकेत बताते हैं कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया सही दिशा में आगे बढ़ रही है.
निर्वाचन आयोग के लिए यह चुनाव राहत नहीं, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए एक ब्लूप्रिंट है.
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