अमेरिका से लेकर साइकिलिंग फेडरेशन तक हुआ बिहार की बेटी का मुरीद, ट्रायल पर ज्योति ने कही ये बात

लॉकडाउन के बीच अपने पिता को साइकिल पर बैठा कर हरियाणा के गुरुग्राम से दरभंगा पहुंचने वाली बिहार की बेटी ज्योति इस समय सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है. पूरे देश के अलावा विदेशों में भी लोग उसके हौसले को सलाम कर रहे हैं.

By Rajat Kumar | May 23, 2020 11:51 AM

पटना : लॉकडाउन के बीच अपने पिता को साइकिल पर बैठा कर हरियाणा के गुरुग्राम से दरभंगा पहुंचने वाली बिहार की बेटी ज्योति इस समय सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है. पूरे देश के अलावा विदेशों में भी लोग उसके हौसले को सलाम कर रहे हैं. अब उन्हें भारतीय साइकिलिंग फेडरेशन से ट्रायल के लिए न्योता आया है.

गौरतलब है कि लॉकडाउन में दरभंगा की रहने वाली 15 वर्षीय ज्योति ने अपने घायत पिता को साइकिल पर बैठा कर गुरुग्राम, हरियाणा से 8 दिनों में दरभंगा तक 1200 किलोमीटर का सफर ​तय किया था. ज्योति के इस साहसिक कदम को देखते हुए भारतीय साइकिलिंग फेडरेशन ने उन्हें ट्रायल के लिए दिल्ली बुलाया है. न्यूज एंजेसी ANI से बात करते हुए ज्योति ने बताया कि मुझे साइकिल में रेस लगाने के लिए फोन आया, मैंने कहा कि मैं अभी तो रेस नहीं लगा सकती हूं क्योंकि मेरे पैर और हाथ सब दर्द कर रहे हैं. अब भारतीय साइकिलिंग फेडरेशन ने उन्हें एक महीने बाद ट्रायल के लिए आने को कहा है.

बता दें कि इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने ज्योति की कहानी को अपने ट्वीटर अंकाउट से शेयर किया था. इवांका ट्रंप ने अपने ट्वीट में लिखा था कि 15 साल की ज्योति कुमारी अपने घायल पिता को साइकिल से सात दिनों में 1,200 किमी दूरी तय करके अपने गांव ले गयी. इवांका ने आगे लिखा कि यह भारतीयों की सहनशीलता और उनके अगाध प्रेम के भावना का परिचायक है और साइकलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है.

बता दें कि दरभंगा जिला के सिंहवाड़ा प्रखंड के सिरहुल्ली गांव निवासी मोहन पासवान गुरुग्राम में रहकर ऑटो चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण किया करते थे. हालांकि वे दुर्घटना के शिकार हो गये. सूचना मिलने के बाद अपने पिता की देखभाल के लिये 15 वर्षीय ज्योति कुमारी वहां चली गयी थी. इसी बीच कोरोना वायरस की वजह से देशव्यापी बंदी हो गयी. आर्थिक तंगी के मद्देनजर ज्योति ने साइकिल से अपने पिता को सुरक्षित घर तक पहुंचाने की ठानी. ज्योति अपने पिता को इस पुरानी साइकिल के कैरियर पर एक बैग लिये बिठाया और 8 दिनों की लंबी और कष्टदायी यात्रा के बाद अपने गांव सिरहुल्ली पहुंच गयी

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