Hindi Journalism : बिहार में हिन्दी पत्रकारिता और नई धारा पत्रिका के 75 वर्ष
Hindi Journalism : 1947 में आज़ादी के बाद बिहार की पत्रकारिता के सामने दो चुनौतियां थीं—एक, लोकतंत्र में स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस का निर्माण करना, और दूसरी, साहित्य, संस्कृति व समाज को नई दिशा देकर देश के नव निर्माण में योगदान देना. पढ़ें आशुतोष कुमार पाण्डेय का लेख.
आशुतोष कुमार पाण्डेय, भारतीय भाषा कार्यक्रम, सीएसडीएस, दिल्ली
Email: ashutoshpandey010@gmail.com
Hindi Journalism : बिहार केवल राजनीति और सामाजिक आंदोलनों का ही नहीं, बल्कि हिन्दी पत्रकारिता का भी उर्वर स्थल रहा है. सत्रहवीं शताब्दी के भक्ति साहित्य से लेकर उन्नीसवीं–बीसवीं शताब्दी की पत्रकारिता तक, इस प्रदेश ने विचार, लेखन और जनजागरण की ऐसी परंपरा गढ़ी है, जिसने पूरे देश को दिशा दी. इसी गौरवशाली परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी है नई धारा पत्रिका, जिसने अप्रैल 1950 से अपनी यात्रा शुरू की और आज पचहत्तर वर्ष पूरे कर चुकी है. यह अवसर केवल पत्रिका के दीर्घ जीवन का उत्सव नहीं, बल्कि बिहार की पत्रकारिता, हिन्दी साहित्य और सामाजिक चिंतन की उस जीवंत परंपरा का भी स्मरण है, जिसने कठिन समय में भी अपनी रचनात्मकता और निर्भीकता बनाए रखी.
भारत में हिन्दी पत्रकारिता का उद्भव 1826 में पंडित युगल किशोर शुक्ल के उदन्त मार्तण्ड से माना जाता है. परंतु बिहार में पत्रकारिता का बीजारोपण उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ. पटना, भागलपुर, मुजफ्फरपुर और गया जैसे नगर उस समय शिक्षा और आंदोलन के केन्द्र बन रहे थे। राष्ट्रवादी चेतना, समाज सुधार और हिन्दी भाषा की प्रतिष्ठा के लिए पत्र-पत्रिकाएँ निकाली जाने लगीं. भागलपुर से ‘बिहार बन्धु’ (1872) निकली, यह पत्र हिन्दी भाषा और क्षेत्रीय अस्मिता को आवाज़ देने वाली थी. मुजफ्फरपुर से ‘आर्यगजट’ आर्य समाज के विचारों को प्रचारित करता रहा और पटना से ‘भारत मित्र’, ‘बिहार हेराल्ड’ और ‘सर्चलाइट’ जैसी पत्रिकाओं का प्रभाव बिहार से बाहर तक फैला. इस प्रकार बीसवीं शताब्दी के आरम्भ तक हिन्दी पत्रकारिता स्वतंत्रता आंदोलन से गहराई से जुड़ गई और गांधीजी के बिहार प्रवास, चंपारण सत्याग्रह और किसान आंदोलनों ने यहाँ के पत्रकारों को साहस और दृष्टि दी.
1947 में आज़ादी के बाद बिहार की पत्रकारिता के सामने दोहरी चुनौती थी. पहली लोकतंत्र में स्वतंत्र और उत्तरदायी प्रेस का निर्माण और दूसरी साहित्य, संस्कृति और समाज की नई दिशाओं को साधना. इसी पृष्ठभूमि में 1950 में श्री उदयराज सिंह के उपक्रम और सम्पादन में नई धारा पत्रिका की शुरुआत हुई. नाम ही अपने आप में घोषणापत्र था, पुरानी परंपराओं को सहेजते हुए नये विचार, नयी दृष्टि और नयी पीढ़ी को मंच देना. 1950 में नई धारा पत्रिका का आरम्भ पटना में हुआ. यह केवल साहित्यिक पत्रिका नहीं रही, बल्कि विचार और विमर्श का ऐसा मंच बनी जिसने कई पीढ़ियों के लेखकों, पत्रकारों और चिंतकों को जोड़ा. आरंभिक वर्षों में पत्रिका ने स्वतंत्रता के बाद के सामाजिक–राजनीतिक प्रश्नों को उठाया. भूमि सुधार, लोकतांत्रिक संस्थाओं की चुनौतियां और ग्रामीण समाज की समस्याएँ इसकी रचनाओं में दिखीं. दूसरा और तीसरा दशक के दौरान नई धारा में अज्ञेय, रामविलास शर्मा, नागार्जुन, फणीश्वरनाथ रेणु, गजानन माधव मुक्तिबोध जैसे लेखकों की उपस्थिति रही और कहानियाँ, कविताएं और आलोचनाएँ नई धारा को राष्ट्रीय मंच बनाती रहीं. सत्तर और अस्सी का दशक जेपी आंदोलन, आपातकाल और उसके बाद की राजनीतिक हलचलों में पत्रिका ने लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्ष में निर्भीक रुख अपनाया. नब्बे के दशक से आगे वैश्वीकरण, बाज़ारवाद और तकनीकी परिवर्तन के बीच भी पत्रिका ने साहित्यिक गंभीरता और वैचारिक संवाद को बनाए रखा. इस प्रकार आज जब पत्रिका पचहत्तर वर्ष पूरे कर रही है, तो यह इतिहास केवल काग़ज़ के पन्नों पर छपे लेखों का नहीं, बल्कि एक विचारधारा का इतिहास है. वह विचारधारा जो स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय पर टिकी रही.
नई धारा का सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि इसने पत्रकारिता और साहित्य के बीच सेतु का काम किया. आम तौर पर पत्र-पत्रिकाएं या तो खबरनुमा होती हैं या फिर शुद्ध साहित्यिक. लेकिन नई धारा ने दोनों को साथ लेकर चला. साहित्य को सामाजिक सरोकार से जोड़ा और जब रेणु की कहानियाँ या नागार्जुन की कविताएँ जब नई धारा में छपीं, तो वे सिर्फ साहित्यिक उपलब्धि नहीं रहीं, बल्कि समाज के हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज़ बन गईं. पत्रकारिता की गहराई और विश्लेषण की क्षमता ने पत्रिका को तात्कालिक खबरों से आगे बढ़कर विश्लेषणात्मक दृष्टि दी, जो अख़बारी पत्रकारिता में अक्सर नदारद रहती है. नई पीढ़ी का मंच इस पत्रिका का मुख्य धेय्य रहा. दशकों से यह पत्रिका उभरते लेखकों और पत्रकारों को प्रकाशित करती रही है.
वर्तमान समय में पत्रकारिता अभूतपूर्व जिम्मेदारियों से गुज़र रही है, एक ओर डिजिटल मीडिया की तेज़ी तो दूसरी ओर बदलते माध्यम, साहित्यिक सरोकार और बाज़ार आधारित पत्रकारिता. ऐसे दौर में नई धारा जैसी पत्रिकाएं यह स्मरण कराती हैं कि पत्रकारिता केवल सूचना देने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को दिशा प्रदान करने वाली सृजनात्मक शक्ति है. इसका अनुभव पत्रिका के संपादकों ने समय-समय पर कराया है चाहे वे शुरूआती संपादक- उदयराज सिंह, रामवृक्ष बेनीपुरी, शिवपूजन सहाय हों या समकालीन संपादक प्रमथराज सिन्हा. पचहत्तर वर्षों का यह सफ़र इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह हमें बताता है—गंभीरता, धैर्य और मूल्य-आधारित पत्रकारिता कभी पुरानी नहीं होती. ‘नई धारा’ अब डिजिटल मंच पर भी सक्रिय है. इसके माध्यम से यह अपने गौरवशाली अतीत को संजोते हुए नए पाठकों तक पहुंच बनाती है और संपादक मण्डल यह सुनिश्चित करता है कि पत्रिका अपने मूल्यों और इतिहास से कभी समझौता न करे.
बिहार की धरती ने हिन्दी पत्रकारिता को जीवंत परंपरा दी है. बिहार बन्धु से लेकर नई धारा तक, यह यात्रा केवल पत्रों की नहीं, बल्कि विचारों, संघर्षों और जनचेतना की यात्रा है. आज जब बिहार की महत्वपूर्ण पत्रिका नई धारा अपने पचहत्तर वर्ष पूरे कर रही है, तो यह समय हमें अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य की राह बनाने का आह्वान करता है. इस पत्रिका का संदेश साफ़ है कि ‘पत्रकारिता का उद्देश्य केवल घटनाओं को दर्ज करना नहीं, बल्कि समय की नब्ज़ पकड़ना और समाज को बेहतर दिशा देना है.’
