राजनीति में उदारता की कमी पर लेखक रस्किन बांड भी चिंतित
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक मौजूदा चुनाव के दौरान कुछ नेताओं की बदजुबानी से बच्चों के मनपसंद लेखक भी हैं दुखी मशहूर लेखक और कवि रस्किन बांड ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि ‘आज की राजनीति में उदारता नहीं रही. पहले के नेता चाहे जिस किसी दल में हों, आपस में दोस्त भी होते […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
मौजूदा चुनाव के दौरान कुछ नेताओं की बदजुबानी से बच्चों के मनपसंद लेखक भी हैं दुखी
मशहूर लेखक और कवि रस्किन बांड ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि ‘आज की राजनीति में उदारता नहीं रही. पहले के नेता चाहे जिस किसी दल में हों, आपस में दोस्त भी होते थे.’ बच्चों के मनपसंद लेखक 84 वर्षीय रस्किन आमतौर पर राजनीति पर नहीं बोलते या लिखते.
पर, लगता है कि मौजूदा चुनाव के दौरान कुछ नेताओं की बदजुबानी से रस्किन बांड भी दुखी हो गये हैं. ब्रिटिश राॅयल एयरफोर्स के अधिकारी के पुत्र रस्किन बांड भारत में ही बस गये हैं. यहींं के नागरिक हैं. मसूरी में रहते हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में बांड ने मतदान नहीं किया. मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि स्थानीय चुनाव में मैं हमेशा मतदान करता हूं. पर, लोकसभा चुनाव में कभी-कभी मतदान नहीं कर पाता.
उन्होंने यह नहीं बताया कि इस बार मतदान न करने का कारण क्या था, पर संभव है कि राजनीति के गिरते स्तर का असर उनके दिल ओ दिमाग पर रहा हो. पद्मभूषण से सम्मानित रस्किन ने जितनी सरकारों और नेताओं को अब तक देखा है, उतना शायद ही किसी और ने देखा होगा. उस अनुभव के आधार पर ही वे कह रहे थे कि उदारता कम हो गयी है. रस्किन बांड जैसे निष्पृह बुद्धिजीवी की मनःस्थिति पर आज उन नेताओं को चिंतन करना चाहिए जो चुनाव ऐसे लड़ रहे हैं मानो वे निजी संपत्ति की लड़ाई लड़ रहे हों.
चुनाव पर असर डालने वाली खबर : खबर है कि जी रोहिणी आयोग अतिपिछड़ों के लिए अलग से आरक्षण कोटा तय कर देने की सिफारिश कर सकता है. आयोग को अगले महीने अपनी रपट सरकार को देनी है. याद रहे कि अभी केंद्रीय सेवाओं में पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण है.
अक्तूबर, 2017 में केंद्र सरकार ने दिल्ली हाइकोर्ट की रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी की अध्यक्षता में आयोग गठित किया था. उस आयोग को इस बात की जांच करनी है कि पिछड़ों को समरूप ढंग से आरक्षण का लाभ मिल रहा है या नहीं. आयोग के सूत्रों के अनुसार कुल 2633 जातियों में से 25 प्रतिशत जातियों को ही आरक्षण का 97 प्रतिशत लाभ मिल जा रहा है.
इस बात को ध्यान में रखते हुए आयोग यह सिफारिश कर सकता है कि अतिपिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत में से 8 या दस प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर दिया जाये. बिहार सहित कई राज्यों में अतिपिछड़ों के लिए अलग से प्रावधान है. पर, सवाल है कि चुनाव प्रक्रिया जारी रहने के क्रम में सरकार ऐसी सिफारिश को लागू कर सकती है? चुनाव आयोग की अनुमति से ऐसा संभव है. पर, लगता नहीं है कि आयोग इसकी अनुमति देगा. पर इस खबर मात्र से चुनाव पर कुछ फर्क पड़ सकता है.
और अंत में : चुनाव के अवसर पर एक खास तरह का असत्य है, जो अधिकतर नेता बोलते हैं. सारे रिजल्ट आ जाने के ठीक पहले तक असत्य बोलते रहते हैं. चुनाव या मतों की गिनती के दौरान आप किसी नेता से पूछेंगे कि आपके दल के उम्मीदवार का क्या हाल है तो नेता बतायेंगे कि हम भारी मतों से जीत रहे हैं. भले उनके उम्मीदवार हारने वाले क्यों न हों. कुछ नेता खुद भी समझते हैं कि हमारा उम्मीदवार फलां क्षेत्र में हार जायेगा, फिर भी वे अंत-अंत तक झूठ बोलते रहते हैं.
इससे वैसे नेताओं के बारे में यह धारणा बनती है कि नेता का काम ही है झूठ बोलना. रिजल्ट के बाद वे कहते हैं कि क्या करें? पहले ही कह देंगे कि हम हार जायेंगे तो मतगणना केंद्रों पर हमारा एजेंट अपने काम में रुचि नहीं लेगा. पर, इस झूठ के बीच कुछ नेता सावधानी भी बरतते हैं. वे कहते हैं कि यह बात तो मतदाता ही जानते हैं कि वे इस बार हमें हरवा रहे हैं या जितवा रहे हैं. मैं तो खुद फाइनल रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रहा हूं.