पटना : चार सिपाहियों के भरोसे कोइलवर पुल से गुजरते हैं 8000 वाहन, जाम से मुक्त करने के प्रशासन के तमाम दावे फेल

अनिकेत त्रिवेदी पटना : पटना या भोजपुर जिला प्रशासन की ओर से कोइलवर पुल को जाम मुक्त करने के लिए लंबे-लंबे दावे किये जाते रहे हों, लेकिन प्रभात खबर टीम ने जब कोइलवर पुल की पड़ताल की, तो देखा कि सिर्फ चार सिपाहियों के भरोसे ही पुल से गुजरनेवाले लगभग आठ हजार वाहनों को छोड़ […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 15, 2019 6:58 AM
अनिकेत त्रिवेदी
पटना : पटना या भोजपुर जिला प्रशासन की ओर से कोइलवर पुल को जाम मुक्त करने के लिए लंबे-लंबे दावे किये जाते रहे हों, लेकिन प्रभात खबर टीम ने जब कोइलवर पुल की पड़ताल की, तो देखा कि सिर्फ चार सिपाहियों के भरोसे ही पुल से गुजरनेवाले लगभग आठ हजार वाहनों को छोड़ दिया गया है. दोनों ओर दो-दो सिपाही तैनात हैं. एक बार में पुल के एक फ्लैंक को एक तरफ से भारी वाहनों के आने के लिए खोला जाता है. लगभग एक घंटे तक एक तरफ से भारी वाहन आते हैं. उस दौरान दूसरी तरफ के भारी वाहनों को रोक दिया जाता है.
इस रोटेशन के बीच करीब दस से 15 मिनट का अंतराल भी होता है. एक सिपाही पुल के दूसरी ओर अपने सहयोगी को फोन कर सूचना देता है, इसके बाद दूसरी ओर से वाहनों को छोड़ा या रोका जाता है. कई बार फोन नहीं लगने की स्थिति में वाहन तेजी में पुल में प्रवेश कर जाते हैं और फिर जाम लग जाता है.
1400 मीटर का सफर 12 घंटे में : कोइलवर पुल (1400 मीटर) पर जाम के कारण ऐसा नहीं कि केवल पुल पर ही यातायात बाधित हो रही है. अगर कोई भारी वाहन बिहटा की ओर से आता है, तो उसे आठ किमी पहले बिहटा मोड़ से ही पुल पर जाने के लिए लाइन में लगना होता है.
वर्तमान स्थिति है कि अगर कोई ट्रक रात के 12 या एक बजे बिहटा मोड़ पर आता है, तो पुल के मुहाने पर उसे आने के लिए दिन के 12 बजे तक का इंतजार सामान्य स्थिति में करना पड़ता है. वहीं, आरा-छपरा से भारी वाहनों को आने के लिए 15 किमी पहले बबुरा मोड़ के पास से ही लाइन लगानी पड़ती है. इधर, बबुरा मोड़ से पुल के पास आने में भी 14 घंटे का समय लगता है.
बालू, गिट्टी, एलपीजी से लेकर अन्य संसाधन प्रभावित
लंबे समय से जाम के कारण अब इसका असर न सिर्फ आधे बिहार पर पड़ने लगा है, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ने लगा है. सबसे पहले तो सोन नद में जिस लाल बालू का खनन होता है, वही प्रभावित हो रहा है. दिन में बालू लदे ट्रकों की संख्या आधी हो गयी है. 90 फीसदी ट्रक बालू के ही हैं. इसके अलावा गया से गिट्टी का ट्रांसपोर्टेशन भी इसी मार्ग से होता है. यही नहीं, तीसरा कारण एलपीजी को लेकर है.
पटना, फतुहा, बाढ़, पीरो, बिक्रमगंज, सीवान, गोपालगंज से लेकर आरा-सासाराम आदि क्षेत्रों में एलपीजी की सप्लाइ के लिए इसी पुल का सहारा लिया जाता है. ऐसे में काेइलवर पुल पर वाहनों का भार बढ़ जाता है. गैस की आपूर्ति में एक सप्ताह का बैकलॉग है. आधे वाहन ही समय पर पहुंच रहे हैं.
एक-एक घंटे पर एक फ्लैंक को एक तरफ से भारी वाहनों के लिए खोला जाता है
छोटे वाहन वाले भी परेशान
ऐसा नहीं कि जाम से केवल भारी वाहन ही फंस रहे हैं. जाम से छोटे वाहन और आम यातायात भी बाधित हो रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि पुल की दोनों तरफ स्थायी तौर पर सड़क के एक फ्लैंक में भारी वाहनों का कब्जा है.
अब आधे सड़क में ही आवाजाही की जा रही है. इस कारण, बीच में भी जाम लग जाता है. सड़क की दोनों तरफ कच्चे रास्ते बना कर छोटे वाहन चलाये जा रहे हैं. कच्चे रास्ते से वाहनों का परिचालन कराये जाने से हर दिन हादसे भी होते रहते हैं.
गया से गिट्टी लेकर जा रहा हूं. मुगलसराय जाना है. सफर पूरा करने में दो दिन और पुल पार करने में दो दिन अलग से लग जा रहा है. दो माह से ज्यादा समय हो गया, स्थिति बरकरार है. किराया बढ़ने से आमदनी कम हो गयी है.
धनजी यादव, ट्रक ड्राइवर

Next Article

Exit mobile version