रेलवे परीक्षा में नकल कराने वाले गिरोह का पर्दाफाश, बिहार से गैंग का संचालन करता है मुख्य सरगना

लखनऊ/पटना : उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने रेलवे भर्ती बोर्ड की समूह-डी पद की परीक्षा में नकल कराने वाले बड़े गिरोह का पर्दाफाश करते हुए दस लोगों को गिरफ्तार किया है. गिरफ्तार लोगों में गिरोह का सरगना राहुल कुमार भी शामिल है. एसटीएफ प्रवक्ता ने आज बताया कि रेलवे भर्ती बोर्ड […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 8, 2018 4:25 PM

लखनऊ/पटना : उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने रेलवे भर्ती बोर्ड की समूह-डी पद की परीक्षा में नकल कराने वाले बड़े गिरोह का पर्दाफाश करते हुए दस लोगों को गिरफ्तार किया है. गिरफ्तार लोगों में गिरोह का सरगना राहुल कुमार भी शामिल है. एसटीएफ प्रवक्ता ने आज बताया कि रेलवे भर्ती बोर्ड द्वारा आयोजित ग्रुप-डी पद की परीक्षा में नकल कराने वाले अंतर्राज्यीय गिरोह के सरगना सहित 10 सदस्य गिरफ्तार किये गये हैं.

प्रवक्ता ने बताया कि गिरोह के सदस्यों को कानपुर नगर के कल्याणपुर थानाक्षेत्र से कल पकड़ा गया. उन्होंने बताया कि गिरफ्तार लोगों के कब्जे से 11 मोबाइल फोन, 21 प्रवेश पत्र, एक फर्जी वोटर आईडी, पांच खाली चेक, तीन ड्राइविंग लाइसेंस, एक पेटीएम कार्ड, 19 आधार कार्ड, छह एटीएम कार्ड, तीन पैन कार्ड, एक बुलेट मोटरसाइकिल, एक होण्डा स्कूटी और 56260 रुपये नकद बरामद हुए हैं.

प्रवक्ता ने बताया कि विगत कुछ दिनों से एसटीएफ को सूचना मिली थी कि उक्त परीक्षा में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में उम्मीदवारों के स्थान पर साल्वर बैठाने वाला गैंग सक्रिय है. यह गैंग विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्नपत्र लीक कराकर और साल्वर बैठाकर अभ्यर्थियों से मोटी रकम ले रहा था और उत्तर प्रदेश सहित अन्य कई राज्यों के विभिन्न जिलों के भिन्न-भिन्न परीक्षा सेंटर पर अपने उम्मीदवार का पेपर साल्व करवाता था. गिरफ्तार अभियुक्तों से पूछताछ में यह बात प्रकाश में आयी कि इस गैंग का मुख्य सरगना रंजीत यादव है, जो मोहल्ला महेंद्रू पोस्ट ऑफिस पटना में किराये का कमरा लेकर रहता है तथा वहीं से अपने गैंग का संचालन करता है.

रंजीत मूल रूप से जिला मधुबनी, बिहार का रहने वाला है. रंजीत यादव ने हर उस राज्य में अपना एक समूह बना रखा है, जहां पर परीक्षा होती है. यह गैंग के सदस्य साल्वर को पैसे देकर लाते हैं तथा परीक्षा देने तक उसकी निगरानी भी करते हैं. हर अभ्यर्थी से पांच से छह लाख रुपये लिये जाते थे.

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