प्रजातंत्र में साहित्यकारों को न तो आदर मिल रहा और न ही आश्रय : शिवनंदन सलिल
कोष के दुरुपयोग से संस्थाएं कलह का अड्डा बन जाती हैं.
मुंगेर साहित्य प्रहरी की गोष्ठी मंगल बाजार में यदुनंदन झा द्विज की अध्यक्षता में हुई. मुख्य अतिथि स्थानीय आईटीसी के उपप्रबंधक रेवा शंकर थे. जबकि संचालन शिवनंदन सलिल ने किया. कार्यक्रम के प्रथम चरण में “साहित्यकारों के लिए आर्थिक कोष ” विषय पर विषद चर्चा हुई. अलख निरंजन कुशवाहा ने कहा कि जो साहित्यकार आर्थिक दृष्टि से दुर्बल हैं. उनकी महत्वपूर्ण रचनाएं कापियों में उनके साथ ही गंगा में विसर्जित हो जाती हैं या दफन हो जाती हैं. अत: एक कोष होनी चाहिए , ताकि उनकी रचनाएं छप सकें. शिवनंदन सलिल ने कहा कि राजतंत्र में कवियों को आदर और आश्रय दोनों मिलता था. किंतु प्रजातंत्र में साहित्यकारों को न तो वो आदर मिल रहा है न आश्रय. इसलिए शासन से आशा नहीं करनी चाहिए. साहित्यकारों को खुद कोष कायम करना चाहिए. ज्योति कुमार सिन्हा ने कहा कि कोष का उपयोग पारदर्शी तरीके से होना चाहिए. कोष के दुरुपयोग से संस्थाएं कलह का अड्डा बन जाती हैं.रेवाशंकर ने कहा कि सक्षम लोग गुप्तदान देकर कोष खड़ा करें. यदुनंदन झा द्विज ने कहा कि साहित्यकार को खुद सक्षम होना होगा, इसके लिए हमलोग एक साहित्यिक समाज रचें और एक दूसरे की सहायता करके रचनाओं को डायरी से निकाल कर किताब बनाएं. कवयित्री किरण शर्मा, जफर अहमद, एहतेशाम आलम सहित अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे. कार्यक्रम के दूसरे चरण में भव्य कवि गोष्ठी हुई. जिसमें सुनील सिन्हा, डॉ रघुनाथ भगत, हरिशंकर सिंह, किरण शर्मा, सनोवर शादाब, विजेता मुद्गलपुरी, ज्योति सिन्हा, शिवनंदन सलिल, रेवाशंकर, अलख निरंजन कुशवाहा, खालिद शम्स सहित अन्य कवियो ने अपनी-अपनी रचनाएं पढ़ कर वाहवाही लूटी.
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