गुरु वह मार्गदर्शक है, जो हमें ज्योतिर्मय पथ पर चलाना सिखाता है : स्वामी निरंजनानंद
बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य पद्मश्री स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने अपने गुरु स्वामी सत्यानंद के जीवन चरित्र और शिक्षाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु वह व्यक्ति और शक्ति है, जो हमारे जीवन में उन मानसिक, शारीरिक व आध्यात्मिक बाधाओं को हटाता है, जो हमार मन और आत्मा की रचनात्मक अभिव्यक्तियों को बांधे रखते हैं.
संन्यास पीठ पादुका दर्शन में चल रहे सत्यम् पूर्णिमा कार्यक्रम की पूर्णाहुति मुंगेर बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य पद्मश्री स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने अपने गुरु स्वामी सत्यानंद के जीवन चरित्र और शिक्षाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु वह व्यक्ति और शक्ति है, जो हमारे जीवन में उन मानसिक, शारीरिक व आध्यात्मिक बाधाओं को हटाता है, जो हमार मन और आत्मा की रचनात्मक अभिव्यक्तियों को बांधे रखते हैं. गुरु वह मार्गदर्शक है, जो हमें ज्योतिर्मय पथ पर चलना सिखाते हैं. वे गुरुवार को संन्यासपीठ पादुका दर्शन में चल रहे सत्यम पूर्णिमा कार्यक्रम के पूर्णाहुति के अवसर पर उपस्थित लोगों को संबाधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि गुरु वह सिद्ध व्यक्ति होते है, जो पूर्णता को दर्शाता है और स्वामी सत्यानंद ऐसे ही व्यक्ति रहे हैं. उनका जीवन और उनके भाव हमेशा दूसरों के हित के लिए तत्पर रहे हैं. अपने गुरु स्वामी शिवानंद के निर्देशों का पालन करते हुए उन्होंने खुद को सेवा व कर्म योग में सदैव तल्लीन रखा और शुद्धता व सकारात्मक, रचनात्मक को प्राप्त किए. स्वामी सत्यानंद 21 वर्ष की आयु में अपने गुरु के आश्रम में गये थे और अगले 20 वर्षो तक वे उनके साथ रहे. जब स्वामी शिवानंद ने उन्हें आश्रम छोड़ने वयोग को नगर-नगर और डगर-डगर पहुंचाने का कार्य सौंपा, तब उन्होंने सबसे यह भी कहा कि सत्यम ही मेरा असली उत्तराधिकारी है जो योग के प्रकाश को पूरे विश्व में फैलायेगा. उन्होंने कहा कि स्वामी सत्यानंद ने अपने गुरु के आदेश को पूरा करने के क्रम में बिहार योग विद्यालय और रिखियापीठ आश्रम की स्थापना की. दोनों स्थानों को उनके मुख्य उद्देश्य भी दिए जो स्वामी शिवानंद की शिक्षाओं पर आधारित है. बिहार योग विद्यालय के लिए शुद्धता, ध्यान, साक्षात्मकार और रिखिखिपीठ के लिए सेवा, प्रेम व दान. उन्होंने संन्यास पीठ के निर्माण का भी आदेश उनको अच्छा बनो, अच्छा करो के उद्देश्य के साथ दिया था. यह भी कहा था कि संन्यास पीठ की गतिविधियां सदैव साधू, समाज और संस्कति के उत्थान के लिए कार्यरत रहेंगी.
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