सावित्री-सत्यावान प्रसंग के साथ देवी भागवत संपन्न
सावित्री-सत्यावान प्रसंग के साथ देवी भागवत संपन्न
मुंगेर. पादुका दर्शन संन्यासपीठ में चल रहे देवी भागवत अनुष्ठान का मंगलवार को तीज के मांगलिक पर्व पर पूर्णाहुति संपन्न हुआ. तीज के दिन स्वामी गोविंद देव गिरी महाराज ने कथा का शुरूआत और अंत सावित्री-सत्यवान प्रसंग के साथ किया. बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की मौजूदगी में कार्यक्रम संपन्न हुआ. स्वामी गोविंद देव गिरी ने कहा कि भारतीय परंपरा में सावित्री पतिव्रत्य की पराकाष्ठा मानी गयी है. उनका मांगलिक आख्यान एक अत्यंत प्रेरणादायक आदर्श रहा है. यूं तो यह आख्यान महाभारत में भी आता है, परंतु वहां यह अधिक कथा प्रधान है. देवी भागवत में अधिक उपदेश प्रधान. जब यमराज सत्यवान को अपने यम पाश में बांध कर यमलोक ले जा रहे होते हैं, तो सावित्री भी पीछे चलते-चलते अनेक प्रश्न पूछती जाती है. इन प्रश्नों के उत्तर केे क्रम में यमराज कर्म के सिद्धांत, धर्म के आचरण, पाप-पुण्य के फल विषयों पर प्रकाश डालते है. सावित्री के गूढ प्रश्नों से प्रसन्न होकर यमराज कहते हैं, पुत्री सत्यवान के प्राण छोड़कर मुझसे कोई भी वरदान मांग लो, तब सावित्री अपने ससुर की दृष्टि, उनका राज्य और सौ भाईयों का वरदान मांगती है. जिन्हें सहर्ष देते जाते है. अंत में वे सावित्री को एक और वरदान मांगने को कहते है और सावित्री जब विनम्रतापूर्वक सौ भाइयों के साथ सौ पुत्रों का वर मांगती है तो यमराज तुरंत तथास्तु तो कह देते है, लेकिन फिर उन्हे अहसास होता है कि सावित्री जैसी प्रतिव्रता, तभी पुत्रवती हो सकती है. जब सत्यवान को पुन: जीवित किया जाये. इस प्रकार सावित्री ने अपनी विनम्रता, विवेक और पतिव्रत्य के बल पर दो कुलों का कल्याण कर दिया. उन्होंने इंद्र की लक्ष्मी उपासना, गोमाता की महिला, पंच गव्यों का स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव, पंच देवियों दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, सावित्री एवं राधा की महिमा के प्रसंगों को प्रस्तुत किया. अनुष्ठान का समापन हवन और ग्रंथ पूजन से हुआ.
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