Madhubani : महिलाओं ने की खोईच भराई की रस्म पूरी
प्रखंड क्षेत्र स्थित विभिन्न दुर्गा मंदिरों में मंगलवार को महिलाओं ने मां के चरणों में खोईच भराई की रस्म पूरा की.
बाबूबरही. प्रखंड क्षेत्र स्थित विभिन्न दुर्गा मंदिरों में मंगलवार को महिलाओं ने मां के चरणों में खोईच भराई की रस्म पूरा की. इसे लेकर सोमवार आधी रात से ही महिलाओं का लंबी लाइन दुर्गा मंदिर परिसर में लग गयी. बताया गया कि मंदिर में निशा पूजा समाप्त होते ही मां के चरणों में खोईच भराई का रस्म शुरू हो गया. बाबूबरही बाजार, बाबूबरही गांव, सरघारा, मौआही, भटगामा, देवहार, खरगबनी, दोनवारी, खोजपुर सहित कुल 28 पूजा पंडालों एवं मंदिरों में खोईच भराई के लिए लंबी लाइन लगी रही.राजनगर: महाराजा रामेश्वर सिंह का सपनों का नगर राजनगर राज पैलेस में आते ही अजीब सुकून मिलता है. कई रहस्यों को अपने आप मे समेटे राजनगर राज पैलेस के सभी मंदिर एवं स्थापित देवता तंत्र विद्या पर आधारित है. मंगलवार को नवरात्र के महा अष्टमी तिथि को माता बहनों ने खोइछ भरा. राजनगर के राज पैलेस, सुगौना भैरव स्थान, सुगौना ड्योढ़ी, भटसिमर चौक, भटसिमर नीलमणि स्थान, भटसिमर मलहनमा, कोईलख, रामपट्टी, भरिया विसनपुर, ललित लक्ष्मीपुर, नवटोल पटवारा, सिमरी, शिविपट्टी, रामखेतारी, राघोपुर बलाट, रांटी, रांटी ड्योढ़ी, मंगरौनी पूर्व, मंगरौनी पश्चिम, मंगरौनी बूढ़ी माई स्थान, मंगरपट्टी उत्तर, मंगर पट्टी दक्षिण, पिलखबार पूरब, पिलखबार पश्चिम, हरिनगर, बेलहबार, खोइर, बलहा सहित 28 स्थानों पर अहले सुबह से महिलाओं ने खोंइछ भरी. बताया जाता है कि राजनगर राज पैलेस में स्थापित दुर्गा मंदिर में वर्ष के चारो नवरात्र मनाया जाता था. शारदीय नवरात्र, शिशिर नवरात्र, वासंतिक नवरात्र तथा ग्रीष्म नवरात्र भी धूमधाम से मनाया जाता था. चारो नवरात्र में भी खास यह था कि यहां की नवरात्र में षोडकोपचार पद्धति से पूजा की जाती थी. अब भले ही चारो नवरात्र नही मनाया जाता है. अब भले ही षोडकोपचार विधि से पूजा न होकर सामान्य वैदिक विधि से पूजा होती है. लेकिन यहां की अलौकिकता अब भी बरकरार है. इस स्थान पर आने से एक अजीब सुकून मिलती है. राजनगर स्थित राज पैलेस के बारे में बताया जाता है कि महाराजा रामेश्वर सिंह एक साथ कई देवी देवताओं के मंदिर स्थापित कर एक सिद्ध पीठ स्थापित करना चाहते थे. इस पीठ के स्थापना के लिए वह कई स्थानों का भूमि जांच कराये थे. सबसे पहले उन्होंने जयनगर प्रखंड के कोरहिया में पीठ स्थापना के लिए कार्य आरंभ किया था. लेकिन अपशकुन के कारण उस जगह को छोड़ दिया गया. फिर बाबूबरही के बरुआर में भी पीठ स्थापना के लिए कार्य आरंभ किया गया. लेकिन वहां भी वांछित स्थल नही मिलने के कारण उस जगह को भी छोड़ना पड़ा. महाराज सिद्ध पीठ स्थापना के लिए जब भूमि खोजते खोजते जब बछौर परगना के कसियौना, केवान एवं चिचरी मौजा के बीच से होकर जा रहे थे, तो वहां एक अजूबा दृश्य दिखाई दिया. महाराजा रामेश्वर सिंह ने देखा कि एक अदना सा मेढक जो सांप को देखकर भागकर छिप जाता है. वही अदना मेढक एक बड़ा सांप को मुंह से पकड़कर खिंचकर ले जा रहा था. यह दृश्य देखकर महाराजा रामेश्वर सिंह को अचरज में डाल दिया. ततपश्चात उन्होंने तंत्र विद्या से जब उस जगह का परीक्षण किया तो मिथिलांचल का सबसे उपयुक्त और पवित्र भूमि पीठ के लायक सिद्ध हुआ. इसके बाद जिस जगह पर सांप और मेढक का विपरीत क्रिया देखा था. उस जगह पर महाराज द्वारा सबसे पहले गोसाउनिक मंदिर बनबाया. इसके बाद अन्य मंदिर और देवी देवताओं को तंत्र विद्या से सिद्ध कर स्थापित किया.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
