फाइलेरिया ग्रसित मरीजों की बेहतर देखभाल के लिए मिला एमएमडीपी किट

जिले को फाइलेरिया मुक्त बनाने की दिशा में स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयास कर रहा है. एक तरफ जहां जिले के प्रखंडों में 1846 मरीज के लिए फाइलेरिया क्लीनिक एमएमडीपी की शुरुआत की गयी है.

By Prabhat Khabar | May 15, 2024 7:40 PM

किशनगंज.हाथीपांव के साथ जीवन बोझिल महसूस होता है. यह आवश्यक है कि मरीज फ़ाइलेरिया का प्रबंधन कैसे हो इसके बारे में जाने और इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाये. फाइलेरिया उन्मूलन मुहिम को लेकर जिले में स्वास्थ्य विभाग सजग है. जिले को फाइलेरिया मुक्त बनाने की दिशा में स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयास कर रहा है. एक तरफ जहां जिले के प्रखंडों में 1846 मरीज के लिए फाइलेरिया क्लीनिक एमएमडीपी की शुरुआत की गयी है.

सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया की पोठिया प्रखंड के फाइलेरिया क्लिनिन्क में फाइलेरिया ग्रसित मरीजों के प्रभावित अंग की बेहतर देखभाल के लिए 06 फाइलेरिया ग्रसित मरीजों को मोरबिडिटी मैनेजमेंट एंड डिसेबिलिटी प्रीवेंशन (एमएमडीपी) किट एवं यूडीआईडी सर्टिफिकेट भी प्रदान किया गया. सभी मरीजों को किट प्रदान करते हुए स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा फाइलेरिया ग्रसित अंगों की देखभाल करने और नियमित रूप से आवश्यक दवाइयों के उपयोग करने की जानकारी दी गई. इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग द्वारा सभी फाइलेरिया के मरीजों को अपने घर एवं आसपास के लोगों को फाइलेरिया से सुरक्षित रहने के प्रति जागरूक करने का संदेश दिया गया.

मरीजों को सावधानी रखते हुए ग्रसित अंगों की देखभाल की दी गई जानकारी

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मंजर आलम ने बताया कि फाइलेरिया ग्रसित मरीजों का सम्पूर्ण इलाज नहीं हो सकता लेकिन इसे नियंत्रित रखा जा सकता है. इसके लिए मरीजों को ग्रसित अंगों की सही तरीके से देखभाल करना जरूरी है. ज्यादातर लोगों के पांव फाइलेरिया से ग्रसित होते हैं जिसे आमतौर पर हाथीपांव भी कहा जाता . ऐसे में लोगों को इसका विशेष ध्यान रखना जरूरी है. पांव को नियमित रूप से डेटॉल साबुन से साफ करने के साथ उसमें एंटीसेप्टिक क्रीम लगानी चाहिए. इससे ग्रसित अंगों का आवश्यक नियंत्रण किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि पांव के अतिरिक्त लोगों के हाथ, हाइड्रोसील व महिलाओं के स्तन भी फाइलेरिया से ग्रसित हो सकते हैं. समय से इसकी पहचान करते हुए आवश्यक चिकित्सकीय सहायता लेने से इसे नियंत्रित रखा जा सकता है.

फाइलेरिया से बचाव के लिए जागरूकता जरूरी

सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया कि फाइलेरिया बीमारी विशेष रूप से परजीवी क्यूलैक्स फैंटीगंस मादा मच्छर के काटने से होने वाला रोग है. जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में मानसुनिया मच्छर भी कहा जाता . जब यह मच्छर किसी फाइलेरिया से ग्रस्त व्यक्ति को काटता तो उनके शरीर से फाइलेरिया विषाणु उठाकर किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटने पर उनके शरीर में डाल देता है. इससे फाइलेरिया के विषाणु रक्त के जरिए उसके शरीर में प्रवेश कर उसे भी फाइलेरिया से ग्रसित कर देता. फाइलेरिया को खत्म करने के लिए कोई विशेष इलाज नहीं है लेकिन जागरूक रहकर बचाव करने से इसे नियंत्रित रखा जा सकता. उन्होंने बताया कि फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बनाता बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. अगर समय रहते फाइलेरिया की पहचान कर ली जाए तो जल्द ही इसका इलाज शुरू कर इसे नियंत्रित रखा जा सकता है.

स्वास्थ्य विभाग द्वारा मरीजों को देखभाल की दी जा रही नियमित जानकारी

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण सलाहकार अविनाश रॉय ने कहा कि फाइलेरिया के मरीजों की देखभाल के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा नियमित रूप से ध्यान रखा जाता है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा समय-समय पर फाइलेरिया ग्रसित मरीजों को एमएमडीपी किट प्रदान की जाती है. जिसमें मरीजों को एक टब, एक मग, कॉटन बंडल, तौलिया, डेटॉल साबुन, एंटीसेप्टिक क्रीम दिया जाता है . जिससे कि सम्बंधित मरीज फाइलेरिया ग्रसित अंगों का विशेष ध्यान रख सकते हैं. इसके साथ ही मरीजों को फाइलेरिया से सुरक्षित रहने के प्रति भी जानकारी दी जाती है. उन्होंने बताया कि फाइलेरिया या हाथीपांव के लक्षण सामान्य रूप से शुरू में दिखाई नहीं देते हैं. लेकिन इसके परजीवी शरीर में प्रवेश करने के बाद इसका लक्षण लगभग पांच से दस सालों बाद दिखाई दे सकता है. फाइलेरिया एक घातक बीमारी है. यह साइलेंट रहकर शरीर को खराब करती है. फाइलेरिया एक परजीवी रोग है, जो एक कृमि जनित मच्छर से फैलने वाला रोग है. यह मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से फैलता है. आमतौर पर फाइलेरिया के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते लेकिन बुखार, बदन में खुजली व सूजन की समस्या दिखाई देती है. इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाथीपांव और हाइड्रोसील की सूजन, फाइलेरिया के लक्षण हैं. फाइलेरिया हो जाने के बाद धीरे-धीरे यह गंभीर रूप लेने लगता है. इसका कोई ठोस इलाज नहीं है. लेकिन इसकी नियमित और उचित देखभाल कर जटिलताओं से बचा जा सकता .

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