तपस्या व मोक्ष का मार्ग ही संथारा है

किशनगंज : जैन धर्म में सबसे पुरानी प्रथा मानी जाती है संथारा प्रथा, जैन समाज में इस तरह से देह त्यागने को बहुत पवित्र कार्य माना जाता है. इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु निकट है तो वह खुद को एकांत कर खाना-पीना त्याग देता है. जैन शास्त्रों में इस तरह की […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 13, 2019 8:30 AM

किशनगंज : जैन धर्म में सबसे पुरानी प्रथा मानी जाती है संथारा प्रथा, जैन समाज में इस तरह से देह त्यागने को बहुत पवित्र कार्य माना जाता है. इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु निकट है तो वह खुद को एकांत कर खाना-पीना त्याग देता है.

जैन शास्त्रों में इस तरह की मृत्यु को समाधिमरण, पंडितमरण अथवा संथारा भी कहा गया है. इसका अर्थ है जीवन के अंतिम समय में तप-विशेष की आराधना करना. इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है. जिसके आधार पर साधक मृत्यु को पास देख सबकुछ त्यागकर मृत्यु का वरण करता है. जैन धर्म के शास्त्रों के अनुसार यह निष्प्रतिकार-मरण की विधि है.
रोने-धोने की बजाय शांत परिणाम से आत्मा और परमात्मा का चिंतन करते हुए जीवन की अंतिम सांस तक अच्छे संस्कारों के प्रति समर्पित रहने की विधि का नाम संथारा है. इसे धैर्यपूर्वक अंतिम समय तक जीवन को ससम्मान जीने की कला कहा गया है. जैन धर्म के अनुसार आखिरी समय में किसी के भी प्रति बुरी भावनाएं नहीं रखीं जाएं.
यदि किसी से कोई बुराई जीवन में रही भी हो, तो उसे माफ करके अच्छे विचारों और संस्कारों को मन में स्थान दिया जाता है. जैन समाज के अनुसार संथारा लेने वाला व्यक्ति भी हलके मन से खुश होकर अपनी अंतिम यात्रा को सफल कर सकेगा और समाज में भी बैर बुराई से होने वाले बुरे प्रभाव कम होंगे.
इसलिए इसे इस धर्म में एक वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक विधि माना गया है. भगवान महावीर के उपदेशानुसार जन्म की तरह मृत्यु को भी उत्सव का रूप दिया जा सकता है. संथारा लेने वाला व्यक्ति भी खुश होकर अपनी अंतिम यात्रा को सफल कर सकेगा, यही सोचकर संथारा लिया जाता है. यह स्वेच्छा से देह त्यागने की परंपरा है. जैन धर्म में इसे जीवन की अंतिम साधना माना जाता है.
सांसारिक रूप में संपूर्णता की प्राप्ति के बाद मनुष्य जीवन में जाने-अनजाने में की गई गलतियों की क्षमा-याचना करते हुए तपस्या की प्रेरणा देने का एक मात्र माध्यम भी संथारा है. संथारा ईश्वर की प्राप्ति का एक माध्यम है. कई संतों ने इसे अपनाया है. सांसारिक निवृत्ति का भी एक तरीका संथारा है. संथारा जैन समाज की वह प्रथा है, जिसमें मरणासन्न व्यक्ति अन्न-जल त्याग देता है.

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