Kaimur News : सुविधा दें, हम लायेंगे मेडल
पूरे शहर में एकमात्र जगजीवन स्टेडियम है, जहां सुबह चार बजे से लोगों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है. इसके कारण फुटबॉल, क्रिकेट व हॉकी खेलने के साथ एथलीट खिलाड़ियों के लिए छोटे से स्टेडियम के मैदान में दौड़ लगा पाना मुश्किल हो जाता है. इसलिए हम सभी खिलाड़ी बारी-बारी से पारी बांधकर सुबह में फुटबॉल, दोपहर में क्रिकेट व शाम में हॉकी की प्रैक्टिस करते हैं, तो एथलीट के खिलाड़ी सड़क पर दौड़ लगाते हैं. सड़क पर दौड़ लगाने के बाद सिर्फ व्यायाम करने के लिए स्टेडियम आते हैं. उक्त बातें शनिवार को प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम के दौरान खिलाड़ियों ने कहीं
भभुआ नगर. पूरे शहर में एकमात्र जगजीवन स्टेडियम है, जहां सुबह चार बजे से लोगों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है. इसके कारण फुटबॉल, क्रिकेट व हॉकी खेलने के साथ एथलीट खिलाड़ियों के लिए छोटे से स्टेडियम के मैदान में दौड़ लगा पाना मुश्किल हो जाता है. इसलिए हम सभी खिलाड़ी बारी-बारी से पारी बांधकर सुबह में फुटबॉल, दोपहर में क्रिकेट व शाम में हॉकी की प्रैक्टिस करते हैं, तो एथलीट के खिलाड़ी सड़क पर दौड़ लगाते हैं. सड़क पर दौड़ लगाने के बाद सिर्फ व्यायाम करने के लिए स्टेडियम आते हैं. उक्त बातें शनिवार को प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम के दौरान खिलाड़ियों ने कहीं. फुटबॉल, हाॅकी व क्रिकेट के खिलाड़ियों ने कहा कि पूरे शहर में एकमात्र जगजीवन स्टेडियम रहने के कारण सुबह में मॉर्निंग वॉक करने से लेकर छुट्टी के दिनों में छोटे-छोटे बच्चे व बुजुर्ग भी स्टेडियम में टहलते आतेे हैं, जिसके कारण फुटबॉल, हॉकी या क्रिकेट की प्रैक्टिस करना मुश्किल हो जाता है. वहीं, एथलीट के खिलाड़ियों ने कहा कि स्टेडियम में लोगों की जमावड़ा रहने के कारण हम लोग दौड़ नहीं लगा पाते हैं, इसलिए मजबूर होकर हम लोगों को सड़क पर दौड़ लगानी पड़ती है. गौरतलब है कि शहर के छोटे से जगजीवन स्टेडियम की सुबह किसी आम मैदान जैसी नहीं होती, यह मैदान उन हॉकी, फुटबॉल व क्रिकेट के साथ एथलीट खिलाड़ियों का सपनों का प्रतीक बन चुका है, जो अपने गांव-देहात की सीमाओं को लांघकर यहां खेल की प्रैक्टिस करने के लिए पहुंचते हैं. सूरज की पहली किरण के साथ ही जब शहर करवट बदलता है, तब यहां सपनों से भरे कदम दौड़ लगाना और खेलकूद शुरू कर देते हैं. मैदान में घास का भी है अभाव, खिलाड़ी होते हैं चोटिल स्टेडियम के मैदान में घास पूरी तरह से खत्म हो चुकी है, इसकी वजह से जब खिलाड़ी क्रिकेट, फुटबॉल या हॉकी खेल का अभ्यास करते हैं, तो वे अक्सर गिरकर चोटिल हो जाते हैं. खासकर फुटबॉल खिलाड़ियों के लिए यह समस्या और भी गंभीर है. क्योंकि, यह खेल शारीरिक संपर्क पर आधारित होते हैं. घास की अनुपस्थिति से मैदान की सतह सख्त हो गयी है, जिससे गिरने पर गंभीर चोटें लगने की संभावना बनी रहती है. खिलाड़ियों का कहना है कि फुटबॉल ग्राउंड के बीच में ही क्रिकेट का पिच रहने के कारण अक्सर क्रिकेट का पिच हार्ड होने के कारण फिसल जाते हैं और चोटिल हो जाते हैं. रात में स्टेडियम में खेलना संभव नहीं खिलाड़ियों ने कहा कि जगजीवन स्टेडियम में रात में प्रैक्टिस करना मुश्किल है, गर्मी के दिनों में खिलाड़ी रात में भी प्रैक्टिस कर सकते थे, लेकिन यहां शाम ढलते ही अंधेरा छा जाता है. स्टेडियम में लाइट की कोई व्यवस्था नहीं रहने के कारण शाम छह बजे के बाद खेलना मुश्किल हो जाता है. वहीं, खिलाड़ियों को कहना है कि अगर स्टेडियम में लाइट की व्यवस्था हो जाती है तो वे रात में भी प्रैक्टिस कर सकते हैं. वहीं, महिला खिलाड़ियों के लिए जगजीवन स्टेडियम में कोई व्यवस्था नहीं है, न कॉमन रूम है और ना ही कोई सुरक्षा की व्यवस्था है. यहां तक कि महिलाओं के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था भी नहीं है. शौचालय है भी तो वह भी खराब हालत में है. अक्सर सरकारी कार्यक्रम को लेकर बंद कर दिये जाते हैं स्टेडियम जगजीवन स्टेडियम में प्रैक्टिस कर रहे खिलाड़ियों ने यह भी बताया कि शहर का एकमात्र स्टेडियम होने के कारण सभी सरकारी कार्यक्रमों का भी आयोजन स्टेडियम में ही होता है. इसके दौरान कई दिनों तक स्टेडियम को बंद कर दिया जाता है, जिससे खिलाड़ियों को काफी परेशानी होती है. खिलाड़ियों ने कहा कि स्टेडियम में न तो पीने के पानी की व्यवस्था है, न ही शौचालय की सुविधा है. घास नहीं होने के वजह से मैदान में हर वक्त धूल उड़ती रहती है. इससे खेल की प्रैक्टिस करना मुश्किल हो गया है. अधिकतर दिन प्रशासनिक कार्यक्रमों के चलते स्टेडियम कई बार बंद कर दिया जाता है, जिससे अभ्यास रुक जाता है. साइकिल पार्किंग नहीं होने से कई बार खिलाड़ियों की बाइक व साइकिल खेल मैदान से चोरी भी हो गयी है. स्टेडियम में है कुव्यवस्था, इसे सुधारने की है जरूरत प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम में खिलाड़ियों ने सुझाव देते हुए कहा कि स्टेडियम आज पूरी तरह कुव्यवस्था का शिकार हो चुका है, इसे सुधारने की जरूरत है. खिलाड़ियों ने अपने सुझाव साझा करते हुए कहा कि स्टेडियम में पीने के साफ पानी और शौचालय की समुचित व्यवस्था की जाये. साथ ही लड़कियों की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे और सुरक्षा गार्ड तैनात किये जाये. मैदान की जमीन समतल कर घास लगायी जाये, ताकि धूल और चोट की समस्या दूर हो सके. प्रशासनिक कार्यों के लिए किसी वैकल्पिक स्थान को तय किया जाये, ताकि स्टेडियम खिलाड़ियों के लिए हमेशा खुला रहे. साइकिल पार्किंग के लिए सुरक्षित शेड और लॉकिंग आदि की सुविधा उपलब्ध करायी जाये. = क्या कहते हैं खिलाड़ी – स्टेडियम में पीने के लिए साफ आरओ का पानी और शौचालय की समुचित व्यवस्था की जाये, ताकि खिलाड़ियों को बुनियादी सुविधाओं के लिए परेशान नहीं होना पड़े. खिलाड़ियों स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह बेहद जरूरी है. एजाज राइन, फुटबॉल खिलाड़ी – लड़कियों की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे और सुरक्षा गार्ड तैनात किये जाये. इससे असामाजिक तत्वों पर नियंत्रण रहेगा और भय का माहौल खत्म होगा, जिससे महिला खिलाड़ी भी निश्चित होकर अभ्यास कर सकेगी. अंजली कुमारी, खिलाड़ी – मैदान के जमीन को समतल कर घास लगायी जाये, ताकि धूल और चोट की समस्या दूर हो सके. इससे अभ्यास के दौरान होने वाली चोटें कम होंगी और वातावरण भी स्वच्छ बना रहेगा. = अनवर राइन, फुटबॉल खिलाड़ी – प्रशासनिक कार्यों के लिए वैकल्पिक स्थान तय हो, ताकि खिलाड़ियों की प्रैक्टिस के लिए स्टेडियम हमेशा खुला रहे. अधिकतर समय स्टेडियम बंद रहने से अभ्यास बाधित होता है, जिससे तैयारी पर असर पड़ता है. = सुजीत कुमार, फुटबॉल खिलाड़ी – स्टेडियम में न तो पीने का पानी है, न ही शौचालय की कोई व्यवस्था, इससे गर्मी और लंबे अभ्यास के बीच काफी कठिनाई होती है, इसका समाधान निकाला जाये ताकि अभ्यास में कोई बाधा नहीं हो. = सनी कुमार, फुटबॉल खिलाड़ी = – मैदान की जमीन इतनी धूलभरी है कि दौड़ना कठिन हो जाता है, तेज धूप और धूल के कारण आंखों में जलन और सांस लेने में परेशानी होती है. इससे अभ्यास के दौरान थकान जल्दी होती है. मीरा कुमारी, हॉकी खिलाड़ी = – स्थानीय प्रशासन द्वारा समय-समय पर निरीक्षण किया जाये, इससे मैदान की स्थिति पर नजर बनी रहेगी और लापरवाही नहीं हो पायेगी, प्रशासन की सक्रियता से सुधार की प्रक्रिया तेज होगी. नीरज कुमार, क्रिकेट खिलाड़ी = – बारिश के मौसम में मैदान में कीचड़ हो जाता है और अभ्यास बंद हो जाता है. कीचड़ और फिसलन से चोट लगने का डर बना रहता है. तो गर्मी के दिनों में नाक मुंह में धूल भर जाता है, जिसके कारण सांस संबंधी बीमारी भी हो सकती है. ऋतिक भारद्वाज, क्रिकेट खिलाड़ी – हमारी मेहनत रंग लायेगी, इस भरोसे के साथ ही रोज मैदान में आते हैं. प्रशासन अगर थोड़ा साथ दे देती है तो हम बहुत कुछ कर सकते हैं, हमें अभ्यास करने के लिए बेहतर माहौल चाहिए. = अनमोल पांडेय, एथलीट = – जगजीवन स्टेडियम में धूल रहने के कारण खिलाड़ियों काे प्रैक्टिस करना मुश्किल हो जाता है. धूल उड़ाने से गेंद तक दिखाई नहीं देती है. संसाधन की कमी रहने के कारण कैमूर जिले का रहने के बावजूद पटना जिला से मैं हॉकी खेल रहा हूं और आज बिहार राज्य टीम का खिलाड़ी हूं. रोहित पाठक, हॉकी खिलाड़ी = अपने दम पर अब खिलाड़ी लहरा रहे जिले का परचम भभुआ नगर. गौरतलब है कि वर्ष 1992 में पड़ोसी रोहतास जिले से अलग कर कैमूर जिला बनने के बाद से ही खेल और खिलाड़ियों का एक ऐसा दौर भी आया जब राष्ट्रीय और स्टेट लेबल पर यहां के खिलाड़ियों की खासकर फुटबॉल और क्रिकेट में तूती बोलती थी. लेकिन, समय बीतने के साथ इसमें सुधार होने की जगह आज खेलों की स्थिति यहां तक आ पहुंची है कि किसी भी खेल के क्षेत्र में पूरी टीम की जगह इक्का-दुक्का एकल खिलाड़ी ही अपने दम पर जिले का नाम रोशन करने में लगे हैं. वह भी जिले में अव्यवस्थित खेल मैदान, बगैर संसाधन और योग्य प्रशिक्षक का अभाव रहते. क्योंकि, कई खेलों के लिए यहां खेल का मैदान ही नहीं है. वहीं, अगर मैदान है भी तो संसाधन उपलब्ध नहीं हैं. इस परिस्थिति में पुरुष खिलाड़ी तो किसी तरह खेलकूद कर लेते हैं, लेकिन महिला खिलाड़ियों को काफी दिक्कतें आती है, उन्हें ना तो अभ्यास का पूरा मौका मिलता है और ना ही उनमें टीम भावना ही जग पाती है. दरअसल, 1992 में रोहतास से अलग होने के बाद से ही जिले में खेल मैदान और संसाधनों का समुचित विकास नहीं हो पाया है. दूसरी तरफ जिला से लेकर देश व राज्य स्तरीय प्रतियोगिता का गवाह रहा जिले का प्रमुख जगजीवन स्टेडियम भी अब तक उपेक्षा के दंश से उबर नहीं पाया है. यही स्थिति जिले के अन्य प्रमुख खेल मैदानों, जैसे पटेल कॉलेज का मैदान, टाउन हाइस्कूल, मोहनिया का जगजीवन मैदान, विछिया व्यायामशाला, रामगढ़ के देवहलिया मैदान आदि का भी है जो उपेक्षा व अव्यवस्थित रखरखाव के कारण बदहाली के शिकार हो रहे हैं. खिलाड़ियों को हर साल उम्मीद रहती है कि खेल और उसके संसाधन पर सरकार के अधिकारियों का या जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस बार जरूर जायेगा, लेकिन उनकी यह उम्मीद धरी की धरी ही रह जा रही है. = खेल मैदान से लेकर संसाधनों तक में सुधार की जरूरत खेल व खिलाड़ियों के विकास में संसाधन की कमी सबसे बड़ी बाधा है. जिले के अधिकतर शहरों व प्रखंडों में खेल मैदान का अभाव है, तो कई जगह खेल सामग्री भी उपलब्ध नहीं है, स्थिति यह है कि कई विद्यालयों और खेल समितियों में खेल प्रशिक्षक भी नहीं हैं. वैसे राज्यस्तरीय या स्कूली खेलों के समय प्रखंड से लेकर जिला स्तर पर बच्चों का चयन किया जाता है और ये खिलाड़ी प्रतियोगिता में हिस्सा भी लेते हैं, लेकिन बिना प्रशिक्षण और संसाधन के यह कुछ खास कारगर साबित होता नहीं दिख रहा है. मजबूरन खिलाड़ी स्वयं या फिर वरिष्ठ खिलाड़ियों से खेल की कला सिख कर जिले का नाम रोशन कर रहे हैं. = खेल की सुविधा बढ़ाने की है जरूरत पूर्व जिला क्रीड़ा सचिव व फुटबॉल के राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में खेल चुके प्रतिभावान व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी रामप्रसाद सिंह, पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी अधिवक्ता रमेश निषाद, बिहार से रणजी ट्रॉफी क्रिकेट प्रतियोगिता खेल चुके विशाल दास, विकास कुमार आदि का कहना था कि जिले के खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए विभाग को अपडेट करने की दरकार है. खेल संसाधन की व्यवस्था के साथ उचित मार्गदर्शन और प्रशिक्षण के अभाव में उच्च स्तरीय प्रतियोगिता में खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं, इसके लिए संसाधन के विस्तार के साथ बेहतर करने वाले खिलाड़ियों के लिए समय समय पर प्रशिक्षण की व्यवस्था और उन्हें उचित संसाधन उपलब्ध कराने की दरकार है. खासकर ग्रामीण क्षेत्र के खिलाड़ियों के लिए व्यवस्था में सुधार की विशेष दरकार है. क्योंकि, शहर के साथ ग्रामीण क्षेत्र की खेल प्रतिभाएं भी खेल के क्षेत्र में जिले का नाम रोशन करने में कही से कम नही हैं. वहीं, शहरी क्षेत्रों में उपेक्षाओं के चलते खिलाड़ी तो विभिन्न खेलों से विमुख तो हो ही रहे हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी कोई न कोई खेलकूद प्रतियोगिता होती रहती है, पहले फुटबाल, कबड्डी, वाॅलीबॉल, क्रिकेट सहित कई अन्य खेल प्रतियोगिताएं आयोजित होती थी, लेकिन घटते खेल मैदान शहरों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब परंपरागत खेलों को लील रही है. स्टेडियम में है एक चापाकल, वह भी बंद भभुआ नगर. खिलाड़ियों के पानी पीने के लिए स्टेडियम में एक चापाकल लगा हुआ है, लेकिन मरम्मत के अभाव में वह भी बंद पड़ा हुआ है. इससे खिलाड़ियों को पानी पीने के लिए घर से बोतल में पानी लेकर आना पड़ता हैं या प्रैक्टिस के दौरान अपने साथियों से पानी मांग कर अपने सूखे कंठ को गिला करते हैं. जगजीवन स्टेडियम में बना पवेलियन भी धराशायी होने के कगार पर है. कई जगह पर स्टेडियम में बना पवेलियन टूट गया है. साफ सफाई प्रतिदिन नहीं होने के कारण पवेलियन पर घास फूस उग गये हैं. खिलाड़ियों ने कहा कि जगजीवन स्टेडियम में एक भी रूम नहीं है, जहां पुरुष व महिला खिलाड़ी अपने कपड़े भी बदल सकें. जगजीवन स्टेडियम में स्थित भवन में जिला बाल विकास का कार्यालय व खेल उपाधीक्षक का कार्यालय संचालित होता है, जिसके कारण खासकर महिला खिलाड़ियों को कपड़े बदलने में भारी परेशानी होती है.
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