आदिवासियों ने धूमधाम से मनाया कर्मा-धर्मा, मांगी समृद्धि

अधौरा : कर्मा धर्मा पर्व मंगलवार को अधौरा प्रखंड में रहनेवाले उरांव जाति के लोगों ने पहले दिन धूमधाम से मनाया गया. यह पर्व दो दिवसीय होता है. इसमें पहले दिन उरांव जाति के बहनों ने भाईयों की सुख-समृद्धि की कामना की. पूजा के बाद गीत-नृत्य से अखड़ा स्थल पर घंटों तक बहनों ने समां […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 11, 2019 8:33 AM

अधौरा : कर्मा धर्मा पर्व मंगलवार को अधौरा प्रखंड में रहनेवाले उरांव जाति के लोगों ने पहले दिन धूमधाम से मनाया गया. यह पर्व दो दिवसीय होता है. इसमें पहले दिन उरांव जाति के बहनों ने भाईयों की सुख-समृद्धि की कामना की.

पूजा के बाद गीत-नृत्य से अखड़ा स्थल पर घंटों तक बहनों ने समां बांधा. मांदर व ढ़ोल-नगाड़े बजाते भाईयों की टोली ने भी उत्सव में बहनों का साथ दिया. वहीं, इस पर्व को मनाने के लिए प्रखंड के उरांव जाति के लोगों ने रोहतासगढ़ किला से सरहुल पेड़ के डाढ़ी को लाकर पूजा करते हैं. वहीं यह पर्व आदिवासियों का प्रमुख पर्व होता है.
गौरतलब है कि लाल गलियारे के नाम से प्रसिद्ध व नक्सली प्रभावित अधौरा प्रखंड में मंगलवार से शुरू हुए दो दिवसीय कर्मा धर्मा पर्व पर प्रखंड में हर ओर धूम देखी जा रही है. इस मौके पर आदिवासी रोहतास के रोहतासगढ़ किला से सरहुल का पेड़ लाकर प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं. साथ ही बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं.
वहीं गांव-गांव में पूजा कर बहनों ने भाई के प्यार को अक्षुण्य रखने के लिए व्रत रखा. पर्व पर रात भर ग्रामीण अंचलों में करमा लोकगीत गूंजते रहे और ग्रामीण थिरकते रहे. बताया जाता करमा आदिवासियों का प्रमुख पर्व है. हर साल भाद्रपद शुक्लपक्ष एकादशी को पारंपरिक तरीके से करमा की पूजा की जाती है.
जानकार बताते हैं कि मुख्य रूप से यह पर्व भाई-बहन का त्योहार है. भाइयों का धर्म और कर्म से नाता न टूटे और बहनों के प्रति उनका प्यार बना रहे, इसके लिए आदिवासी बहनें व्रत रखती हैं. मांदर की थाप और घुंघरुओं की ध्वनि के साथ पारंपरिक वेशभूषा में आदिवासी एक ताल और एक लय के साथ रात भर थिरकते रहे. जिसकी गूंज पूरे अधौरा में सुनाई देती रही.
गांव की खुशहाली की होती है कामना
इस पर्व को मनाने का उद्देश्य यह भी है कि गांव में खुशहाली रहे. मंगलवार शुरू हुए दो दिवसीय उक्त पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं एवं बच्चों ने व्रत रखकर सरहुल के पेड़ की डाली के समक्ष बैठकर करमा की कहानी सुनी और अपने व्रत का शुभारंभ किया.
करमा पूजा को गांव में सुख-समृद्धि खुशहाली के लिए एवं दुर्भिक्ष और बीमारी को रोकने के लिए उत्सव की तरह मनाया जाता है. उरांव जाति के लोग परिवार व मित्रों के साथ भाग लेते हैं. वहीं करमा उत्सव वर्ष में दो बार मनाया जाता है.
भाई के लिए आदिवासी बहनें रखती हैं व्रत
जानकार बताते हैं कि आदिवासी बहने अपने भाइयों की सलामती के लिए इस दिन व्रत रखती हैं. इनके भाई कर्म वृक्ष (सरहुल के पेड़ ) की डाल लेकर घर के आंगन या खेतों में गाड़ते हैं. इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं.
पूजा समाप्त होने के बाद वे इस डाल को पूरे धार्मिक रीति‍ से तालाब, पोखर, नदी आदि में विसर्जित कर देते हैं. पर्व के दिन युवा दिनभर नाचते -गाते हैं. दो दिनों तक चलने वाला करमा पर्व अधौरा प्रखंड में सादगी और सौहार्द का प्रतीक भी है. वहीं, आज यानी बुधवार को इस पर्व का समापन किया जायेगा. इस मौके पर आदिवासी अपने घर में तरह तरह के पकवान भी बनाकर आनंद उठाये हैं.

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