Bihar Election 2025 : लालू यादव के गृह क्षेत्र से मुद्दे हुए गायब, जातीय शोर पर भारी पड़ रहा विकास का सवाल

Bihar Election 2025 : हथुआ विधानसभा क्षेत्र राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का गृह क्षेत्र है. इस बार चुनावी दौर में जातीय हलचल के आगे असली सवाल पूरी तरह किनारे हो गए. एनडीए से पूर्व मंत्री रामसेवक सिंह और महागठबंधन से मौजूदा विधायक राजेश सिंह कुशवाहा आमने–सामने हैं.

By Radheshyam Kushwaha | November 4, 2025 5:28 PM

Bihar Election 2025 : राकेश कुमार, फुलवरिया. हथुआ विधानसभा क्षेत्र, जिसे कभी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का मजबूत राजनीतिक गृह क्षेत्र माना जाता था, इस बार चुनावी दौर में जातीय हलचल से तो सराबोर दिखा, पर असली सवाल पूरी तरह किनारे हो गए. एनडीए से पूर्व मंत्री रामसेवक सिंह और महागठबंधन से मौजूदा विधायक राजेश सिंह कुशवाहा आमने–सामने हैं. खास बात यह है कि दोनों ही कुशवाहा समाज से आते हैं और यह विधानसभा क्षेत्र भी कुशवाहा बाहुल्य माना जाता है. यही कारण है कि माहौल विकास नहीं, जातीय गणित पर अधिक सिमटा दिखा. 2020 के चुनाव में जदयू के टिकट पर कई बार जीत चुके रामसेवक सिंह को राजद प्रत्याशी राजेश सिंह कुशवाहा ने हराया था. अब दोनों फिर टक्कर में हैं, और इनके अलावा निर्दलीय तथा छोटे दलों के उम्मीदवार भी मैदान में मौजूद हैं, जिनकी मौजूदगी वोटों के बिखराव की वजह बन सकती है.

दोनों बड़े प्रत्याशी एक ही जाति से, प्रचार में मुद्दे गायब

चुनावी भाषणों में दोनों पक्षों ने एक–दूसरे को घेरने में कोई कमी नहीं छोड़ी, लेकिन सड़क, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और क्षेत्रीय ढांचे जैसे सवाल मंचों से लगभग गायब रहे. बथुआ बाजार, जो फुलवरिया प्रखंड का सबसे बड़ा व्यावसायिक केंद्र है, आज भी बाइपास सड़क सहित बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. जाम, अव्यवस्था और स्वच्छता की समस्या लगातार बनी हुई है, पर किसी भी प्रत्याशी ने इसे प्राथमिक मुद्दा नहीं बनाया. कई वर्षों से नगर पंचायत की मांग भी अधूरी पड़ी है. स्थानीय कारोबारी कहते हैं कि नगर पंचायत दर्जा मिलने से व्यापार को नई सांस मिलती, पर यह मुद्दा भी चुनावी शोर में कहीं खो गया.

सरकारें बदलीं, पर नहीं बदली हथुआ की सूरत

छठ पर्व और चुनाव के बीच गांव लौटे परदेसियों ने भी यही सवाल उठाया है कि आखिर कब तक बदलती सरकारों के बावजूद हथुआ की सूरत जस की तस रहेगी? युवाओं से लेकर व्यापारी तक मतदाता अब इस द्वंद्व में हैं कि वोट जातीय पहचान पर पड़े या ऐसी सोच पर, जो भविष्य में बदलाव और विकास का रास्ता खोल सके. प्रचार थमने के बाद चाय दुकानों से मोहल्लों तक चर्चा यही कि क्या इस बार जाति पर विकास भारी पड़ेगा?

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कहते हैं स्थानीय लोग

  • शिक्षाविद् पंचालाल गुप्ता ने कहा कि हथुआ में शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति चिंता का विषय है. डॉक्टरों की कमी, स्कूलों में शिक्षकों का अभाव सबसे बड़ी चुनौती है. जातीय चर्चा नहीं, अस्पताल–स्कूल–सड़क की बात होनी चाहिए. जनता को विकासमुखी सोच वाले प्रतिनिधि चुनने चाहिए.
  • बथुआ बाजार के सूरज गुप्ता ने कहा कि बथुआ व्यापार का केंद्र है, पर बाइपास सड़क और नगर पंचायत की सुविधा आज तक नहीं मिली. जाम, गंदगी से व्यापारी परेशान हैं. कोई प्रत्याशी इस पर बात नहीं करता. जनता को ऐसे नेता की पहचान करनी होगी, जो व्यापारिक ढांचे को महत्व दें.
  • युवा मतदाता ऋषभ पांडेय ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती रोजगार की है. हथुआ से फुलवरिया तक बेरोजगारी चरम पर है. पढ़े–लिखे युवा बाहर पलायन कर रहे हैं. हमें जातीय राजनीति नहीं, रोजगार–स्टार्टअप–खेल की सुविधा चाहिए. इस बार युवा वर्ग विकास को ही वोट देगा.
  • समाजसेवी डॉ सुनील कुमार ने कहा कि गांवों में सड़क, नाली, जलजमाव से लोग परेशान हैं. नेता जाति में उलझे हैं, पर जनता अब बदलाव चाहती है. ऐसा प्रतिनिधि चाहिए जो विकास, सुरक्षा और स्वच्छ शासन दे. मुद्दा विकास होना चाहिए.

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