Gaya News : प्रभात खास : नवागढ़ी मुहल्ले में संरक्षित है दुनिया की सबसे बड़ी कुरान की ऐतिहासिक प्रति
1793 में प्रसिद्ध इस्लामिक स्कॉलर शाह अब्दुल अजीज मोहदीज देलहवी व शाह रफीउद्दीन मोहदीज देहलवी ने की थी इस पुस्तक की रचनातीन कॉपी में हुई थी प्रिंट, एक लंदन, दूसरा यूपी के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय व तीसरा गया जी में है सुरक्षित
नीरज कुमार, गया जी
शहर के नवागढ़ी मुहल्ले स्थित चिश्तिया मोनामिया खानकाह पुस्तकालय में इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में दुनिया की सबसे बड़ी कुरान सुरक्षित रखी गयी है. यह कुरान अपने आकार, भाषा और ऐतिहासिक महत्त्व के लिए वैश्विक स्तर पर अनूठी मानी जाती है. इस कुरान की रचना 1793 ईस्वी में प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वानों शाह अब्दुल अजीज मोहद्दिस देहलवी और शाह रफीउद्दीन मोहद्दिस देहलवी द्वारा की गयी थी. करीब 90 वर्षों तक यह हस्तलिखित पांडुलिपि के रूप में संरक्षित रही, जिसके बाद 1882 ई में दिल्ली के मयूर प्रिंटिंग प्रेस द्वारा इसकी केवल तीन प्रतियां प्रकाशित की गयीं. इनमें से एक प्रति ब्रिटिश लाइब्रेरी, लंदन में, दूसरी मौलाना आजाद लाइब्रेरी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में तथा तीसरी और अंतिम प्रति गया स्थित चिश्तिया मोनामिया खानकाह पुस्तकालय में सुरक्षित है.विशेष आयाम और भाषायी स्वरूपयह विश्व की सबसे बड़ी कुरान दो वॉल्यूम में कुल 1152 पृष्ठों में संरक्षित है. प्रत्येक वॉल्यूम की लंबाई 35 सेंटीमीटर, चौड़ाई 54 सेंटीमीटर और ऊंचाई छह सेंटीमीटर है. कुरान तीन भाषाओं अरबी, उर्दू और फारसी में है, जिससे इसकी ऐतिहासिक व भाषायी महत्ता और भी बढ़ जाती है.
पवित्र धरोहर के रूप में दर्शन के लिए खुला है पुस्तकालयपुस्तकालय के संरक्षक सैयद नाजिम अता फैसल ने जानकारी दी कि यह कुरान 229 वर्ष पुरानी हस्तलिखित पांडुलिपि है, जबकि इसकी प्रिंटिंग लगभग 150 वर्ष पहले हुई थी. उन्होंने बताया कि देश-विदेश से श्रद्धालु इस कुरान का दर्शन करने आते हैं, किंतु इसकी जिल्द को सुरक्षित रखने के लिए इसे छूने की अनुमति नहीं दी जाती है. श्रद्धालु इसे केवल देख सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर किसी शब्द का अर्थ या जानकारी कुरान से खोजकर बतायी जाती है. त्योहारों एवं विशेष अवसरों पर यह पवित्र कुरान आम जन के दर्शन के लिए प्रदर्शित की जाती है.1400 साल पुरानी विरासतें भी संरक्षितपुस्तकालय में इस ऐतिहासिक कुरान के साथ-साथ इस्लाम धर्म की अन्य दुर्लभ और ऐतिहासिक वस्तुएं भी संरक्षित हैं. जैसे पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के बाल, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती साहब के 900 साल पुराने वस्त्र तथा 600 से अधिक दुर्लभ पांडुलिपियां जो अरबी, फारसी और उर्दू में लिखी गयी हैं और जिनमें सूफी संतों की जीवनी शामिल है.
खानकाह का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्वचिश्तिया मोनामिया खानकाह का इतिहास सदियों पुराना है और इसका सीधा जुड़ाव मदीना से बताया जाता है. ऐसा माना जाता है कि हजरत सैयद शाह अता फानी सबसे पहले गया आये थे और यहीं से इस आध्यात्मिक केंद्र की स्थापना हुई. चिश्तिया मोनामिया खानकाह न केवल गया शहर बल्कि देश की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक धरोहरों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है. यहां स्थित दुनिया की सबसे बड़ी कुरान की प्रति श्रद्धालुओं और शोधकर्ताओं के लिए एक अमूल्य निधि है, जो इस्लामी इतिहास, संस्कृति और धार्मिक धरोहर को सहेजने का उदाहरण प्रस्तुत करती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
