दरभंगा : वर्तमान समय में संस्कृत की शिक्षा जरूरी : कुलाधिपति

दरभंगा : कुलाधिपति लालजी टंडन ने कहा कि धर्मशास्त्रों में मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव तथा आचार: परमो धर्मः जैसे संस्कृत साहित्य के आदर्श वाक्यों का समावेश प्रारंभिक कक्षा के पाठ्यक्रमों में करते हुए बच्च्चों को नैतिक शिक्षा देने की जरूरत है. मानव के अधिकार एवं कर्तव्य की […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 21, 2018 8:53 AM
दरभंगा : कुलाधिपति लालजी टंडन ने कहा कि धर्मशास्त्रों में मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव तथा आचार: परमो धर्मः जैसे संस्कृत साहित्य के आदर्श वाक्यों का समावेश प्रारंभिक कक्षा के पाठ्यक्रमों में करते हुए बच्च्चों को नैतिक शिक्षा देने की जरूरत है.
मानव के अधिकार एवं कर्तव्य की रक्षा के साथ-साथ उनके चारित्रिक विकास में भी इन वाक्यों का महत्व है. वह मंगलवार को कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित छठे दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे. कुलाधिपति ने कहा कि संस्कृत भाषा एवं साहित्य के ज्ञान के बिना भारतीय संस्कृति और ज्ञान संपदा से परिचित होना संभव नहीं है.
वर्तमान समय में भी संस्कृत शिक्षा का उतना ही महत्व है, जितना पहले था. चारित्रिक शिक्षा, शांति, सद्भाव व विश्वबन्धुत्व का पाठ संस्कृत विश्व को पढ़ाती रही है. वेदों, उपनिषदों, दर्शनों, पुराणों एवं धर्मशास्त्रों ने जीवन यापन का एक ऐसा आदर्श मार्ग स्थापित किया है, जो दूसरों के जीवन यापन में सहभागी होकर स्वयं एवं समाज की प्रगति में पूरी सहायता करने में सक्षम है.
कुलाधिपति ने कहा कि संस्कृत एकमात्र वैज्ञानिक भाषा है, जिसके लिखने एवं पढ़ने में एक समान उच्चारण किया जाता है. कम्प्यूटर के दृष्टिकोण से भी संस्कृत सर्वाधिक उपयुक्त भाषा है. जगद्गुरु के रूप में भारत को पुनः प्रतिष्ठित करना है तो संस्कृत भाषा साहित्य को समृद्ध करना होगा.

Next Article

Exit mobile version