buxar news : पराली जलाने पर रोक, पर आसमां धुआं-धुआं

buxar news : पराली के धुएं से हवा में बढ़ रही खतरनाक तत्वों की मात्राकिसानों को नहीं मिल रहा विकल्प, अधिकारी भी नहीं कर रहे निगरानी

By SHAILESH KUMAR | November 23, 2025 9:41 PM

buxar news : कृष्णाब्रह्म. डुमरांव प्रखंड क्षेत्र में धान की कटाई अब लगभग पूरी होने के कगार पर है. इसी के साथ एक बार फिर वही पुराना दृश्य दिखायी देने लगा है.

खेतों के चारों ओर उठता धुआं, हवा में तैरती राख और लगातार बिगड़ती हवा की गुणवत्ता. सरकार लगातार दावा करती रही है कि पराली जलाना प्रतिबंधित है, उस पर निगरानी रखी जायेगी, किसानों के बीच जागरूकता फैलायी जा रही है, वैकल्पिक उपाय उपलब्ध कराये जा रहे हैं. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ये दावे तक ही सीमित रह गये हैं. डुमरांव के कई गांवों में किसान बिना किसी झिझक पराली में आग लगा रहे हैं. खेत से धान कट जाने के बाद बची पराली को नष्ट करने का आसान तरीका उन्हें यही लगता है. कोई मशीन नहीं, कोई दिक्कत नहीं और कुछ ही घंटों में खेत साफ, लेकिन यह साफ खेत आने वाले मौसम की उपजाऊ शक्ति को बुरी तरह कमजोर कर रहा है. पराली का जलना न सिर्फ मिट्टी की जैविक ऊर्जा को खत्म करता है, बल्कि हवा में खतरनाक तत्वों की मात्रा बढ़ाकर पूरे क्षेत्र को प्रदूषण की चपेट में ले आता है. सरकार की तरफ से कई योजनाएं बनायी जाती हैं.

किसानों को सब्सिडी पर मशीनें देने की बात, जागरूकता अभियान, पंचायत स्तर पर बैठकें, यहां तक कि ड्रोन के जरिये निगरानी का दावा तक किया जाता है, लेकिन जमीनी हालात कुछ और ही कहानी कहते हैं. न किसानों पर कोई ठोस असर दिखता है, न योजना का कोई असर जमीन पर उतरता है. किसान कहते हैं कि समय नहीं है और पराली को खेत में सड़ाने के लिए इंतजार करना उनके बस की नहीं. सरकार कहती है योजना चल रही है, किसान कहते हैं हम तक पहुंची नहीं और इसी खींचतान के बीच धुआं एक बार फिर आसमान में फैलने लगता है.

इस बार डुमरांव क्षेत्र में स्थिति इतनी आम हो गयी है कि रोज सुबह और शाम के समय गांवों के पास से गुजरने पर साफ दिखायी देता है कि पराली जल रही है. कुछ किसान इसे मजबूरी बताते हैं, कुछ इसे परंपरा, और कुछ इसे आसान तरीका, लेकिन कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि इसका नुकसान सीधे उनकी जमीन को हो रहा है, जिससे उनकी अगली फसल तैयार होनी है. पराली जलाना मिट्टी के पोषक तत्वों को नष्ट कर देता है. इस तरह की गतिविधियां वायु गुणवत्ता को खतरनाक स्तर तक ले जाती है. छोटे बच्चों, बुजुर्गों और पहले से बीमार लोगों के लिए यह हवा बेहद हानिकारक बन जाती है. कई ग्रामीणों का कहना है कि सरकार की तरफ से कड़े कदम उठाने की बातें हर साल की तरह इस बार भी हवा में तैर रही है. ड्रोन से निगरानी होने की घोषणा जरूर हुई, लेकिन निगरानी कहां हो रही है, कैसे हो रही है और कब होगी, इसका कोई जवाब जमीनी स्तर पर मिलना मुश्किल है. गांवों में ऐसा कोई माहौल नहीं दिखता, जिससे लगे कि पराली जलाने पर सच में रोक है.

किसानों का दावा-उपलब्ध नहीं करायी गयी वैकल्पिक व्यवस्था

किसान कह रहे हैं कि न तो उन्हें वैकल्पिक साधनों की उपलब्धता करायी गयी, न कोई फसल प्रबंधन प्रशिक्षण प्रभावी ढंग से दिया गया. इस लगातार दोहराई जाने वाली समस्या के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर कब तक कागजी योजनाएं और खेतों की हकीकत एक-दूसरे के विपरीत चलती रहेंगी. पराली जलाना सिर्फ एक कृषि पद्धति की समस्या नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण, स्वास्थ्य और मिट्टी की गुणवत्ता से जुड़ा अहम मुद्दा है. ग्रामीणों का कहना है कि यह स्थिति बता देती है कि रोक और नियम सिर्फ कागज पर है, जबकि खेतों में सारा सिस्टम धुएं के गुबार में गुम हो चुका है. किसान अपनी जगह सही महसूस करते हैं. सरकार अपनी जगह सही महसूस करती है, क्योंकि वह योजना बना देती है. लेकिन इन दोनों के बीच असल नुकसान उस जमीन, उस हवा और उन लोगों का हो रहा है जो रोज इसी माहौल में सांस ले रहे हैं.

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