रामायण और भगवद्गीता से जीवन में मिलती है खुशी : मोरारी बापू
शहर के आरआईसीसी में आयोजित श्रीराम कथा के पांचवें दिन पूज्य मोरारी बापू ने दो पुस्तक मानस नव जीवन (अहमदाबाद) और मानस अपराध (बरेली) का लोकार्पण किया.
राजगीर. शहर के आरआईसीसी में आयोजित श्रीराम कथा के पांचवें दिन पूज्य मोरारी बापू ने दो पुस्तक मानस नव जीवन (अहमदाबाद) और मानस अपराध (बरेली) का लोकार्पण किया. नितिनभाई वडगामा द्वारा संपादित इस पुस्तक का लोकार्पण व्यासपीठ से किया गया. कथा की शुरुआत में बापू ने अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स का वह पत्र पढ़ा, जिसमें उन्होंने अवकाश में रामायण और भगवत गीता के पाठ से आत्मबल मिलने की बात कही है. उल्काओं से यान को खतरा था. पर सुनीता की प्रार्थना से दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ और रक्षा हुई. उन्होंने वेद विद्या के लिए नासा में विभाग की मांग की. “जय हिंदू, जय सनातन धर्म ” कहा. उन्होंने आनंदा यूनिवर्सिटी की संकल्पना दोहराते हुए कहा कि यह प्रेम, स्वतंत्रता और ज्ञान पर आधारित है. इसके कुलपति स्वयं रामायण की पोथी है. उन्होंने कहा कि हमारे सद्ग्रंथ रामायण, गीता और सनातन धर्म किसी को विचलित करने के लिए नहीं, बल्कि सबको आनंद और प्रेरणा देने के लिए हैं. उन्होंने ””””””””””””””””आनंदा यूनिवर्सिटी”””””””””””””””” की कल्पना प्रस्तुत की, जहां प्रेम, विवेक, सरलता और स्वाध्याय शिक्षा के आधार हैं. बापू ने कहा कि विवेक ही मनुष्य का प्रकाश है. संयमित जीवन ही उसका यज्ञ है. ””””””””””””””””आनंदा यूनिवर्सिटी”””””””””””””””” की सुंदर कल्पना प्रस्तुत करते हुये उन्होंने कहा कि यह भौतिक भवन की नहीं, बल्कि अध्यात्मिक चेतना और प्रेम से बनी है. उन्होंने कहा कि हमारे सद्ग्रंथ रामायण और भगवद गीता किसी को विचलित नहीं करते हैं, बल्कि जीवन में खुशी और प्रेरणा देते हैं. सत्य से ही अभय उत्पन्न होता है और अभय से ही साहस. बापू ने कहा कि ””””””””””””””””आनंदा यूनिवर्सिटी”””””””””””””””” चलती-फिरती विश्वविद्यालय है. इसके कुलपति रामचरितमानस की व्यासपीठ है. यहां न कोई शुल्क है, न परीक्षा और न ही कोई प्रमाण पत्र की आवश्यकता. यहां प्रेम ही शिक्षा का आधार है. बापू ने विद्यार्थियों के लिए आठ कुलपति वृत्तियों का उल्लेख किया. इनमें गणेश (विवेक), गौरी (श्रद्धा), गो (सरलता), गीरा (मधुर वाणी), गंग (ज्ञानधारा), गोपाल (इंद्रिय संयम), ग्रंथ (मुक्तचित्त) हैं. बापू ने बताया कि ब्रह्मा जी ने पाँच प्रजाएँ बनाई है. देव, दानव, पितृ, पशु और मानव. सबके लिए भोजन और प्रकाश की व्यवस्था की गई. मानव को विवेक और सत्त्विक भोजन दिया गया. उन्होंने श्रोताओं से अपील की कि अभक्ष्य पदार्थ और हानिकारक पेयों का त्याग करें. बापू ने छात्रों के लिए चार यज्ञ बताये – द्रव्य यज्ञ (दान), तप यज्ञ (संयम), योग यज्ञ (फल की अपेक्षा त्याग) और स्वाध्याय यज्ञ (निरंतर आत्म-अध्ययन). उन्होंने कहा कि इन यज्ञों के माध्यम से ही विद्यार्थी “ज्ञान यज्ञ ” की पूर्णता तक पहुँच सकते हैं. संगीत के सात सुरों की अद्भुत व्याख्या करते हुए बापू ने “सा” को सागर, “रे” को रेती में भगवान का प्राकट्य, “ग” को गगन की दिव्यता, “ध” को धर्म, “प” को परमात्मा की स्मृति, “नि” को नीति बताया. उन्होंने चार प्रकार के लोगों का वर्णन किया (1) जो कर्म करते हैं पर कृपा नहीं पाते, (2) जो बिना कर्म के कृपा पाते हैं, (3) जो कर्म और कृपा दोनों पाते हैं, और (4) जो न कर्म करते हैं, न कृपा पाते हैं। कथा में आगे भगवान राम के अवतरण की मंगलमयी कथा का वर्णन कर बापू ने राम जन्म की बधाई देते हुए कथा का विराम किया.बापू ने कहा ब्रह्मा जी ने पांच प्रजा बनाई. देव, दानव, पितृ, पशु और मानव. इन चारों प्रजा ने अपने लिए ब्रह्मा जी से प्रकाश और भोजन की व्यवस्था मांगी. देवताओं के लिए ब्रह्माजी ने प्रकाश के लिए सूर्य और भोजन के लिए यज्ञ की आहुति की व्यवस्था की. पितृ गण के लिए चंद्र का प्रकाश और पितृ तर्पण, पिंडदान और पीपल के वृक्ष पर चढाये गये जल द्वारा खान पान की व्यवस्था की. दानव के लिए अंधकार ही उजाला है, तो उसे प्रकाश की आवश्यकता नहीं है और अभक्ष्य भक्षण करना और शराब पीना दानव के लिए तय किया गया. पशुओं के लिए मनुष्य ही प्रकाश है. किसी के भी खेत में खाना खा लेने की बात पशुओं के लिए तय की गई. आखिर में मनुष्य को ब्रह्मा जी ने कहा कि “तुम विश्व का सर्वश्रेष्ठ सर्जन हो विवेक ही मनुष्य का उजाला है. फल, मूल कंद अन्न या हरि नाम का आहार तुम्हारा भोजन है. पूज्य बापू ने व्यास पीठ से अपील किया कि अगर आप अभक्ष्य खाते हो तो मेरी कथा सुनने के बाद छोड़ देना. न पीने लायक कुछ भी पीते हो, तो उसे भी छोड़ देना.
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