Bihar Elections 2025: मांझी की बहू से लेकर उपेंद्र की पत्नी तक,‘विरासत बचाने’ के नाम पर महिलाएं है चुनावी मैदान में

Bihar Elections 2025: बिहार की सियासी फिज़ा में महिलाओं की मौजूदगी दिख तो रही है, लेकिन उनके हाथों में असली कमान नहीं. टिकट देने की उदारता भी राजनीतिक घरानों की दीवारों के भीतर सिमट गई है. इस बार भी बेटियां, बहुएं और पत्नियां चुनाव मैदान में हैं, मगर ‘विरासत बचाने’ की जद्दोजहद में.

By Pratyush Prashant | November 3, 2025 8:10 AM

Bihar Elections 2025: (आनंद तिवारी, पटना) बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं की संख्या बढ़ी है, पर यह वृद्धि प्रतिनिधित्व से ज्यादा ‘परिवारिक रणनीति’ का हिस्सा लगती है. एनडीए ने जहां 34 महिला उम्मीदवारों को मौका दिया है, वहीं महागठबंधन ने 30 महिलाओं को टिकट थमाया है. पहली नजर में यह महिला सशक्तिकरण जैसा दिखता है, लेकिन गहराई से देखने पर कहानी कुछ और कहती है, इनमें आधे से ज्यादा प्रत्याशी राजनीतिक घरानों से आती हैं.
बहुत कम उम्मीदवार ऐसी हैं जो आम पृष्ठभूमि से हैं या राजनीति में खुद की पहचान बनाकर पहुंची हैं. यह चुनाव एक बार फिर साबित कर रहा है कि बिहार की राजनीति में महिलाएं अब भी ‘विरासत की वाहक’ बनकर ही मैदान में उतरती हैं.

घर की औरतें’ चुनाव में, ‘घर के मर्दों’ की विरासत दांव पर

जेडीयू, राजद, भाजपा, लोजपा, हम, कांग्रेस सभी प्रमुख दलों ने टिकट बंटवारे में ‘घराने की गारंटी’ को तरजीह दी है. जेडीयू में तो यह सिलसिला लगभग पूरी तरह दिखता है, कोमल सिंह (गायघाट) सांसद व एमएलसी की बेटी, शालिनी मिश्रा (केसरिया) पूर्व सांसद की बेटी, मीना कामत (बाबूबरही) पूर्व मंत्री की बहू, विभा देवी (नवादा) पूर्व विधायक राजवल्लभ यादव की पत्नी, और लेशी सिंह (धमदाहा) समता पार्टी के बाहुबली नेता बूटन सिंह की पत्नी हैं.
फूलपरास से शीला मंडल, जिनके ससुर धनिक लाल राज्यपाल रह चुके हैं, भी इसी परंपरा की मिसाल हैं. अररिया से शगुफ्ता अजीम अपने पति और ससुर की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं.

‘मांझी परिवार’ की दो पीढ़ियां मैदान में

‘हम’ पार्टी के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी ने इस बार चुनाव में परिवार को ही मोर्चे पर लगाया है. उनकी बहू लवीना मांझी इमामगंज सीट से और समधन ज्योति देवी बाराचट्टी सीट से चुनाव मैदान में हैं. मांझी परिवार के इस ‘डबल कार्ड’ ने पार्टी के भीतर ही नहीं, पूरे बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है. यह साफ इशारा है कि हम जैसे छोटे दलों में भी अब राजनीति विरासत के घेरे से बाहर नहीं जा पा रही है.

‘पति की कुर्सी, पत्नी का चेहरा’—बीजेपी और लोजपा का पैटर्न

भाजपा ने भी टिकट बंटवारे में वही फॉर्मूला अपनाया है ‘परिवार वाला भरोसेमंद उम्मीदवार’. प्राणपुर से निशा सिंह, मंत्री विनोद सिंह की पत्नी हैं. जमुई से श्रेयसी सिंह, पूर्व सांसद दिग्विजय सिंह की बेटी हैं. कौचाहां से रमा निषाद, कैप्टन जयनारायण निषाद की बहू और मौजूदा सांसद अजय निषाद की पत्नी हैं. लोजपा (रामविलास) में भी यही चलन है—चिराग पासवान ने जहानाबाद की जिप अध्यक्ष रानी कुमारी को मखदुमपुर से टिकट दिया, जबकि नवादा से भाजपा जिलाध्यक्ष की पत्नी विनीता मेहता को मैदान में उतारा गया.

उपेंद्र कुशवाहा ने पत्नी को दिया टिकट, राजद-कांग्रेस ने भी दोहराई विरासत

रालोसोपा के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा ने सासाराम से अपनी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है. वहीं राजद में भी पारिवारिक चेहरों की भरमार है. बनियापुर से चांदनी देवी सिंह, विधायक रहे अशोक सिंह की पत्नी हैं. अतरी से वैजयंती देवी, पूर्व विधायक रंजीत यादव की पत्नी हैं. परसा से डॉ. करिश्मा राय, पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय की पोती हैं. लालगंज से शिवानी शुक्ला, जिनके माता-पिता दोनों विधायक रह चुके हैं, भी मैदान में हैं.
कांग्रेस ने भी हिसुआ से नीतू कुमारी, मंत्री रहे आदित्य सिंह की बहू को और बेगूसराय से अमिता भूषण, पूर्व सांसद की बेटी को टिकट दिया है.

‘विरासत बनाम अवसर’ की लड़ाई में कहां हैं असली महिलाएं?

यह सवाल बार-बार उठता है कि क्या ये चुनावी मैदान में उतरी महिलाएं वास्तव में ‘राजनीतिक नेता’ हैं या सिर्फ अपने परिवार की विरासत को बचाने का माध्यम? ज्यादातर मामलों में टिकट उन्हें मिला जिनका राजनीतिक बैकग्राउंड पहले से तय था. ऐसे में उन आम महिलाओं की भूमिका नगण्य रह गई है, जो खुद समाज या संगठन स्तर पर सक्रिय रही हैं. मजदूरों, शिक्षिकाओं या सामाजिक कार्यकर्ताओं की जगह फिर वही चेहरे हैं जो नाम, पहचान और रसूख के दम पर ‘योग्यता’ मानी जाती हैं.

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