पुनपुन नदी का अस्तित्व खतरे में, मिटती जा रही हैं पहचान

नगर कभी अविरल बहने वाली पुनपुन नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है. संरक्षण के अभाव में दम तोड़ रही है

By Prabhat Khabar | June 3, 2020 1:02 AM

औरंगाबाद : नगर कभी अविरल बहने वाली पुनपुन नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है. संरक्षण के अभाव में दम तोड़ रही है. नवीनगर प्रखंड के कुंड के पास पुनपुन नदी का उद्गम स्थल स्थित है. यहां छोटे से गड्ढे से पुनपुन नदी निकलती है और नवीनगर होते हुए पटना गंगा नदी को जाती है. जानकार बताते हैं कि पहले इस नदी में पानी की अविरल धारा बहती थी. यह नदी बरसाती बनकर रह गयी है.

गर्मी में चापाकल सूखने के कारण ग्रामीण इस नदी का पानी पीते थे. अतिक्रमण के कारण नदी का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया है. पुनपुन को आदि गंगे पुनपुन की संज्ञा दी गई है. श्रद्धालु नदी में पितृ तर्पण करते हैं. इस नदी की व्याख्या पुराणों में की गई है. नवीनगर के तत्कालीन सीओ राणा अक्षय प्रताप सिंह के नेतृत्व में पुनपुन नदी को अतिक्रमणमुक्त करने की मुहिम चलाई गई थी, लेकिन यह खानापूर्ति मात्र बनकर रह गया. फाइल पर ही अतिक्रमण मुक्त हो सका.

किसानों का कहना है कि इस नदी से दर्जनों गांव में खेती होता था, परंतु आज देखने के लिए भी पानी नदी में नहीं है. इन दिनों मौसम के कड़े रूख के कारण जल संकट गहरा गया है. क्षेत्र के तमाम जलस्त्रोत दम तोड़ने लगे हैं. लोग पेयजल की समस्या को लेकर गंभीर दिख रहे हैं. जिनके घर आधुनिक युग में सबमर्सिबल या ट्यूबवेल है, अभी वही घर थोड़ा पानी की समस्या से राहत महसूस कर रहा है.

बाकी के घरों में जहां हैंडपंप लगे हैं. वह पानी देना बंद कर दिया है. लोगों का कहना है कि अधिकांश चापाकल दम तोड़ दिया है. वहीं कुछ ऐसे चापाकल हैं, जिनसे केवल सुबह और शाम पानी मिल रहा है. ऐसे में लोगों को पानी के लिए उन घरों का मुंह देखना पड़ रहा है जिनके घरों में सबसर्मिबल लगा है, लेकिन यह सुविधा क्षेत्र के कुछ ही घरों में उपलब्ध है, जिससे समस्या का निदान होना सभी घरों में संभव नहीं है.

यह समस्या दिन प्रतिदिन गहराती जा रही है. नदियों का अस्तित्व खतरे में है. हर घर नल का जल योजना प्रभावशाली नहीं दिख रहा है. हालांकि इस योजना से लोगों को उम्मीद थी कि अब सभी घरों में शुद्ध पेयजल की समस्या कम होगी, लेकिन यह योजना भी कुछ ही वार्डों में क्षणिक सुख दे रहा है.

ऐसे में जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है. प्रखंड के अति नक्सल प्रभावित दक्षिणी आठ पंचायतों में पानी के लिए हाहाकार है. आमजन से लेकर जानवर तक पानी को लेकर बेचैन हैं. जानवर पानी को लेकर एक गांव से दूसरे गांव भटक रहे हैं. जल स्तर नीचे चले जाने के कारण कई चापाकल बंद पड़े हैं. पानी को लेकर दक्षिणी आठ पंचायतों में स्थिति भयावह बनी हुई है.

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