परमानपुर एक अक्टूबर से सात अक्टूबर तक होगा श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ

श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ के लिए परमानपुर में हुई महाबैठक

By DEVENDRA DUBEY | August 25, 2025 7:23 PM

आरा.

परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर देश के महान मनीषी संत लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज के मंगला अनुशासन में यज्ञ समिति परमानपुर ने लगभग 55 गांवों के प्रतिनिधियों की महाबैठक हुई, जिसमें श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ की तैयारी को लेकर विचार-विमर्श किया गया. स्वामी जी के चातुर्मास्य व्रत के उपलक्ष्य में एक अक्टूबर से सात अक्टूबर तक श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ का आयोजन सुनिश्चित हुआ है, जिसको लेकर के तैयारी युद्ध स्तर पर की जा रही है. रोहतास, भोजपुर, बक्सर जिला के परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल से सटे लगभग चारों तरफ की 20 किलोमीटर की दूरी में मौजूद सभी गांवों के भक्त श्रद्धालु शामिल हुए. अलग-अलग गांवों से आये सभी लोगों ने अपने विचार साझा किये, जिससे महायज्ञ का आयोजन में जो भी व्यवस्थाएं हैं, उसको बेहतर तरीके से व्यवस्थित की जा सके. परमानपुर चातुर्मास व्रत यज्ञ समिति की तरफ से ग्रामीण स्तर, पंचायत स्तर एवं 20 किलोमीटर के दायरे में मौजूद सभी गांवों के स्तर पर यज्ञ की तैयारी को लेकर महाअभियान चलाया जा रहा है, जिससे महायज्ञ की सभी तैयारी सही तरीके से सुनिश्चित की जा सके.

सात अक्टूबर को होगा अखिल भारतीय महाधर्म सम्मेलनसात अक्टूबर को अखिल भारतीय महाधर्म सम्मेलन का भी आयोजन होने वाला है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय संत महात्मा शामिल होंगे. एक ही मंच पर भारत के उन दिव्य महापुरुषों का दर्शन एवं आशीर्वचन श्रवण करने का भी अवसर प्राप्त होगा. जहां-जहां सती के जले अंग गिरे वहीं शक्तिपीठ के नाम से जाना गया : जीयर स्वामी जीस्वामी जी ने श्रीमद्भागवत कथा प्रसंग अंतर्गत व्यास जी को सुखदेव जी, राजा दक्ष एवं भगवान शंकर के आपसी मनमुटाव में किस प्रकार से सती को अपमानित होना पड़ा, उसकी कथा को गंगा के पावन तट पर सुना रहे हैं. पिछले दिन शंकर जी को प्रयागराज में आयोजित अभिनंदन समारोह में राजा दक्ष के द्वारा अपमानित किया गया था. जिसके बाद राजा दक्ष शंकर जी को अपमानित करने के लिए बड़े यज्ञ का आयोजन कर रहे हैं. उस यज्ञ में सती जाने के लिए शंकर जी से आज्ञा मांग रही है, लेकिन शंकर जी सती को जाने के लिए अनुमति नहीं दे रहे हैं. वहीं सती बिना आज्ञा के अपने पिता के यज्ञ में शामिल होने के लिए जा रही हैं. वहां जाने के बाद सबसे पहले सती का अपने बहनों से भेंट होता है. सती के बहनों के द्वारा सती जी को बहुत कुछ सुनाया जाता है. सती की बहन कहती हैं, तुम्हारा पति दिनभर सांपों के साथ रहता है. उसका व्यवहार भी अलग है. चलो ठीक है तुम आ गयी, लेकिन उस शंकर को लेकर नहीं आयी, जो दिन भर भयंकर जीवन के साथ रहता है. सती जी वहां से आगे बढ़ती है. यज्ञशाला में प्रवेश करती हैं, जहां पर सती के पिता प्रजापति राजा दक्ष यजमान के रूप में बैठे हुए हैं. प्रजापति राजा दक्ष सती को देखते हैं. कई प्रकार के अशुभनीय बात बोलना शुरू कर दिये. राजा दक्ष ने कहा सती और शंकर को तो हमने निमंत्रण भी नहीं दिया था. यह अशुभ लोग पता नहीं कैसे यहां तक पहुंच गये हैं. शंकर के जैसा ही सती का भी व्यवहार आचरण हो गया है. कई प्रकार से प्रजापति राजा दक्ष ने सती को अपमानित किया, जिसके बाद सती भी काफी गुस्से में हो गयीं. वह भी अपने पिता राजा दक्ष को खूब सुनाती हैं. कहती हैं आप हमारे पिता बनने लायक नहीं थे, लेकिन गलती से मेरा जन्म आपके घर में हो गया. इस प्रकार से बहुत कुछ वाद विवाद हुआ, जिसके बाद सती वहीं हवन कुंड में अपने शरीर को त्याग कर देती हैं. ऐसा अन्य पुराणों में बताया गया है, लेकिन श्रीमद्भागवत में इसकी चर्चा नहीं की गयी है. अन्य पुराणों में बताया गया है कि सती जब अपने शरीर का त्याग उस यज्ञ मंडप में कर देती हैं. उसके बाद इस बात की जानकारी शंकर जी को होता है. वही शंकर जी गुस्से में सती के शरीर को उठाकर के पूरे धरती पर घुमाते हैं. जहां-जहां सती के अंग जो जल गये थे और टूट करके गिरे वहीं शक्तिपीठ के नाम से जाना गया हैं. जैसे विंध्यवासिनी, वैष्णो देवी इत्यादि शक्तिपीठ को आप जानते हैं. वही श्रीमद् भागवत के अनुसार जब सती अपने शरीर का त्याग कर दी, उसके बाद शंकर जी के गणों ने यज्ञ को पूरी तरीके से विधवंस कर दिया. राजा दक्ष समेत उनके सभी लोगों को मारा पीटा गया. उसके बाद नारद जी ने इस बात की जानकारी शंकर जी को दिए. ब्रह्मा जी, विष्णु भगवान को दिए. देवता लोग ब्रह्मा जी के पास गए कि महाराज यज्ञ विधवंस हो गया है. उस यज्ञ को पूरा करना चाहिए. जिसके बाद ब्रह्मा जी देवता लोग समेत शंकर जी के पास पहुंचे हैं, शंकर जी एवं ब्रह्मा जी सभी देवता लोग विष्णु भगवान के पास गये. जिसके बाद ब्रह्मा, विष्णु, महेश एवं सभी देवता लोग वापस यज्ञस्थल पर पहुंचते हैं. एक बार पुन: सभी चीजों को व्यवस्थित करके यज्ञ को पुनः प्रारंभ किया जाता है. जिसके बाद राजा दक्ष दूसरी बार जब यज्ञ में यजमान बनते हैं तो शंकर जी ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान तीनों लोगों की स्तुति करते हैं. जिसके बाद सही तरीके से यज्ञ को पूरा किया जाता है.

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