दुलारचंद के जीवन में छाये अंधेरे को दूर करने को भीख मांग रही पत्नी गीता, दो जून की रोटी के भी पड़े हैं लाले

एक दिन अचानक उसे सांस लेने में दिक्कत हुई. परेशानी कुछ इस कदर बढ़ गयी कि उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. उस दिन के बाद से आज तक वह परिवार का खेवनहार नहीं बल्कि बोझ बन कर जी रहा है.

By Prabhat Khabar | September 1, 2020 7:03 AM

रबिंद्र कुमार, परवाहा : जिंदगी भी कुछ इस कदर इम्तिहान लेती है कि लोग मौत की दुआ मांगने लगते हैं. अपने आंख से बच्चों को न देख पाना, धड़कनों तक सांस की पहुंच भी घड़ी की सुई देख कर चले तो वैसे जिंदगी मौत की आरजू मांगने लगती है. लेकिन परिजनों की आस इस बात पर टिकी होती है कि कोई न कोई रहनुमा आयेगा, जो उनकी सुनी जिंदगी में आस की चिंगारी जगा जायेगा.

यह कहानी भी एक ऐसे परिवार की है जिसकी बागडोर एक ऐसे अभिभावक के जिम्मे है जो न तो पत्नी को दो जून की रोटी दे सकता है न बच्चों को लाड़ का कोई भी थपकी. बस दे सकते हैं तो दर्द भरी आह जिसे सुन परिवार का हर सदस्य रो पड़ता है. दुलारचंद रजक आज से पांच वर्ष पूर्व पत्नी व दो बच्चों के साथ ठीक-ठाक जिंदगी गुजर-बसर कर रहा था, लेकिन होनी को तो कुछ ओर ही मंजूर था. एक दिन अचानक उसे सांस लेने में दिक्कत हुई. परेशानी कुछ इस कदर बढ़ गयी कि उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. उस दिन के बाद से आज तक वह परिवार का खेवनहार नहीं बल्कि बोझ बन कर जी रहा है.

श्वसन रोग का इलाज करते-करते गंवा बैठा दोनों आंखें : फारबिसगंज प्रखंड क्षेत्र के वार्ड संख्या 11 का दुलारचंद रजक पांच वर्षों से ज्यादा समय से श्वसन रोग से ग्रसित था. इसके बाद वह दिल्ली में दो बार नाक का ऑपरेशन कराया. बावजूद उसकी बीमारी ठीक नहीं हुई. उसके बाद कटिहार मेडिकल कॉलेज, पटना आदि स्थानों पर भी कई चिकित्सकों से इलाज कराया बावजूद कोई सुधार नहीं हो पाया. बल्कि उसने अपने नाक को तो खो ही दिया, साथ ही अपनी दोनों आंखों को भी गंवा दिया. अब उसकी पत्नी गीता देवी व दो बच्चे दिलकखुश व प्रह्लाद की देखभाल कौन करेगा यह समस्या सामने खड़ी है. बीमार दुलारचंद की नाक तो बिल्कुल टेढ़ी हो ही गयी है साथ ही आंख की रोशनी भी चली गयी.

दुलारचंद पत्नी गीता देवी ने बताया कि पांच वर्षों से पति बीमार हैं लेकिन न तो कोई प्रतिनिधि व न ही स्थानीय प्रशासन ही हमलोगों की मदद कर रहा है. मुझे अभी तक आवास भी नहीं मिला है. न ही पति को अभी तक पेंशन योजना का ही लाभ मिल पाया है. यदि स्थानीय प्रतिनिधि हमलोगों की मदद कर किसी अच्छे सरकारी अस्पताल में भर्ती करा देते तो पति का भला हो जाता. प्रभात खबर ने उस परिवार के दु:खों पर जो पड़ताल की है, उस लिख पाना नामुमकिन है, हां यह गुजारिश जरूर होगी कि मानवीय संवेदना के आधार पर मदद के लिए हाथ बढ़े तो दुलारचंद का इलाज भी संभव होगा. साथ उसके बच्चों की परवरिश भी हो जायेगी.

posted by ashish jha

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