पांच पेज का सुसाइड नोट, तनाव में होने की लिखी बात

पटना : पुलिस ने हॉस्टल में जाकर तीन घंटे तक लंबी जांच की. इस दौरान कमरे से एक डायरी मिली. जिसमें पांच पेज का सुसाइड नोट मिला है. छात्रा ने सुसाइड नोट में अपने तनाव में होने की जानकारी दी है. सुसाइड के लिए किसी पर आरोप नहीं लगाया है. हालांकि सुसाइड नोट में और […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 27, 2017 5:52 AM
पटना : पुलिस ने हॉस्टल में जाकर तीन घंटे तक लंबी जांच की. इस दौरान कमरे से एक डायरी मिली. जिसमें पांच पेज का सुसाइड नोट मिला है. छात्रा ने सुसाइड नोट में अपने तनाव में होने की जानकारी दी है. सुसाइड के लिए किसी पर आरोप नहीं लगाया है. हालांकि सुसाइड नोट में और क्या लिखा हुआ है इसकी जानकारी पुलिस ने अभी नहीं दे रही है, जांच जारी है.
पुलिस का कहना है कि सबसे पहले घटना की जानकारी छात्रा के रूम पार्टनर प्रेरणा विश्वास को हुई. उसने जब दरवाजा अंदर से बंद देखा तो पहले अावाज लगायी. जब दरवाजा नहीं खुला तो खिड़की के रास्ते दरवाजे की छिटकिनी खोली गयी. इसके बाद प्रेरणा और द्राैपदी की मदद से उसे हॉस्पिटल में भरती कराया गया. छात्रा के पिता का नाम विजय शुक्ला है.
पटना : मनोवैज्ञानिक अमृता श्रुति कहती है कि आत्महत्या की घटनाएं निरंतर बढ़ती जा रही है. इसके जिम्मेवार कोई एक नहीं, बल्कि पूरा सिस्टम है. जिसकी वजह से आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही है. खासकर मेडिकल, इंजीनियरिंग और एनआइटी जैसे संस्थानों के बच्चे सुसाइड कर रहे हैं.
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह छात्र शिक्षा में किस तरह का तनाव झेल रहे हैं. उस पर परिवार की उम्मीदें किस तरह से हावी है. उसे फ्रेंड फियर किस कदर घेरे हुए है. उसकी एजुकेशन क्षमता कितनी है आैर वह कैपिसिटी से कितना अधिक प्रयास कर रहा है. कंपीटिशन की होड़ पूरी तरह से तनाव के मकड़जाल में ले लेता है. इसके बाद वह सीधे सुसाइड तक की घटनाओं को अंजाम दे देते हैं. ऐसे में सुसाइड जैसी घटनाओं में पूरा सिस्टम दोषी है, जो उसे सुसाइड के लिए प्रेरित करता है.
समस्याओं को करें दूर
शिक्षा व्यवस्था की कमियों को दूर करना होगा
संस्थानों में पढ़ानेवाले शिक्षकों की कमी और उनकी क्वालिटी पर ध्यान देना होगा
माता-पिता बच्चों पर अपनी उम्मीदों का बोझ न डालें
बच्चों को कंपीटीशन के लिए नहीं, बेहतर एजुकेशन के लिए तैयार करें
बच्चों की समस्याओं को जानें, उन्हें दूर करें
उन्हें नैतिक शिक्षा दें, न कि सामाजिक बंधनों में बांधे

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