IPL Auction 2026: क्या किसी विदेशी खिलाड़ी को 18 करोड़ से ज्यादा रुपए नहीं मिलेंगे! जानें BCCI का नियम
IPL Auction 2026: आईपीएल 2026 की मिनी नीलामी में विदेशी खिलाडियों को लेकर नया नियम चर्चा में है. बोली 18 करोड से ऊपर जा सकती है लेकिन खिलाड़ी को इससे ज्यादा सैलरी नहीं मिलेगी. अतिरिक्त रकम बीसीसीआई वेलफेयर फंड में जाएगी. इस नियम से नीलामी में संतुलन और पारदर्शिता बनी रहेगी.
IPL Auction 2026: आईपीएल 2026 (IPL 2026) की मिनी नीलामी इस बार कुछ अलग और दिलचस्प नियम के साथ होने जा रही है. खासकर विदेशी खिलाडियों को लेकर एक ऐसा नियम लागू है जिसे समझना फैंस के लिए जरूरी है. नीलामी के दौरान किसी विदेशी खिलाड़ी पर बोली 18 करोड से ऊपर जा सकती है. लेकिन इसके बावजूद उस खिलाड़ी को मिलने वाली सैलरी 18 करोड से ज्यादा नहीं होगी. यह नियम पहली नजर में उलझन भरा लग सकता है. लेकिन इसका मकसद नीलामी में संतुलन बनाए रखना और विदेशी खिलाडियों की कीमत को बेवजह बढ़ने से रोकना है. (BCCI Major salary Lock Rule).
विदेशी खिलाड़ी की सैलरी पर 18 करोड की हार्ड कैप
आईपीएल में विदेशी खिलाडियों के लिए एक अधिकतम फीस तय की गई है. इसे हार्ड कैप कहा जाता है. इस नियम के तहत कोई भी विदेशी खिलाड़ी नीलामी में चाहे जितनी ऊंची बोली हासिल कर ले. उसकी सैलरी एक तय सीमा से ज्यादा नहीं हो सकती. आईपीएल 2026 के लिए यह सीमा 18 करोड रखी गई है. यानी किसी भी विदेशी खिलाड़ी को टीम 18 करोड से ज्यादा भुगतान नहीं कर सकती. भले ही बोली 19 या 20 करोड तक क्यों न पहुंच जाए.
अधिकतम फीस तय करने का नियम क्या कहता है?
आईपीएल का नियम कहता है कि विदेशी खिलाड़ी की अधिकतम फीस दो आंकडों में से जो कम हो वही मानी जाएगी. पहला है मौजूदा सीजन का सबसे ऊंचा रिटेंशन अमाउंट. दूसरा है पिछली मेगा नीलामी में लगी सबसे ऊंची बोली. आईपीएल 2026 में सबसे ऊंचा रिटेंशन स्लैब 18 करोड का है. वहीं पिछली मेगा नीलामी में ऋषभ पंत पर 27 करोड की बोली लगी थी. चूंकि इन दोनों में 18 करोड कम है. इसलिए विदेशी खिलाडियों के लिए यही अंतिम सीमा बन गई.
बोली 18 करोड से ऊपर गई तो पैसा कहां जाएगा?
यहां सबसे ज्यादा कन्फ्यूजन फैंस को होता है. अगर किसी विदेशी खिलाड़ी पर बोली 18 करोड से ऊपर चली जाती है तो अतिरिक्त पैसा खिलाड़ी को नहीं मिलता. उदाहरण के लिए अगर किसी टीम ने 20 करोड की बोली जीत ली. तो खिलाड़ी को सिर्फ 18 करोड ही मिलेंगे. बाकी 2 करोड की रकम भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के वेलफेयर फंड में चली जाएगी. यानी बोली भले ही ज्यादा हो. लेकिन खिलाड़ी की सैलरी वहीं रुक जाती है.
फ्रेंचाइजी के पर्स पर पूरा असर क्यों पडता है?
इस नियम में एक और अहम बात है. टीम को यह अतिरिक्त रकम सिर्फ कागजों में नहीं चुकानी होती. फ्रेंचाइजी के पर्स से पूरी बोली की रकम कटती है. यानी अगर टीम ने 20 करोड की बोली लगाई. तो उसके पर्स से पूरे 20 करोड घट जाएंगे. भले ही खिलाड़ी को 18 करोड ही मिलें. इससे फ्रेंचाइजियां सोच समझकर बोली लगाने को मजबूर होती हैं. क्योंकि अतिरिक्त रकम भी उनके बजट को नुकसान पहुंचाती है.
नियम के पीछे BCCI की मंशा
BCCI का मकसद साफ है. मिनी नीलामी में खिलाडियों की कमी और टीमों के पर्स में अंतर के कारण कीमतें बेतहाशा न बढें. खासकर विदेशी खिलाडियों की सैलरी पर नियंत्रण बना रहे. इससे घरेलू खिलाडियों और टीमों के बीच संतुलन बना रहता है. साथ ही नीलामी एक विकृत बाजार बनने से बचती है. आईपीएल 2026 की मिनी नीलामी में यह नियम रणनीति और समझदारी की असली परीक्षा साबित होने वाला है.
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