Temple Tradition: दर्शन के बाद मंदिर की पैड़ी पर क्यों बैठते थे हमारे बुजुर्ग?
Temple Tradition: मंदिर में दर्शन के बाद पैड़ी पर बैठने की परंपरा को लोग अब साधारण आदत मानते हैं, जबकि इसके पीछे एक गहरा आध्यात्मिक उद्देश्य जुड़ा है. बुजुर्ग बताते हैं कि पैड़ी पर बैठकर एक विशिष्ट श्लोक का उच्चारण करना चाहिए, जो जीवन, मृत्यु और भगवान के सानिध्य के महत्वपूर्ण संदेश देता है.
Temple Tradition: बड़े बुजुर्गों का कहना है कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं, तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर कुछ समय मंदिर की पैड़ी या ऑटले पर अवश्य बैठना चाहिए. आजकल लोग पैड़ी पर बैठकर दुनिया भर की बातें कर लेते हैं, लेकिन वास्तव में यह परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई थी.
पैड़ी पर बैठकर क्यों बोलते थे एक श्लोक?
पुराने समय में मंदिर की पैड़ी पर बैठकर एक श्लोक बोला जाता था, जिसे लोग अब भूलते जा रहे हैं. यह श्लोक न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि जीवन के प्रति एक सुंदर दृष्टिकोण भी देता है.
वह श्लोक है
अनायासेन मरणम्
बिना देन्येन जीवनम्
देहान्ते तव सानिध्यम्
देहि मे परमेश्वरम्
श्लोक का अर्थ और गहरा संदेश
अनायासेन मरणम्
अर्थ– हमारी मृत्यु बिना किसी कष्ट के हो. हम कभी बिस्तर पर पड़े-पड़े दुख झेलकर मृत्यु को प्राप्त न हों. चलते-फिरते ही शरीर का त्याग हो जाए.
बिना देन्येन जीवनम्
अर्थ– जीवन में कभी किसी पर आश्रित न होना पड़े. न लकवे की स्थिति आए, न किसी पर बोझ बनने की स्थिति. भगवान की कृपा से सम्मानपूर्वक जीवन बीते.
देहान्ते तव सानिध्यम
अर्थ– मृत्यु के समय भगवान का सानिध्य मिले. जैसी भीष्म पितामह जब प्राण त्याग रहे थे, तब स्वयं भगवान उनके सामने उपस्थित थे.
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देहि मे परमेश्वरम्
अर्थ– हे प्रभु, हमें ऐसा ही शुभ और पवित्र जीवन तथा मृत्यु का वरदान दें.
प्रार्थना और याचना में अंतर
प्रार्थना भगवान से श्रेष्ठ, आध्यात्मिक निवेदन है. इसमें सांसारिक वस्तुएं—गाड़ी, पैसा, घर, नौकरी—नहीं मांगी जातीं. ये सब तो भगवान आपकी पात्रता के अनुसार स्वयं देते हैं.
याचना केवल सांसारिक पदार्थों के लिए की जाती है, जबकि प्रार्थना जीवन की उच्चतर इच्छा का निवेदन है.
मंदिर में आंखें क्यों न बंद करें
मंदिर में प्रवेश करते समय और दर्शन करते समय आंखें खुली रखनी चाहिए. भगवान के स्वरूप, चरण, मुख़, श्रृंगार—सबको ध्यान से निहारना चाहिए. दर्शन करने के बाद पैड़ी पर बैठकर आंखें बंद करें और जो रूप देखा है, उसका मन में ध्यान करें. अगर ध्यान में स्वरूप न आए तो पुनः दर्शन करें. यही शास्त्र का निर्देश है.
