Shardiya Navaratri 2025: इस दिन से शुरू होने वाली है शारदीय नवरात्रि, ऐसे करें मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा

Shardiya Navaratri 2025: शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर 2025 से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलेगी. इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विशेष पूजा और व्रत का आयोजन होता है. हर दिन मां के अलग रूप की आराधना, भोग और रंग का महत्व है. जानें नौ दिनों की सही पूजा विधि.

By JayshreeAnand | September 20, 2025 2:34 PM

Shardiya Navaratri 2025: अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाने वाली शारदीय नवरात्रि, पूरे भारत में भक्ति और उल्लास का अद्भुत संगम लेकर आती है. यह वह समय है जब माँ दुर्गा के दिव्य आगमन का जश्न मनाया जाता है. चारों ओर पंडालों में माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं, और वातावरण उनके जयकारों से गूंज उठता है. कई स्थानों पर गरबा और डांडिया की धूम रहती है, तो कहीं रामलीला का मंचन इस पर्व की शोभा बढ़ाता है. यह पावन पर्व घटस्थापना (कलश स्थापना) के साथ आरंभ होता है और नौ दिनों तक चलता है, जिसमें भक्त माँ दुर्गा के नौ दिव्य स्वरूपों की आराधना करते हैं और व्रत रखकर आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त करते हैं. इस वर्ष, यह महापर्व 22 सितंबर से आरंभ होकर 2 अक्टूबर 2025 तक मनाया जाएगा.

नवदुर्गा के नौ स्वरूप: तिथिनुसार पूजा विधि और मंत्र

नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के एक विशिष्ट स्वरूप की पूजा की जाती है, जिसका अपना अलग महत्व, रंग, भोग और मंत्र है.

पहला दिन: मां शैलपुत्री

पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें ‘शैलपुत्री’ कहा जाता है. इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता, धन और समृद्धि का आगमन होता है. इस दिन साधक पीले वस्त्र धारण कर, गाय के घी का भोग लगाते हैं और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्री नमः” मंत्र का जाप कर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

दूसरा दिन: मां ब्रह्मचारिणी

तप, त्याग और वैराग्य की प्रतिमूर्ति मां ब्रह्मचारिणी की पूजा दूसरे दिन होती है. इनकी आराधना से संयम और शक्ति की प्राप्ति होती है. इस दिन हरे रंग के वस्त्र पहनकर शक्कर का भोग अर्पित करें और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः” मंत्र का जाप करें.

तीसरा दिन: मां चंद्रघंटा

इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है, इसलिए ये चंद्रघंटा कहलाती हैं. इनकी पूजा से साधक के समस्त पाप और नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है. इस दिन भूरे या ग्रे रंग के वस्त्र पहनें और दूध या खीर का भोग लगाकर “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चंद्रघंटायै नमः” मंत्र का जाप करें.

चौथा दिन: मां कुष्मांडा

माना जाता है कि जब सृष्टि नहीं थी, तब मां कुष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी. इनकी पूजा से बुद्धि और खुशहाली मिलती है. इस दिन नारंगी वस्त्र पहनकर मालपुए का भोग लगाएं और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडायै नमः” मंत्र से उनकी स्तुति करें.

पांचवां दिन: मां स्कंदमाता

भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा. यह स्वरूप सुख, समृद्धि और आरोग्य प्रदान करने वाला है. इस दिन माता को केले का भोग अर्पित करें और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नमः” मंत्र का जाप करें.

छठा दिन: मां कात्यायनी

महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में जन्म लेने वाली मां कात्यायनी की पूजा से भय और रोगों से मुक्ति मिलती है. इस दिन लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है. माता को शहद का भोग लगाएं और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायन्यै नमः” मंत्र का जाप करें.

सातवां दिन: मां कालरात्रि

भयंकर स्वरूप वाली लेकिन शुभ फल देने वाली मां कालरात्रि की पूजा सातवें दिन की जाती है. वे शत्रुओं का नाश करती हैं और हर संकट से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं. इन्हें गुड़ का भोग प्रिय है और इनका मंत्र है – “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नमः”.

आठवां दिन: मां महागौरी

अष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा होती है, जो दरिद्रता और दुखों को हरकर संतान सुख का वरदान देती हैं. इस दिन गुलाबी रंग के वस्त्र पहनकर नारियल का भोग लगाएं और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्यै नमः” मंत्र का जाप करें.

नौवां दिन: मां सिद्धिदात्री

नवरात्रि के अंतिम दिन सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. इनकी कृपा से असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं. इस दिन बैंगनी रंग के वस्त्र पहनकर तिल का भोग लगाएं और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नमः” मंत्र से माँ की आराधना करें.

शारदीय नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व

श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के तुरंत बाद शारदीय नवरात्रि का आरंभ होना इस बात का प्रतीक है कि पितरों को विदा करने के बाद अब दैवीय शक्ति की आराधना का समय है. यह केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि नारी शक्ति के सम्मान और नौ दिनों तक चलने वाली एक गहन आध्यात्मिक साधना है. इन नौ दिनों में नौ अलग-अलग रंगों के वस्त्र पहनने की परंपरा इस पर्व की जीवंतता को दर्शाती है. यह पर्व हमें नकारात्मकता को त्यागकर भक्ति, शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देता है.