Sawan Putrada Ekadashi 2022: सावन पुत्रदा एकादशी व्रत कर रहे तो जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, जानें

Sawan Putrada Ekadashi 2022: सावन पुत्रदा एकादशी व्रत 8 अगस्त को है. इस व्रत को करने से संतान संबंधी परेशानी दूर होती है. इस व्रत का करने वाले भक्तों को पूजा के साथ ही पुत्रदा एकादशी व्रत कथा पढ़ने या सुनने की सलाह दी जाती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 7, 2022 11:38 AM

Sawan Putrada Ekadashi 2022: सावन माह पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat) 08 अगस्त दिन सोमवार को है. मान्यता के अनुसार इस दिन व्रत रख कर सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा करने से पुत्र की प्राप्ति होती है. साथ ही जिन लोगों की संतान को किसी प्रकार का कष्ट हो तो सारे कष्ट दूर होते हैं. पुत्रदा एकादशी के दिन भक्ति भाव से भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ ही श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा भी भक्त को जरूर सुननी चाहिए या पढ़नी चाहिए. पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुनने या पढ़ने के बाद ही पूजा पर्ण मानी जाती है. साथ ही श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुनने से व्यक्ति के द्वारा किये गए जाने-अंजाने सभी प्रकार के पापों का नाश होता है. श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत करने जा रहे तो जान लें कौन-सी कथा पढ़ें.

सावन माह पुत्रदा एकादशी व्रत

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के महत्व और उसकी कथा के बारे में जानने की इच्छा प्रकट करते हुए उनसे बताने का आग्रह किया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि सावन के शुक्ल पक्ष की एकादशी श्रावण पुत्रदा एकादशी के नाम से जानी जाती है. श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत रखने वाले को इस कथा को पढ़ना या सुनना चाहिए.

द्वापर युग में एक महिष्मति नगर था, जिसका राजा महीजित था. उसे पुत्र न होने के कारण बड़ा ही दुख था. राजपाट भी उसे अच्छा नहीं लगता था. वह मानता था कि जिसका पुत्र नहीं है, उसे लोक और परलोक में कोई सुख नहीं है. उसने कई उपाय किए, लेकिन उसे पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई. जब वह राजा वृद्ध हो गया तो एक दिन सभा बुलाई और उसमें प्रजा को भी शामिल किया. उसने कहा कि वह पुत्र न होने के कारण दुखी है. उसने कभी भी दूसरों को दुख नहीं दिया, प्रजा का पालन अपने पुत्र की तरह किया. इसके बाद भी उसे पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई. ऐसा क्यों है? राजा के प्रश्न का हल ढूंढने के लिए मंत्री और उनके शुभंचिंतक जंगल में ऋषि मुनियों के पास गए. तब एक स्थान पर उनको लोमश मुनि मिले. उन सभी ने लोमश मुनि को प्रणाम किया तो उन्होंने उनसे आने का कारण पूछा. तब उन सभी ने राजा के कष्ट का कारण बताया. उन्होंने कहा कि उनके राजा महीजित पुत्रहीन होने के कारण दुखी हैं, जबकि वे प्रजा की देखभाल पुत्र की तर​ह करते हैं.

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तब लोमश ऋषि ने अपने तपोबल से राजा महीजित के पूर्वजन्म के बारे में पता किया. उन्होंने बताया कि यह राजा पूर्वजन्म में एक गरीब वैश्य था. धन के लिए इसने कई बुरे कर्म किए. एक बार यह ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को एक जलाशय पर पानी पीने गया. दो दिन से भूखा था. वहीं पर एक गाय भी पानी पी रही थी. तब इस राजा ने उस गाय को भगाकर स्वयं जल पीने लगा, इस वजह से राजा को इस जन्म में पुत्रहीन होने का दुख सहन करना पड़ रहा है. उन सभी ने लोमश ऋषि से इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा. तब उन्होंने बताया कि श्रावण शुक्ल एकादशी को व्रत करो. इससे अवश्य ही पाप मिट जाएंगे और पुत्र की प्राप्ति होगी.

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सभी मंत्री और शुभचिंतक वापस आ गए और श्रावण शुक्ल एकादशी के दिन सभी प्रजा ने विधिपूर्वक व्रत रखा और पूजा की, रात्रि जागरण किया. इसके बाद सभी ने श्रावण शुक्ल एकादशी व्रत के पुण्य फल को राजा को प्रदान कर दिया. इस व्रत के पुण्य प्रभाव से रानी ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया. इससे राजा खुश हो गया और राज्य में उत्सव मनाया गया. श्रावण शुक्ल एकादशी के दिन पुत्र की प्राप्ति हुई, इसलिए इसे पुत्रदा एकादशी कहते हैं.

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