Premanand Ji Maharaj: दूसरों को हमारी खुशियां और तरक्की बर्दाश्त नहीं होती क्या करें? महाराज ने बताया समाधान

Premanand Ji Maharaj: अक्सर ऐसा होता है कि जब हम खुश होते हैं, तब कुछ लोग ऐसी बातें कह देते हैं, जिससे हमारा मन विचलित हो जाता है. हमारी खुशियां धीरे-धीरे मन की अशांति में बदल जाती हैं. दिनभर हम उन्हीं बातों के बारे में सोचते रहते हैं और अपना समय व खुशियों के पल बर्बाद कर देते हैं. ऐसी स्थिति में हम सोचने लगते हैं कि आखिर क्या किया जाए. प्रेमानंद जी महाराज ने इसी विषय पर चर्चा करते हुए इसका सरल और प्रभावी समाधान बताया है.

By Neha Kumari | December 14, 2025 12:00 PM

Premanand Ji Maharaj: आपने कई बार ऐसा महसूस किया होगा कि जब आपके जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा होता है और आप खुश होते हैं, तभी कोई व्यक्ति ऐसी बात कह देता है या कोई ऐसा काम कर देता है, जिससे आपका मन दुखी हो जाता है. कहा जाता है कि ऐसा वही लोग करते हैं, जिन्हें दूसरों की खुशियां बर्दाश्त नहीं होतीं.

बिना किसी गलती के जब आपके साथ ऐसा होता है, तो आप सोच में पड़ जाते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? आखिर सामने वाले व्यक्ति को मेरी खुशियां क्यों नहीं बर्दाश्त हो रही हैं? इन सवालों और भावनाओं के कारण कई बार इंसान अपनी खुशियों को दबा देता है और उसका मन नकारात्मकता से भर जाता है.

कुछ लोगों को हमारी खुशियां बर्दाश्त क्यों नहीं होतीं?

भारत के प्रसिद्ध संत और आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद जी महाराज के सामने जब यह प्रश्न रखा गया, तो उन्होंने इसका बहुत सरल और गहरा उत्तर दिया. उनसे पूछा गया कि महाराज, कई लोग ऐसे होते हैं जिन्हें हमारी खुशियां बर्दाश्त नहीं होतीं. जब हमारे जीवन में कुछ अच्छा हो रहा होता है और हम खुश होते हैं, तो वे कुछ ऐसा बोल देते हैं या कर देते हैं, जिससे हमारा मन दुखी हो जाता है और हम आगे बढ़ना चाहते हुए भी रुक जाते हैं.

प्रेमानंद जी महाराज का जवाब

प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि जो लोग ऐसा करते हैं, उनसे दूरी बनाकर रखना चाहिए और उनसे किसी भी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहिए. दूसरों की नकारात्मक बातें सुनकर और देखकर जीवन नहीं जिया जा सकता.

उन्होंने कहा कि जिस तरह कुछ लोग आपकी तारीफ करते हैं, उसी तरह कुछ लोग आपकी बुराई भी करेंगे ,यह उनकी सोच है. हमें इस पर ध्यान नहीं देना चाहिए. जो लोग आपमें बुराई देखते हैं, उनकी बातों को मन में नहीं बैठाना चाहिए.

महाराज का कहना है कि हमें दूसरों की बातों पर ध्यान दिए बिना निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए. यदि आवश्यकता पड़े तो सामने वाले की सहायता भी करनी चाहिए, लेकिन जीवन किसी और की बातों या राय के अनुसार नहीं जीना चाहिए.

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