Parivartini Ekadashi Vrat Katha: परिवर्तिनी एकादशी पर आज जरूर सुनें ये व्रत कथा, पूरे होंगे हर कार्य
Parivartini Ekadashi Vrat Katha 2025: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं. इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं और व्रत-पूजा का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी की कथा सुनने और व्रत रखने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और पापों का नाश होता है.
Parivartini Ekadashi Vrat Katha: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व माना गया है. यह तिथि हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को आती है और भगवान विष्णु को समर्पित होती है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना के साथ व्रत रखने का अत्यंत शुभ फल मिलता है. धार्मिक मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी पर व्रत करने और विष्णु-लक्ष्मी की आराधना करने से सभी पापों का नाश होता है और भक्त को श्रीहरि की असीम कृपा प्राप्त होती है.
परिवर्तिनी एकादशी 2025 की तिथि(Parivartini Ekadashi)
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी व्रत 3 सितंबर 2025, बुधवार को रखा जा रहा है. एकादशी तिथि का आरंभ 3 सितंबर को सुबह 04:54 बजे होगा और इसका समापन 4 सितंबर को सुबह 04:22 बजे होगा. उदया तिथि के आधार पर व्रत 3 सितंबर को ही रखा जा रहा है. परिवर्तिनी एकादशी व्रत रखने के साथ कथा सुनने से शुभ फल की प्राप्ति होती है.
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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्व जानने के लिए अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया. तब श्रीकृष्ण ने कहा – “हे पार्थ! इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य स्वर्गलोक का अधिकारी बन जाता है. इसी दिन भगवान विष्णु शयनावस्था में करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है.”
श्रीकृष्ण ने आगे बताया कि त्रेतायुग में बलि नामक एक असुरराज था. वह बलवान, दानवीर और ब्राह्मणों का आदर करने वाला था. देवताओं का सिंहासन प्राप्त करने की इच्छा से उसने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया. यह देखकर देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की. तब भगवान विष्णु वामन रूप धारण कर राजा बलि के यज्ञ मंडप में पहुँचे और उससे तीन पग भूमि दान में मांगी.
राजा बलि ने सहर्ष यह वचन दे दिया. जैसे ही वामनदेव ने प्रतिज्ञा पाई, उन्होंने अपना स्वरूप विराट कर लिया और मात्र दो ही पगों में संपूर्ण ब्रह्मांड नाप लिया. तीसरे पग के लिए जब स्थान शेष न रहा, तब उन्होंने बलि से पूछा – “अब मैं तीसरा पग कहाँ रखूँ?” इस पर राजा बलि ने विनम्र होकर अपना सिर अर्पित कर दिया. उसकी दानशीलता और विनम्रता से प्रसन्न होकर वामनदेव ने अपना तीसरा पग उसके मस्तक पर रखा और उसे पाताल लोक पहुँचा दिया.
वामनदेव ने यह आशीर्वाद दिया कि वे सदैव पाताल लोक में बलि के साथ रहेंगे. तभी से मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु एक स्वरूप में पाताल में राजा बलि के साथ और दूसरे स्वरूप में क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर विराजमान रहते हैं. इसी दिन वे शयन के दौरान करवट भी बदलते हैं.
इस व्रत पर भगवान विष्णु के साथ वामन अवतार की पूजा का भी विधान है. श्रद्धालु इस दिन दही-चावल और चाँदी का दान करते हैं तथा रात्रि जागरण कर भक्ति भाव से हरि स्मरण करते हैं. मान्यता है कि जो भी परिवर्तिनी एकादशी का व्रत पूर्ण निष्ठा से करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर स्वर्गलोक की प्राप्ति करता है.
