‘बाढ़े पूत पिता के धर्मा, खेती उपजे अपने कर्मा’

परमहंस योगानंदजी एक दैवी पुरुष थे, जिनके लिए एक संत ने भविष्यवाणी कर रखी थी कि यह बालक अद्वितीय होगा. माता ज्ञानप्रभा घोष और पिता भगवती चरण घोष ने उस बालक नाम मुकुंद लाल घोष रखा. जिस आध्यात्मिक और संस्कारी वातावरण में उनके माता-पिता ने उनका लालन-पालन किया...

By Prabhat Khabar | January 5, 2021 12:12 PM

उक्त लोकोक्ति परमहंस योगानंदजी पर सटीक बैठती है. वे एक दैवी पुरुष थे, जिनके लिए एक संत ने भविष्यवाणी कर रखी थी कि यह बालक अद्वितीय होगा. माता ज्ञानप्रभा घोष और पिता भगवती चरण घोष ने उस बालक नाम मुकुंद लाल घोष रखा. जिस आध्यात्मिक और संस्कारी वातावरण में उनके माता-पिता ने उनका लालन-पालन किया, बहुत हद तक उसने भी मुकुंद लाल घोष को परमहंस योगानंद बनाने में योगदान दिया. माता-पिता का ही दिया संस्कार था कि उनके आठों बच्चे आध्यात्मिक हुए.

लेकिन पांच जनवरी 1893 को जन्मे मुकुंद ने तो 27 वर्ष की उम्र में ही पूरब से लेकर पश्चिम तक अपने आध्यात्मिक ज्ञान का पताका फहराना शुरू कर दिया. विस्मयकारी बात तो यह है कि सात मार्च 1952 को उनके भौतिक शरीर के छोड़ने के बाद भी उनके दिखाये मार्ग पर चलने वालों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है. उनके द्वारा भारत में स्थापित योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया और अमेरिका में स्थापित सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप के प्रति लोगों का बढ़ता आकर्षण ‘खेती उपजे अपने कर्मा’ की मिसाल है.

उन्होंने अपने गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि के आदेश पर श्रीमद्भगवद्गीता में उल्लेखित क्रिया योग के विस्तारित रूप से दुनिया को परिचित कराने का बीड़ा उठाया था, जो हर दिन अधिक फलीभूत होता नजर आ रहा है. क्रिया योग के माध्यम से परमहंस योगानंद ने शरीर और मन को स्वस्थ और शुद्ध बनाते हुए आत्मा के परमात्मा में विलय (योग) की व्यावहारिक पद्धति बतायी थी.

परमहंस योगानंदजी ने भारतीय और पश्चिमी अध्यात्म का विलक्षण मिलाप पेश किया. कोई भी आध्यात्मिक व्यक्तित्व यह महान कार्य न तो उनके पहले कर सका था, न ही उनके बाद. उनके द्वारा बोया गया अनुशासन और संस्कार ही है, जो उनके निधन के प्रायः 69 वर्षों बाद भी क्रिया साधना के रूप में निरंतर अधिक उपयोगी, अधिक लोकप्रिय और अधिक स्वीकार्य हो रहा है. उनकी आत्मकथा ‘योगी कथामृत’ के अंतिम शब्दों ‘हे ईश्वर, तूने इस संन्यासी को एक बड़ा परिवार दिया है’ को याद करते हुए देखें तो उस परिवार में निरंतर वृद्धि ही होती जा रही है.

बढ़ती जा रही प्रासंगिकता : किसी भी महापुरुष अथवा संत का सही आकलन उनके नहीं रहने पर उनके दिखाये रास्ते की वर्षों-वर्ष तक प्रासंगिकता के आधार पर ही होती है. योगानंदजी की आत्मकथा ‘योगी कथामृत’ का विगत 75 वर्षों में दुनिया की 50 भाषाओं में अनुवाद होना और आध्यात्मिक साहित्य में बेस्ट-सेलर साबित होना यह बता रहा है कि उनकी प्रासंगिकता बढ़ती जा रही.

साठ से अधिक देशों तक पहुंच : महर्षि पतंजलि ने जिस अष्टांग योग की व्याख्या की थी, उसके तहत क्रिया योग राजयोग का वह मार्ग है, जिसका निरंतर अभ्यास कर शरीर, मन और श्वास पर नियंत्रण पाते हुए आत्मा से परमात्मा का साक्षात्कार और यहां तक कि उनमें विलय संभव है. यही मोक्ष है, जिसकी खोज और साधना अनंतकाल से चली आ रही है. यह साधना गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी की जा सकती है. हिमालयवासी अमर्त्य गुरु, महावतार बाबाजी ने क्रिया योग का पुनरुद्धार किया, जिसे परमहंस योगानंदजी ने मानव समाज के समक्ष विस्तार दिया.

कोरोना काल में भी दुनियाभर के लोग ऑनलाइन से जुड़े : कोविड काल में विगत अगस्त में इसके ऑनलाइन साधना संगम में दुनिया भर के हजारों लोगों की भागीदारी ने इसकी प्रासंगिकता की मिसाल कायम की. अकेले अमेरिका के आंकड़े बताते हैं, वहां करीब 3.5 करोड़ से अधिक लोग योगाभ्यास करते हैं और करीब दो करोड़ से अधिक ध्यान करते हैं.

योगानंदजी के संगठन वाइएसएस/एसआरएफ में 60 से अधिक देशों के 800 से अधिक आश्रम, रिट्रीट और ध्यान केंद्र शामिल हैं. उनको पश्चिम में योग का जनक यूं ही नहीं कहा जाता. पश्चिमी जगत में उन्होंने अपने जीवन के बहुमूल्य 32 वर्ष दिये. ऐसा किसी भारतीय संन्यासी ने नहीं किया. उनके द्वारा श्रीमदभगवतगीता पर लिखित अद्भुत भाष्य, ‘ईश्वर-अर्जुन संवाद’, में महाभारत के पात्रों की हर मनुष्य में मौजूदगी की स्थापना सहज विश्वसनीय है.

उन्होंने अनेक ग्रंथों की न केवल रचना की, अपितु क्रिया योग सीखने के लिए गृह अध्ययन पाठ्यक्रम भी लिखा. परमहंस योगानंदजी की कालातीत मौजूदगी का अहसास उनके आश्रमों में जाकर होता है, जिनमें अद्भुत सुखद और सकारात्मक तरंगें प्रवाहित होती रहती हैं. कोविड-19 काल में वाइएसएस और एसआरएफ संन्यासियों ने ऑनलाइन ध्यान-सत्रों की निरंतर व्यवस्था कर दुनिया के न जाने कितने लोगों को अवसाद से बचाने का उपक्रम किया.

-साभार : योगदा सत्संग सोसाइटी

मानव सेवा का अद्भुत उदाहरण : परमहंस योगानंदजी अपनी संस्थाओं को केवल क्रिया साधना तक ही सीमित नहीं रखना चाहते थे. उन्होंने हर काल की जरूरत महसूस करते हुए वाइएसएस के तहत शिक्षा केंद्रों और अस्पताल के संचालन की भी व्यवस्था की, जिन्हें नाम-मात्र के शुल्क पर चलाया जाता है. इसके अलावा उन्होंने पीड़ित मानवता की सेवा की भी प्रेरणा दी थी, जिसका प्रकटीकरण कोरोनाकाल में हुआ. योगदा के संन्यासियों ने आश्रमों और ध्यान केंद्रों से बाहर निकलकर न जाने कितने परिवारों को आवश्यक राशन, साबुन, मास्क आदि उपलब्ध कराया.

योगानंदजी ने जन-कल्याण की प्रेरणा संभवतः अपने पिता से भी प्राप्त की थी. जिन्होंने गार्डन रीच में 1908 में कलकत्ता अर्बन बैंक की स्थापना की थी, जो 1920 में एसइ, एसइसी एंड इ-कंपनी रेलवे इम्पलाइज़ कोऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में बदल गया. यह सोसाइटी सौ वर्षों से अधिक काल से रेल कर्मियों को अत्यंत सस्ते ब्याज पर रकम उपलब्ध करा रही है.

आज ऑनलाइन ध्यान और सत्संग : योगानंद जी के जन्म दिन पर बहुबाजार स्थित योगदा सत्संग आश्रम में मंगलवार को ऑनलाइन ध्यान व सत्संग का कार्यक्रम आयोजित किया गया है. ऑनलाइन कार्यक्रम में देश व दुनिया के भक्त शामिल होंगे. यह कार्यक्रम शाम 5:30 से सात बजे तक चलेगा. भक्त yssi.org/event पर इस लिंक के माध्यम से जुड़ सकते हैं.

यहां मिल सकती है योगानंदजी पर जानकारी : परमहंस योगानंद के बारे में अधिक जानकारी के लिए www.yssofindia.org वेबसाइट पर विजिट किया जा सकता है.

Posted by: Pritish Sahay

Next Article

Exit mobile version