Navratri 2025: नवरात्रि में मां की निशा पूजा और खप्पर साधना, रात के अंधेरे में क्यों होती है मां काली की रहस्यमयी आराधना

Navratri 2025: नवरात्रि के सातवें दिन मां काली की निशा पूजा और खप्पर साधना का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रात के पहर में मां काली का उग्र रूप साधकों पर अपनी कृपा दिखाता है और गुप्त मंत्रों और साधनाओं से उनका आध्यात्मिक बल बढ़ता है. आइए जानते है क्या होती है खप्पर साधना.

By JayshreeAnand | September 27, 2025 1:53 PM

Navratri 2025: नवरात्रि के दौरान निशा पूजा और खप्पर साधना का आयोजन विशेष रूप से रात के समय किया जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस समय को मां काली के उग्र रूप और गुप्त तंत्र साधना के लिए सबसे प्रभावशाली माना गया है. निशा पूजा वह विशेष समय है जब साधक मां कालरात्रि के शक्तिशाली रूप को प्रसन्न करने के लिए गुप्त साधनाएं करते हैं.

क्या होती है खप्पर साधना

खप्पर साधना या खप्पर धूनी एक विशेष प्रकार की अग्नि साधना है, जिसमें साधक आग की लपटों के बीच बैठकर गहन ध्यान और मंत्र जाप करता है. इस साधना का उद्देश्य शरीर और मन को तपाना, संयम का अभ्यास करना और आध्यात्मिक सिद्धियां प्राप्त करना है. खप्पर, जो नारियल या नरकपाल से बना एक पात्र होता है, साधकों और योगियों द्वारा इस अनुष्ठान में उपयोग किया जाता है. साधना के दौरान आग के घेरे को गाय के गोबर से बने उपलों से तैयार किया जाता है और साधक इस घेरे के बीच बैठकर कई घंटों तक तपस्या करता है. इस कठोर अभ्यास से न केवल मानसिक शक्ति बढ़ती है बल्कि साधक को आध्यात्मिक उन्नति और विशेष शक्तियों की प्राप्ति भी होती है.

निशा पूजा का महत्व

निशा का अर्थ रात्रि या रात के समय से है. नवरात्रि के नौ दिनों में अष्टमी का दिन विशेष माना जाता है और उस रात को ही महानिशा पूजा की जाती है. अष्टमी तिथि रात से शुरू होती है, इसलिए रात के समय भी पूजा की जा सकती है. खास बात यह है कि सप्तमी की रात को ही निशीथ काल में निशा पूजा होती है और उसी रात संधी पूजा भी की जाती है. संधी पूजा का मतलब है जब सप्तमी पूरी होती है और अष्टमी शुरू होती है.

निशा पूजा की विधि

मान्यता है कि इस दिन साधक और तांत्रिक लोग रात के गहन समय यानी निशीथ काल में पूजा करते हैं. यह पूजा विशेष रूप से नवरात्रि की सप्तमी की रात में होती है. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि में भक्त व्रत और उपवास रखकर मां कालरात्रि की विधि-विधान से पूजन करते हैं, ताकि देवी का आशीर्वाद प्राप्त हो और सभी कष्ट दूर हों.

रात के अंधेरे में पूजा का कारण

तंत्र साधना का समय: नवरात्रि की रात्रियां, खासकर सप्तमी और अष्टमी, तंत्र-मंत्र और गुप्त साधनाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. इस दौरान साधक विशेष ध्यान और जप से शक्ति जगाने की कोशिश करते हैं.

शक्ति का जागरण: इन रातों में साधक जागरण करके अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को सक्रिय करते हैं और मां काली की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं.

अज्ञानता का नाश: रात का अंधेरा अज्ञानता, अहंकार और नकारात्मक प्रवृत्तियों का प्रतीक है. मां काली की पूजा के माध्यम से इन नकारात्मकताओं का नाश किया जाता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.

कालरात्रि देवी का प्रभाव: नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा विशेष रूप से की जाती है. उनके उग्र रूप का उद्देश्य अहंकार और बुराई को नष्ट करना है. रात में इस पूजा के माध्यम से साधक को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं और जीवन में बाधाओं से मुक्ति मिलती है.

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